किशोर कुमार
आधुनिक योग के वैज्ञानिक संत परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के जन्मदिवस और बालयोग दिवस की शुभकामनाएं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव और संयुक्त राष्ट्र संघ की सहमति के बाद भले सन् 2015 से प्रति वर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाने लगा है। पर इसका बीजारोपण दो दशक पहले यानी 1995 में हो चुका था। उसी वर्ष बीसवीं सदी के महान संत स्वामी शिवानंद सरस्वती के पट्शिष्य और बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के जन्मदिवस को बालयोग दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया गया था। तब से वह सिलसिल अनवरत जारी है। कोरोनाकाल में जब बड़ी संख्या में बच्चे मानसिक पीड़ाओं से दो चार हो रहे हैं और उनकी बौद्धिक क्षमता में ह्रास होने की प्रबल संभावना बनी हुई है, ऐसे में स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के प्रसंग और बालयोग दिवस की महत्ता और भी बढ़ गई है।
आद्य गुरू शंकराचार्य की दशनामी संन्यास परंपरा के संन्यासी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती आधुनिक युग के एक ऐसे सिद्ध संत हैं, जिनका जीवन योग की प्राचीन परंपरा, योग दर्शन, योग मनोविज्ञान, योग विज्ञान और आदर्श योगी-संन्यासी के बारे में सब कुछ समझने के लिए खुली किताब की तरह है। उनकी दिव्य-शक्ति का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने मात्र 11 साल की उम्र में लंदन के चिकित्सकों के सम्मेलन में बायोफीडबैक सिस्टम पर ऐसा भाषण दिया था कि चिकित्सा वैज्ञानिक हैरान रह गए थे। बाद में शोध से स्वामी जी की एक-एक बात साबित हो गई थी।
आज वही निरंजनानंद सरस्वती नासा के उन पांच सौ वैज्ञानिकों के दल में शामिल हैं, जो इस अध्ययन में जुटे हुए हैं कि दूसरे ग्रहों पर मानव गया तो वह शारीरिक व मानसिक चुनौतियों से किस तरह मुकाबला कर पाएगा। स्वामी निरंजन अपने हिस्से का काम नास की प्रयोगशाला में बैठकर नहीं, बल्कि मुंगेर में ही करते हैं। वहां क्वांटम मशीन और अन्य उपकरण रखे गए हैं। वे आधुनिक युग के संभवत: इकलौते सन्यासी हैं, जिन्हें संस्कृत के अलावा विश्व की लगभग दो दर्जन भाषाओं के साथ ही वेद, पुराण, योग दर्शन से लेकर विभिन्न प्रकार की वैदिक शिक्षा यौगिक निद्रा में जरिए मिली थी। उसी निद्रा को हम योगनिद्रा योग के रूप में जानते हैं, जो परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की ओर से दुनिया को दिया गया अनुपम उपहार है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद बिहार योग परंपरा से बेहद प्रभावित हैं। कुछ साल पहले तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति की बेटी इवांका ट्रंप ने उनसे पूछा था कि आप इतनी मेहनत के बावजूद हर वक्त इतने चुस्त-दुरूस्त किस तरह रह पाते हैं तो इसके जबाव में प्रधानमंत्री ने परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की आवाज में रिकार्ड किए गए योगनिद्रा योग को ट्वीट करते हुए कहा था, इसी योग का असर है। जबाब में इवांका ट्रंप ने कहा था कि वह भी योगनिद्रा योग का अभ्यास करेंगी। खैर, सन् 1960 में मध्यप्रदेश (अब छत्तीसगढ़) के राजनांदगांव में जन्में स्वामी निरंजनानंद सरस्वती बाल्यावस्था में ही अपने गुरू स्वामी सत्यानंद सरस्वती की शरण में चले गए थे। प्रारंभ में उन्हें गायत्री मंत्र, सूर्य नमस्कार और नाड़ी शोधन प्राणायाम की शिक्षा मिली और इसके साथ योगमय जीवन की आधारशिला पड़ गई थी।
स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के सबल कंधों पर जब बिहार योग परंपरा की जिम्मेवारी आई तो उन्होंने समन्वित योग के प्रचार-प्रसार के गुरूत्तर कार्य के साथ ही बच्चों के योगमय जीवन पर बहुत जोर दिया। इसे व्यापकता प्रदान करने के लिए सात बच्चों को लेकर बालयोग मित्र मंडल का गठन किया। इसी बालयोग मित्र मंडल के तत्वावधान में स्वामी निरंजनानंद सरस्वती का जन्मदिवस बालयोग दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इस संगठन का उद्देश्य संस्कार की प्राप्ति, स्वावलंबन और राष्ट्र-संस्कृति प्रेम को बढ़ावा देना है। वैसे, भारत की प्रचीन परंपरा रही है कि बच्चे जब आठ साल के होते थे तो उनका उपनयन संस्कार कराया जाता था। इसके तहत चार वर्षों यानी बारह साल की उम्र तक के लिए मुख्य रूप से सूर्य नमस्कार, नाडी शोधन प्राणायाम और गायत्री मंत्र का अभ्यास प्रारंभ करवाया जाता था। यह संस्कार लड़के और लड़कियों दोनों को दिया जाता था। ऋषि-मुनि योग की वैज्ञानिकता के बारे में जानते थे। उन्हें पता था कि योगाभ्यास न केवल बच्चों के शरीर को लचीला बनाता है, बल्कि उनमें अनुशासन और मानसिक सक्रियता भी लाता है। इससे साथ ही एकाग्रता बढ़ती है और सृजनात्मक प्रेरणा प्राप्त होती है।
यह जानना बड़े महत्व का है कि उपनयन संस्कार के साथ ही योगमय जीवन शुरू करने के लिए आठ साल की उम्र को ही क्यों उपयुक्त माना जाता था। आधुनिक विज्ञान के लिहाज से मस्तिष्क के केंद्र में स्थित पीनियल ग्रंथि बच्चों की चेतना के विस्तार के लिए बेहद जरूरी है। अनुसंधानों के मुताबिक आठ साल तक के बच्चों में पीनियल ग्रंथि बिल्कुल स्वस्थ रहती है। उसके बाद कमजोर होने लगती है। किशोरावस्था आते-आते में अक्सर विघटित हो जाती है। पीनियल ग्रंथि का क्षय प्रारंभ होते ही पिट्यूटरी ग्रंथि या पीयूष ग्रंथि और संपूर्ण अंत:स्रावी प्रणालियां अनियंत्रित होती जाती हैं। नतीजतन, असमय यौवनारंभ हो जाता है, जबकि बच्चों की मानसिक अवस्था इसके लिए उपयुक्त नहीं होती है। अन्य कई व्याधियां भी प्रकट होने लगती हैं।
हम जानते है कि सूर्य नमस्कार स्वयं में पूर्ण योग साधना है। इसमें आसनों के साथ ही प्राणायाम, मंत्र और ध्यान की विधियों का समावेश है। शरीर के सभी आंतरिक अंगों की मालिश करने का एक प्रभावी तरीका है। आसन का प्रभाव शरीर के विशेष अंगों, ग्रंथियों और हॉरमोन पर होता है। अलग से मंत्र का समावेश करके प्राणायाम करने से पीनियल ग्रंथि का क्षय रूकता है। इस वजह से पिट्यूटरी ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन नियंत्रित रहता है। सजगता और एकाग्रता में वृद्धि होती है। मानसिक पीड़ा से राहत मिलती है। ये बातें वैज्ञानिक अध्ययनों से भी साबित हो चुकी हैं। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि आधुनिक विज्ञान की बदौलत योग की महिमा को जानते हुए भी हम उसे बच्चों के जीवन का हिस्सा बनवाने में मदद नहीं करते। इस लिहाज से स्वामी निरंजनानंद सरस्वती का जीवन और बालयोग दिवस के संदेश बड़े महत्व के हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)