किशोर कुमार
महाराष्ट्र के योगी स्वामी कुवल्यानंद यौगिक क्रियाओं से मिलने वाले परिणामों को विज्ञान की कसौटी पर भी सिद्ध करके भारत के साथ ही पश्चिमी देशों में भी ख्याति अर्जित कर रहे थे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को खुद ही कुवल्यानंद जी के योगाश्रम कैवल्यधाम में जाकर उनकी उपलब्धियों का साक्षी बनना चाहते थे। लिहाजा वे महाराष्ट्र के लोनावाला पहुंच गए, जहां कैवल्यधाम आकार ले रहा था। वे स्वामी जी की उपलब्धियों से बेहद खुश हुए। पर तुरंत ही उन पर संशय के बादल उमड़ने-घुमड़ने लगे। दरअसल, उन्हें आश्रम में पता चला कि स्वामी जी को अमेरिका में रहने के न्यौते मिल रहे हैं। नेहरू जी नहीं चाहते थे कि भारत में योग परंपरा और विज्ञान का मिलन कराने वाले स्वामी कुवल्यानंद विदेश की धरती पर रच-बस जाएं। उन्होंने अपने मन के इस बात को न छिपाते हुए तुरंत ही स्वामी जी से आग्रह किया, आपको जो सुविधाएं चाहिए, बस मिलेगी। पर भारत छोड़कर मत जाइएगा। राष्ट्रवादी सोच वाले स्वामी कुवल्यानंद ने नेहरू जी को आश्वस्त किया कि वे अपने वतन को छोड़कर कहीं नहीं जा रहे हैं। हां, भारतीय योग का सुगंध विदेशों तक पहुंचे, वह यह जरूर चाहते हैं।
यह सुखद है कि स्वामी कुवल्यानंद जी का संकल्प फलीभूत हो चुका है। बीसवीं सदी के उस महान योगी ने दैवीय प्रेरणा और गुरू के आदेश पर जिस कैवल्यधाम रूपी योग मंदिर को अपने खून-पसीने से सींचा था, अब वह नित नई ऊंचाइयां छू रहा है। कैवल्यधाम के एक सौ साल पूरे होने पर देश-दुनिया के लोगों ने देखा कि जिस तरह दूध में शहद घुल-मिल जाता है, उसी तरह उस योग मंदिर में योग की परंपरा और विज्ञान का मिलन हो चुका है। दो दिनों पहले ही कैवल्यधाम के सौ साल पूरे होने पर एक तरफ भव्य शताब्दी समारोह का आयोजन करके जश्न तो मनाया गया, तो दूसरी तरफ शताब्दी वर्ष में स्कूल शिक्षा प्रणाली में योग के एकीकरण संबंधी स्वामी जी के सपने को प्रभावी ढंग से साकार करने का संकल्प भी लिया गया।
योग विश्व समुदाय को दिया गया भारत का अमूल्य उपहार है। 2015 से हर वर्ष विश्व के अधिकांश देशों में योग दिवस मनाया जाने लगा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने प्रस्ताव में यह स्पष्ट किया था कि योग पद्धति स्वास्थ्य व कल्याण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है और पूरे विश्व समुदाय के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। योग का लाभ बच्चों और हमारी युवा पीढ़ी तक पहुंचाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित योग विद्या को शिक्षण व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। योग व्यक्ति के समग्र विकास का मार्ग है। इसे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक प्रगति का एक प्रभावी साधन माना जाता है। व्यापक शोध और परीक्षण के बाद हमारे प्राचीन ऋषियों ने यह स्थापित किया कि योग का निरंतर अभ्यास कैवल्य प्राप्त करने में सहायक है। उन्होंने कहा कि 20वीं सदी में स्वामी कुवलयानंद जी जैसे महान व्यक्तित्वों ने योग प्रणाली के वैज्ञानिक दृष्टिकोण और उपयोगिता को प्रचारित किया। स्वामी कुवलयानंद जी विद्यालयों में योग शिक्षा के प्रसार को काफी महत्व देते थे। उम्मीद है कि ‘कैवल्यधाम’ योग परंपरा और विज्ञान का प्रभावी संगम निरंतर प्रवाहित करेगा और विश्व समुदाय, विशेषकर युवाओं को समग्र विकास के मार्ग पर आगे बढ़ाता रहेगा। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू, राष्ट्रपति, भारत
स्वामी कुवल्यानंद ने स्कूल शिक्षा प्रणाली में योग के एकीकरण का सपना नौ दशक पहले देखा था। तब उनकी बातें किसी को भी अटपटी लगी रही होगी। पर अब कहना होगा कि उन्होंने अपनी दिव्य-दृष्टि से भांप लिया था कि भविष्य की चुनौतियां क्या होंगी और उनका समाधान किस विधि संभव है। संयोग देखिए कि वह समय भी आ गया जब प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने योग को दुनिया भर में प्रचारित करने के लिए कमर कस ली। उनका ध्यान बरबस ही इस बात की ओर भी गया कि भारत के योगी क्यों कहते रहे हैं कि प्रथमत: स्कूली बच्चों के लिए है और योगमय जीवन की शुरूआत वहां से होनी चाहिए। उन्हें इसका मर्म समझते देर न लगी और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में योग को शामिल कर दिया। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि कैवल्यधाम के योगाचर्यों ने अपने गुरू स्वामी कुवल्यानंद के सपने को साकार करने का जो बीड़ा उठाया है, वह समयानुकूल है।
कैवल्यधाम के शताब्दी वर्ष समारोह का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने ठीक ही कहा, योग विश्व समुदाय को भारत का अमूल्य उपहार है। स्वामी कुवलयानंद जी स्कूलों में योग शिक्षा के प्रसार को बहुत महत्व देते थे। आज भी उनका सींचा हुआ पौधा यानी कैवल्यधाम संस्थान और उसके द्वारा संचालित स्कूल कैवल्य विद्या निकेतन व अन्य शिक्षण संस्थान प्रेरणा प्रदान करने वाले हैं। मुझे विश्वास है कि ‘कैवल्यधाम’ में योग परंपरा और विज्ञान का प्रभावी संगम निरंतर प्रवाहित होता रहेगा और विश्व समुदाय, विशेषकर युवा समग्र विकास के पथ पर आगे बढ़ते रहेंगे। महामहिम राष्ट्रपति को कैवल्यधाम की ओर से भी आश्वस्त किया गया कि योग परंपरा और विज्ञान का संगम पूर्व की तरह अविरल प्रवाहित होता रहेगा। यह कोई सैद्धांतिक बात नहीं है, बल्कि हकीकत बन चुकी है। सच है कि कैवल्यधाम परंपरा के अग्रणी योगी ओमप्रकाश तिवारी के नेतृत्व में स्वामी कुवल्यानंद की परंपरा तेजी से विस्तार पा रही है।
स्वामी कुवल्यानंद आधुनिक युग के संभवत: पहले वैज्ञानिक योगी थे, जिन्होंने मानव शरीर पर यौगिक प्रभावों को जानने के लिए एक्स-रे, ईसीजी और उस समय रोग परीक्षणों के लिए उपलब्ध अन्य मशीनों के जरिए अपने ही शरीर पर अनेक परीक्षण किए। इस तरह उन्होंने योग की परंपरा औऱ विज्ञान का ऐसा अद्भुत मिलन कराया कि एक मकान से शुरू उनकी यौगिक अनुसंधान को समर्पित संस्था कैवल्यधाम वट-वृक्ष की तरह अपने देश की सरहद के बाहर भी फैलती गई। कैवल्यधाम परिवार यौगिक व आध्यात्मिक गतिविधियों का ऐसा केंद्र है, जिसमें एक साथ योग विज्ञान सें संबंधित कई शाखाएं व प्रशाखाएं समाहित हैं।
यह तो हुई कैवल्यधाम और स्वामी कुवल्यानंद जी की बात। अब समझिए कि बच्चों के लिए योग पर इतनी जोर क्यों है? बच्चों की बढ़ती उम्र के साथ ही ग्रंथियों में व्यापाक बदलाव होते हैं। अनुसंधानों से पता चल चुका है कि लगभग आठ साल तक पीनियल ग्रंथि बिल्कुल स्वस्थ रहती है। उसके बाद दोनों भौहों के बीच यानी भ्रू-मध्य के ठीक पीछे मस्तिष्क में अवस्थित यह ग्रंथि कमजोर होने लगती है। बुद्धि और अंतर्दृष्टि के मूल स्थान वाली यह ग्रंथि किशोरावस्था में अक्सर विघटित हो जाती है। परिणामस्वरूप उस ग्रंथि के भीतर की पीनियलोसाइट्स कोशिकाओं से मेलाटोनिन हॉरमोन बनना बंद हो जाता है। नतीजतन, पिट्यूटरी ग्रंथि से हॉरमोन का रिसाव शुरू होकर शरीर के रक्तप्रवाह में मिलने लगता है। पीनियल और पिट्यूटरी, इन दोनों ग्रंथियों का परस्पर गहन संबंध है। सच कहिए तो पीनियल ग्रंथि पिट्यूटरी ग्रंथि के लिए ताला का काम करती है। ताला खुलते ही पिट्यूटरी अनियंत्रित होती है औऱ बाल मन में उथल-पुथल मच जाता है। समय से पहले यौन हॉरमोन क्रियाशील हो जाता है। उसके कुपरिणाम कई रूपो में सामने आने लगते हैं।
इसलिए बच्चों की प्रतिभावान बनाने से लेकर चरित्र-निर्माण तक को ध्यान में रखते हुए स्वामी कुवल्यानंद से लेकर विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती तक बच्चों की योग शिक्षा पर खासा जोर देते रहे हैं। भारत ही ऐसा देश है, जहां के संतों ने योग विद्या के रूप में परमात्मा द्वारा प्रदत्त महान उपहार के महत्व को सदैव समझा और उसे अक्षुण बनाए रखने के लिए सदैव काम किया। स्वामी कुवल्यानंद उन्हीं में से एक थे। कैवल्यधाम के रूप में उनकी फुलवारी की खुशबू दूर-दूर तक फैलती रहे, शताब्दी वर्ष में यही कामना है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)