किशोर कुमार
अब यह तथ्य विज्ञानसम्मत है और सर्वमान्य भी कि हृदयरोग से बचाव में योग की बड़ी भूमिका है। हमें ज्ञात हो चुका है कि तनाव, अवसाद और हृदयाघात ये तीन क्रमबद्ध स्टेशनों की तरह हैं। तनाव रूपी स्टेशन से एक बार निर्बाध यात्रा शुरू हुई तो हृदयाघात तक पहुंचना लगभग तय हो जाता है। इसलिए विकसित देशों में योग की लोकप्रियता चरम पर है। पश्चिम के उन देशों में भी योग की स्वीकार्यता बढ़ी है, जहां योगाभ्यास वर्जित था। पर भारत में योग की कितनी स्वीकार्यता बढ़ी? अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस करीब है और सर्वत्र योगोत्सवों की धूम है। पर क्या हम स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से योगाभ्यास के मामले में अमेरिका जैसे विकसित देश की बराबरी कर पा रहे हैं? शायद नहीं।
इस तथ्य को पुख्ता ढंग से प्रस्तुत करने के लिए हमे अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों के आधिकारिक आंकड़े तो सर्वत्र मिल जाते हैं। पर भारत में ऐसे आंकड़ों का टोटा है। इसलिए कि इस मामले में व्यापक स्तर पर काम शैशवावस्था में है। अलबत्ता आयुष मंत्रालय ने अपने अभियान “नियंत्रित मधुमेह भारत” के तहत जो अध्ययन करवाया था, उससे भारत में योगाभ्यासियों की संख्या का मोटा अनुमान लगाना संभव हो सका है। कोई 1,62,330 लोगों पर किए गए सर्वेक्षण से पता चला कि 11.8 फीसदी लोग ही नियमित रूप से योगाभ्यास करते हैं। इनमें उत्तर भारत में योगाभ्यास करने वालों की संख्या सर्वाधिक है। दूसरी तरफ अमेरिकी योग अलायंस की रिपोर्ट के मुताबिक 34 फीसदी लोग नियमित योगाभ्यास करते हैं। इसलिए योग प्रशिक्षकों की संख्या और योग का कारोबार भी अमेरिका में तेजी से बढ़ा है। वैसे, भारत के योगियों ने कभी नहीं चाहा कि योग कारोबार बने। बिहार योग विद्यालय से लेकर रमण महर्षि के आश्रम तक की शिक्षा ऐसी ही रही है।
इसमें दो मत नहीं कि हृदय रोग गैर-संचारी रोगों की श्रेणी में मृत्यु दर का प्रमुख कारण बन गया हैं। इस स्थिति से बचाव के लिए योग की प्रभावशाली विधियां मौजूद होने के बावजूद बीमारी का बेलगाम होते जाना चिंताजनक है। सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन योगा एंड नेचुरोपैथी की पहल पर दिल्ली के वर्द्धमान महावीर मेडिकल कालेज एवं सफदरजंग अस्पताल के मनोविज्ञान विभाग में कॉर्डियोवास्कुलर ऑटोनोमिक फंक्शन पर योग के प्रभाव पर अनुसंधान हुआ है। इस अनुसंधान का उद्देश्य यह पता लगाना था कि किस योगाभ्यास से हृदय को ऐसी स्थिति में लाया जाए ताकि धमनियों में रक्त संचार सुगमता से होता रहे। उम्मीद है कि इस अनुसंधान से संबंधित रिपोर्ट जल्दी ही जारी होगी।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) ने देशभर के 24 स्थानों पर किए गए अध्ययन के आधार पर दावा किया है कि योग हृदय रोगियों को दोबारा सामान्य जीवन जीने में मदद करता है। लंबे समय तक किए गए क्लीनिकल ट्रायल के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। इस ट्रायल के दौरान हृदय रोगों से ग्रस्त मरीजों में योग आधारित पुनर्वास (योगा-केयर) की तुलना देखभाल की उन्नत मानक प्रक्रियाओं से की गई है। लगातार 48 महीनों तक चले इस अध्ययन में अस्पताल में दाखिल अथवा डिस्चार्ज हो चुके चार हजार हृदय रोगियों को शामिल किया गया था। ट्रायल के दौरान तीन महीने तक अस्पतालों और मरीजों के घर पर योग प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए गए थे। दस या उससे अधिक प्रशिक्षण सत्रों में उपस्थित रहने वाले मरीजों के स्वास्थ्य में अन्य मरीजों की अपेक्षा अधिक सुधार देखा गया।
पीएचएफआई की इस परियोजना को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और मेडिकल रिसर्च काउंसिल – यूके ने प्रायोजित किया था। अध्ययन रिपोर्ट अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के शिकागो में हुई बैठक में जारी की गई थी। अध्ययन के लिए “योगा केयर” नाम से मरीजों के अनुकूल एक पाठ्यक्रम तैयार किया गया था। उसमें ध्यान, श्वास अभ्यास, हृदय अनुकूल चुनिंदा योगासन और जीवन शैली से संबंधित सलाह शामिल किया गया। पुणे स्थित बीजे मेडिकल कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग में भी कॉर्डियोवास्कुलर ऑटोनोमिक फंक्शन पर प्राणायाम के प्रभावों का अध्ययन किया गया। नतीजा आशाजनक रहा। पाया गया कि दो महीनों तक नियमित रूप से प्राणायाम की विधियों को अपनाने वाले मरीजों में सुधार सामान्य मरीजों की तुलना में कई गुणा ज्यादा था।
यौन क्रियाओं का हृदय से सीधा संबंध स्थापित सत्य है। इसके लाभ-हानि पर चर्चा होती रहती है। पर हानि से बचाव का कोई यौगिक उपचार है? इस सवाल पर चर्चा कम ही हुई। जबकि विभिन्न स्तरों पर हुए शोधों से साबित हो चुका है कि हृदय को खास परिस्थियों की वजह से होने वाली हानि से बचाव में योग कारगर है। उस योग का नाम है – सिद्धासन। गोरखनाथ के शिष्य स्वामी स्वात्माराम द्वारा शोधित “सिद्धासन” को विज्ञान की कसौटी पर बार-बार कसा गया और हर बार खरा साबित हुआ। नतीजतन, सिद्धासन हृदय रोग से बचाव के लिए अनुशंसित योगाभ्यासों में सबसे महत्वपूर्ण बन गया है। अनुसंधानकर्त्ताओं ने पाया है कि कुछ सावधानियों के साथ यह योगाभ्यास पुरूषों और महिलाओं को समान रूप से लाभ पहुंचाता है।
आम धारणा रही है कि हृदयाघात पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं में बेहद कम होता है। वैज्ञानिक शोधों से पता चला कि रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं को भी पुरूषों के बराबर हृदयाघात का खतरा रहता है। डॉ कर्मानंद ने योग के चिकित्सकीय प्रभावों पर अपने अनुसंधानों के बाद अपनी एक चर्चित पुस्तक “यौगिक मैनेजमेंट ऑफ कॉमन डिजीज” में लिखा कि रजोनिवृत्ति से पहले महिलाओं के हृदय की प्रकोष्ठ भित्तियों एवं बडी धमनियों की भित्तियों में विशेष तरह के एण्ड्रोजन रिसेप्टर्स की उपस्थिति होती है, जो एण्ड्रोजन के दुष्प्रभावों से हृदय की रक्षा करता है। मगर यह अंत:स्रावी प्रक्रिया जब रजोनिवृत्ति के बाद बदलती है तो एस्ट्रोजन कम होता है। इससे हृदयाघात की संभावना लगभग पुरूषों के बराबर हो जाती है।
परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते थे कि तनाव और अवसाद के लक्षण दिखते ही श्वास की सजगता का अभ्यास शुरू कर दिया जाए तो समस्या काफी हद तक सुलझ जाएगी। पर समस्या योग के असर को लेकर नहीं है, बल्कि इसके अभ्यास को लेकर है। योग व्यापक स्तर पर जीवन का हिस्सा बनेगा तभी बनेगी बात।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)