कोविड से उत्पन्न संकट और योग


कुमार कृष्णन
कोविड-19 महामारी से उत्पन्न संकट बहुत बड़ा है और इसके वर्तमान प्रकोप से जनता में तनाव और चिंता बढ़ गई है। कोविड-19 न केवल लोगों के शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है बल्कि रोगियों और उनके परिवार के सदस्यों के मनोवैज्ञानिक या मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। आॅन लाइन क्लासेस का अलग असर बच्चों के बीच देखने को मिल रहे हैं।
रिपोर्टों के अनुसार, कोविड-19 रोगियों के मनोवैज्ञानिक संकट को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है और इसका समाधान नहीं किया जाता है। कोविड देखभाल अस्पतालों में चिंता और तीव्र अवसाद के बाद आत्महत्या की भी रिपोर्ट प्राप्त हुई हैं। विभिन्न देशों से प्राप्त समाचारों के अनुसार, कई रोगियों को पृथकवास की चिंता और लक्षणों के बिगड़ने के डर से बड़े संकट का सामना करना पड़ा है। श्वसन संकट, हाइपोक्सिया, थकान और अनिद्रा और अन्य लक्षणों जैसी जटिलताओं को भी देखा गया है।
योग के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती का मानना है आनेवाले पांच वर्षों के दौरान मानसिक रोगियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होगी। यह काफी चुनौतिपूर्ण होगा। करोना से ठीक होने के बाद लोगों में मस्तिष्क विकृतियां उत्पन्न हो रही है। इसमें मनोवृत्ति व याददाश्त कमजोर होने की संभावना बनी रहती है। कोरोना के बाद इंसेफ लाइटिस की समस्या भी काफी देखी गई है। कोरोना से ठीक हुए मरीजों के दिमाग में सूजन आ जाती है। साथ ही खून के थक्के जमने की शिकायत भी देखने को मिल रही है। वर्तमान में कोरोना मरीजों के 30 से 35 प्रतिशत में नर्वस सिस्टम संबंधी लक्षण देखने को मिल रहे हैं।
करोना के बाद दिमाग में ब्लड क्लोटिंग होने और इससे स्ट्रोक भी समस्या कई कोरोना के मरीजों में देखने को मिल रही है।शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली नसों पर हमला करती है, इससे कमजोरी, सुन्नपन, झनझनाहट और पैरालाइसिस का खतरा बढ़ जाता है। कोरोना से ठीक हुए मरीजों में कई तरह के साइड इफेक्ट देखे जा रहे हैं। जिन पर शोध भी किया जा रहा है। कोरोना संक्रमण को मात दे चुके 40 प्रतिशत लोग अब अनिंद्रा की समस्या से जूझ रहे हैं। अनिद्रा की समस्या उम्रदराज लोगों के साथ ही युवाओं में भी नजर आ रही है। कुछ लोगों को समय पर नींद नहीं आ रही है तो कुछ लोगों की नींद सोने के थोड़ी देर बाद ही बाद ही खुल जाती है, वहीं कुछ लोगों की नींद सुबह जल्दी खुल जाती है। अनिद्रा की समस्या से जूझ रहे लोग अब मनोरोग विशेषज्ञों की मदद ले रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते अनिद्रा की समस्या का निदान नहीं किया जाए तो न केवल सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, कब्ज जैसी ही समस्याएं हो जाती हैं। कई लोगों में हाइपरटेंशन, कार्डियक डिसआर्डर, चयापचय तंत्र और रोग प्रतिरोधक क्षमता बिगड़ने संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं।
योग के हस्तक्षेप ने कोविड-19 रोगियों को ठीक करने में सहायता प्रदान की है। श्वांस लेने के सरल प्राणायाम को महामारी के लक्षण वाले रोगियों और श्वसन संकट वाले लोगों में एसपीओ 2 के स्तर को बढ़ाने के लिए सहायक के रूप में देखा गया है।
परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के अनुसार योग में जिस भुजंगासन का अभ्यास कराया जाता है।करोनाकाल में चिकित्सकों ने श्वसनतंत्र को ठीक करने के लिए चिकित्सकीय परामर्श दिए।उसका काफी लाभ मिला। दरअसल में भुजंगासन से करने से छाती वाला हिस्सा खुलता है और फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है।आप देखें तो पूरे करोनाकाल में योग ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।अब चिकित्सा के क्षेत्र में योग के एक एक आसनों पर पर शोध हो रहे हैं। बिहार योग पद्धति यानी सत्यानंद योग पद्धति का स्वरूप बहुत विस्तृत है और इसकी पहुंच बहुत गहरी है।योगनिद्रा और प्राणायाम,सत्यानंद योग पद्धति के अभिन्न अंग हैं। आज पूरे विश्व में करोड़ों लोग डिप्रेशन की बीमारी से जूझ रहे हैं। डिप्रेशन के चलते युवाओं खुदकुशी की प्रवृति बढ़ी है। योग उन बीमारियों का सीधा उपचार करता है जिसका मूल कारण तो मनोवैज्ञानिक होता है, लेकिन शरीर सीधा कुप्रभाव पड़ता है। सत्यानंद योग में उदर श्वसन प्रक्रिया है। सोने से पहले और नींद से उठने के तुरंत बाद उदर श्वसन दस मिनट किया जा सकता है। श्वांस की गति तेज हो तो इसे अपनाया जा सकता है। भ्रामरी प्राणायाम, जिसमें कंठ से भौरे जैसा गुंजन पैदा किया जाता है। भ्रामरी प्राणायाम के अभ्यास से मस्तिष्क में एक प्रकार की तरंग उत्पन्न होती है जिससे मस्तिष्क, स्नायविक तंत्र और अंत:स्रावी तंत्र के विक्षेप दूर होते हैं और व्यक्ति शांति व संतोष का अनुभव करता है। अनिद्रा की शिकायत दूर होती है।यह डिप्रेशन को दूर करने में कारगर है।परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती बताते हैं कि इस प्राणायाम के अभ्यास से नाइट्रिक ऑक्साइड उत्पन्न होता है, जो अनिद्रा को दूर करने में सहायक होता है।वैज्ञानिकों ने तो अब इसका स्प्रे भी तैयार कर लिया है। हमारे ऋषि और मनीषियों ने काफी पहले से अपनाया।नाइट्रिक ऑक्साइड संक्रमण के दौरान फेफड़ों के उच्च दबाव को नियंत्रित करने में बहुत उपयोगी है। नाइट्रिक ऑक्साइड शरीर में वायरस के प्रसार को 82% तक कम कर देता है।
पारंपरिक यौगिक प्राणायाम, भ्रामरी,उज्जयी और नाड़ीशोधन प्राणायाम का स्नायु तंत्र पर सीधा प्रभाव पड़ता है। आज वैज्ञानिक भी जान गए हैं कि दाएं और बांए नासिका छिद्र से श्वांस लेने -छोड़ने से दिमाग के दोनो गोलार्द्धों में सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं। मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों को बहुत लाभ पहुंचता है।कोविड काल में आॅनलाईन क्लास के चलन से नुकसान हो रहा है।
ऑनलाइन क्लास के कारण घंटो मोबाइल या लैपटॉप का उपयोग करते है जिसकी बजह से उनकी आँखों और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। ज्यादा उपयोग से कम उम्र में ही उनको चश्मे लगवाने पड़ते है और बच्चो में कम उम्र में ही दर्द की समस्या देखने को मिलती है।
योग बच्चो के तनाव,शारीरिक अंगों को सुचारू बनाने में प्रभावी भूमिका अदा करता है।योगनिद्रा काफी अभ्यास है।अनिद्रा तथा तनाव की स्थिति में काफी कारगर है।
हाल में वैज्ञानिकों ने कहा धर्म आस्था है तो आध्यात्म साकारात्मकता की खोज करना। योग जीवन में सकारात्मकता लाने का सशक्त माध्यम है।योग एक समग्र पद्धति है,जो शरीर,प्राण और मन में सामंजस्य की स्थिति पैदा करता है।
(योग के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती से बातचीत पर आधारित)

कोरोना से बचाव में मददगार है भ्रामरी

शारीरिक व मानसिक व्याधियों को दूर करने में योग की भूमिका से हम सब वाकिफ रहे हैं। पर हाल ही एक शोध से पता चला कि कोरोना संक्रमण का असर कम करने में योग की बड़ी भूमिका हो सकती है। जर्नल रेडॉक्स बायोलॉजी के मुताबिक, शोध से पता चला है कि नाइट्रिक ऑक्साइड कोविड-19 से उबरने में मदद कर सकती है और लाखों लोगों की जान बचा सकती है। यह एक एंटीमाइक्रोबियल और एंटी-इंफ्लामेटरी मोलिक्यूल है, जो पल्मोनरी वैस्क्युलर के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हम जानते हैंं कि नाइट्रिक ऑक्साइड शरीर में प्राकृतिक रूप से उत्पादित होने वाला एक पदार्थ है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है। परमहंस निरंजनानंद सरस्वती के मुताबिक ओम् के उच्चारण के साथ भ्रामरी प्राणायाम करने से नाइट्रिक आक्साइड 15 गुणा ज्यादा उत्पादित होता है।

बात तो कोविड-19 और योग के प्रभावों पर होनी है। पर शुरूआत एक औपनिषदिक कथा से। कौशल प्रदेश के विख्यात ऋषि थे अश्वलायन। पांडित्य उनके पास था, पर अनुभवात्मक ज्ञान नहीं था। ऐसे समझिए कि वे आम के बारे में जानते थे। पर आम का स्वाद चखा न था। ऋषि थे तो शब्दों से उन्हें सब पता था। शस्त्रों में जो कहा गया है, उन्हें ज्ञात था। सिद्धांत से परिचित थे। पर जब ब्रह्मविद्या की जिज्ञासा हुई तो महर्षि पिप्पलाद के पास ऐसे गए मानों उनका दिमाग खाली हो और वे कुछ भी नहीं जानते हैं। समिधा लेकर नम्रतापूर्वक खड़े हो गए। महर्षि पिप्पलाद के योग्य शिष्य बन गए। तभी उनका सैद्धांतिक ज्ञान अनुभव में तब्दील हो पाया था।

सैद्धांतिक ज्ञान हो और अनुभवात्मक ज्ञान न हो तो उसका परिणाम क्या होता है, इसे ऐसे समझिए।  बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती शिष्यों के साथ अपने अनुभव, अपना संस्मरण साझा किया करते थे। वे जब विदेश भ्रमण पर थे तो हवाई जहाज में उनकी मुलाकात एक ऐसे अन्वेषी से हो गई, जिसने रसगुल्ला पर अनुसंधान किया था। उसने रसगुल्ले के बारे में काफी कुछ बतलाया। पर इसी बीच एक घटना घटित हो गई। स्वामी जी के पास रसगुल्ला था। उन्होंने बैग से निकाला और सहयात्री को भी खाने के लिए दिया। सहयात्री ने रसगुल्ला कभी देखा न था। लिहाजा वह पूछ बैठा कि यह क्या है? स्वामी जी ने कहा कि यह वही चीज है, जिसके बारे में आप लंबा व्याख्यान दिए जा रहे थे….। इसलिए मैं इस कॉलम में अक्सर सलाह देता हूं कि लेख या किताबें पढ़कर कभी योगाभ्यास नहीं करना चाहिए। सैद्धांतिक ज्ञान योग्य योग शिक्षक के चयन और अभ्यास में तो सहायक होता है। पर जब अभ्यास करना हो तो योग्य प्रशिक्षक का मार्ग-दर्शन जरूरी है।

कोरोना महामारी की दूसरी लहर आई तो तमाम एहतियात के बावजूद मैं गंभीर रूप से कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गया। अनेक लोगों के फोन आते थे। वे कहते कि आप तो योग विद्या पर इतना लिखते हैं। यौगिक उपाय कीजिए। सब ठीक हो जाएगा। खैर, कोरोना की दूसरी लहर में अनेक लोगों का ज्वर दस-बारह दिनों तक भी रहता है। चिकित्सक कहते हैं कि छठा दिन महत्वपूर्ण है। यदि ज्वर न जाए तो चिकित्सकों की राय से स्ट्रायड के जरिए इलाज पर विचार होना चाहिए। मेरे चिकित्सक ने भी कुछ ऐसी अनुशंसा की। पर स्ट्रायड को लेकर तरह-तरह की आशंकाएं थीं। समस्या बढ़ती देख मैंने आठवें दिन अपने गुरू परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती का ध्यान करते हुए सो गया।

अगले दिन सुबह बिहार योग विद्यालय के एक वरिष्ठ संन्यासी का फोन आया। उन्होंने सुझाव दिया कि अन्य दवाओं के साथ ही महासुदर्शन चूर्ण लीजिए। बुखार उतर जाएगा। ठीक ही बुखार कम होने लगा और उतर गया। स्ट्रायड लेने की जरूरत ही न पड़ी। बीमारी के दौरान आक्सीजन का लेवर थोड़ा नीचे जाने लगा था तो उसी समय संभवत: गुरूजी की प्रेरणा से बिहार योग विद्यालय के पूर्व छात्र और दिल्ली के लोकप्रिय योगाचार्य शिवचित्तम मणि का फोन आ गया कि मकरासन, उदर श्वसन, नाड़ी शोधन प्राणायाम और भ्रामरी प्राणायाम करें। पर श्वास-प्रश्वास पर एकाग्रता के साथ। आर्श्चजनक ढंग से आक्सीजन के स्तर में सुधार हो गया और मानसिक शांति भी मिली।

कोविड-19 का दुष्प्रभाव मेरे वोकल कॉर्ड पर पड़ा था। आवाज एकदम दब गई थी। चिकित्सकों ने कहा कि इसके इलाज के पहले कई जांच की जरूरत होगी और आवाज लौटने में दो महीनों का वक्त लग सकता है। बिहार योग विद्यालय के वरिष्ठ संन्यासी और मेरे श्रद्धेय स्वामी जी ने इसके लिए काकी मुद्रा करने का सुझाव दिया। कहा कि इससे आवाज भी लौटेगी और फेफड़े को भी बल मिलेगा। यकीन मानिए कि काकी मुद्रा दो दिनों तक चार बार करने के साथ ही मेरी आवाज खुल गई। वोकल कॉर्ड की समस्या जाती रही। कोरोना संक्रमण खत्म होने के बाद कुछ योगाचार्यों की सलाह पर कपालभाती और भस्त्रिका प्राणायाम करने लगा। मुंह से और नाक से खून आने लगा। अजीब तरह का भारीपन महसूस हुआ। फिर जल्दी ही समझ में आया कि ये अभ्यास बीमारी से उबरने के पंद्रह-बीस दिनों बाद ही करने चाहिए।

आखिर कोरोना से संक्रमित मरीजों के लिए मकरासन, उदर श्वसन, नाड़ी शोधन प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम और काकी मुद्रा जरूरी क्यों है? मकसासन वैसे तो पीठ के नीचले भाग के दर्द या मेरूदंड की किसी भी गड़बड़ी में प्रभावकारी है। पर दमा और फेफड़े के रोगियों के लिए भी बेहद लाभकारी इसलिए है कि इससे फेफड़े में अधिक वायु प्रवेश करता है। इस आसन का महत्व एलोपैथी के चिकित्सकों ने भी समझा और खुलकर अनुशंसा की। उदर श्वसन से श्वसन का मार्ग प्रशस्त होता है। इसे श्वसन की सबसे स्वाभाविक व प्रभावी विधि माना जाता है। जाहिर है कि फेफड़े को मजबूती प्रदान करके आक्सीजन का स्तर सुधारने में इसकी भी बड़ी भूमिका होती है। हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है कि प्राण-वायु में अशांति के कारण दमा, खांसी, सरदर्द, आखों की बीमारियों सहित कई बीमारियां बिन बुलाए आ जाती है। पर प्राण वायु संतुलित हो तो फेफड़े से लेकर रक्त और शरीर की सभी कोशिकाओं में आक्सीजन पर्याप्त रूप से रहता है। नाड़ी शोधन प्राणायाम, जिसे अनुलोम-विलोम भी कहा जाता है, पर अनेक अनुसंधान हुए हैं। रक्त में पर्याप्त आक्सीजन पहुंचाने में इसकी भूमिका अतुलनीय है।

जर्नल रेडॉक्स बायोलॉजी के मुताबिक, हाल ही में हुए एक शोध से ये बात सामने आई है कि नाइट्रिक ऑक्साइड कोविड-19 से उबारने में मदद कर सकती है और लाखों लोगों की जान बचा सकती है। शोध के अनुसार, ये एक एंटीमाइक्रोबियल और एंटी-इंफ्लामेटरी मोलीक्यूल है, जो पल्मानरी वैस्क्यूलर के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मूल रूप से, नाइट्रिक ऑक्साइड शरीर में प्राकृतिक रूप से उत्पादित एक पदार्थ है। शोधों से साबित हो चुका है कि भ्रामरी प्राणायाम प्राकृतिक रूप से उत्पादित होने वाले नाइट्रिक ऑक्साइड में पंद्रह फीसदी तक की वृद्धि कर देता है। इसलिए योगियों ने कोरोनाकाल में भ्रामरी प्राणायाम पर काफी बल दिया। काकी मुद्रा से मानसिक तनाव कम होता है। रक्तचाप सामान्य रहता है। पाचन-क्रिया ठीक रहती है औऱ रक्त शुद्ध होता है। गले से संबंधित बीमारियां ठीक होती हैं।

योगशास्त्रों के मुताबिक योगियों को काकी मुद्रा की प्रेरणा कौए से मिली थी। कहते हैं कि कौए कभी बीमार नहीं होते। उसकी वजह यह है कि वे अपनी चोंच से श्वास लेते हैं। योगियों ने खुद पर प्रयोग किया। वे अपने मुख को कौए के चोंच सदृश्य बनाकर हवा भरतें और थोड़ी देर बाद नाक से उसे छोड़ देतें। इसके कई फायदे दिखे। मानसिक तनाव कम होता है। रक्तचाप सामान्य रखता है। पाचन-क्रिया ठीक रहती है औऱ रक्त शुद्ध होता है। गला साफ होता है। आजकल चेहरे पर झुर्रियां न पड़े, इसलिए लड़कियों और महिलाओं में यह लोकप्रिय हो रहा है। स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते थे कि इसके नियमित अभ्यास से कौए के समान निरोग और दीर्घ जीवन प्राप्त होता है। इन अभ्यासों के साथ ही नेति किया जाए तो सोने पे सुहागा। इन तथ्यों से साफ है कि कोरोना संक्रमण और उसके कुप्रभावों को दूर करने में योग बेहद प्रभावकारी है।  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)         

बिहार योग : ऐसे फैलती है सुगंधित पुष्प की खुशबू

सुगंधित पुष्प अपना प्रचार खुद करता है। यह शाश्वत सत्य बिहार योग या सत्यानंद योग के मामले में पूरी तरह चरितार्थ हो रहा है। बिहार योग चार महीनों के भीतर दूसरी बार चर्चा में है। पहले योगनिद्रा के कारण चर्चा में था। अब यौगिक कैप्सूल और गुरूकुल शिक्षा पद्धति को लेकर चर्चा में है। दोनों ही बार चर्चा की वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने। वैसे तो बिहार योग की उपस्थिति एक सौ से ज्यादा देशों में है और जर्मनी में योग शिक्षा का आधार ही बिहार योग है। पर अपने देश में चिराग तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ होती रही।  परिस्थितियां बदलीं तो बिहार के सुदूरवर्ती मुंगेर जिले में उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर खिले योग रूपी फूल की खुशबू का अहसास सहज ही हुआ। उसी का नतीजा है कि बीते साल बिहार योग विद्यालय को श्रेष्ठ योग संस्थान का प्रधानमंत्री पुरस्कार मिला तो इसके एक साल पहले यानी सन् 2017 में बिहार योग विद्यालय के निवृत्त परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती को पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। यही नहीं, केंद्र सरकार देश में योग के संवर्द्धन के लिए जिन चार योग संस्थानों की सहायता ले रही है, उनमें बिहार योग विद्यालय भी है।        

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आधुनिक युग के जरूरतों को ध्यान में रखकर बिहार योग या सत्यानंद योग पद्धति से तैयार योग कैप्सूल में क्या खास दिखा कि वे खुद उसके दीवाने हुए और उसके बारे में देशवासी भी जानें, इसकी जरूरत समझी? इस सवाल पर विस्तार से चर्चा होगी। पर पहले योग की परंपरा और आध्यात्मिक चेतना के विकास से सबंधित कुछ ऐसी बातों की चर्चा, जिनके जरिए “फिट इंडिया मूवमेंट” की पहली वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम के मौके पर देशवासियों के बीच बड़ा संदेश गया।

प्रधानमंत्री के खुद का जीवन योगमय है और योग को अंतर्राष्ट्रीय फलक पर पुनर्स्थापित करने में उनका योगदान सर्वविदित है। उन्होंने “फिट इंडिया मूवमेंट” के कार्यक्रम में चर्चा के लिए फिटनेस की दुनिया के लोगों को आमंत्रित किया तो गुरूकुल परंपरा वाले संस्थान के संन्यासी से बात करना न भूले। उन्होंने इसके लिए स्वामी शिवध्यानम सरस्वती के रूप में एक ऐसे व्यक्ति का चयन किया, जो योग की गौरवशाली परंपरा वाले संस्थान बिहार योग विद्यालय के निवृत्त परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के शिष्य हैं और जिन्होंने आईआईटी, दिल्ली जैसे संस्थान से उच्च तकनीकी शिक्षा हासिल करने के बाद चेतना के उच्चतर विकास के लिए अलग मार्ग चुन लिया था। प्रधानमंत्री का यह कदम कोई अकारण नहीं रहा होगा। नई शिक्षा नीति में कई मामलों में गुरूकुल परंपरा की झलक दिखाई गई है। वे युवापीढ़ी को जरूर यह बताना चाहते होंगे कि गुरूकुल परंपरा और शास्त्रसम्मत योग विद्या का प्रभाव कैसा होता है।

स्वामी शिवध्यानम सरस्वती ने प्रधानमंत्री के सवालों का जबाव देते हुए स्वामी शिवानंद सरस्वती की गुरू-शिष्य परंपरा और बिहार योग परंपरा का वर्णन इस तरह किया कि नवीन और प्राचीन गुरूकुल परंपरा में एकरूपता की झांकी प्रस्तुत हो गई। अनेक लोगों को हैरानी हुई होगी कि आधुनिक जमाने में भी ऐसा गुरूकुल है। स्वामी शिवध्यानम उन्नत गुरू-शिष्य परंपरा के न होतें तो उनके पास एक मौका था कि प्रधानमंत्री के समाने खुले मंच पर अपनी पीठ खुद थपथपा सकते थे। पर गुरूकुल योग विद्या का असर देखिए कि उन्होंने अपनी योग परंपरा के तीन मुख्य संतों स्वामी शिवानंद सरस्वती, स्वामी सत्यानंद सरस्वती और स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के आदर्शों की चर्चा करते हुए आश्रम के अपने अनुभव को इस तरह साझा किया कि आदर्श गुरू-शिष्य परंपरा और शास्त्रसम्मत योग विद्या को लेकर नईपीढी के बीच सकारात्मक संदेश गया। 

बिहार योग-सत्यानंद योग एक ऐसी परंपरा है, जिसमें शास्त्रीय और अनुभवात्मक ज्ञान और आधुनिक दृष्टिकोण का समन्वय है। इसमें योग की प्राचीन पद्धति को आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया है। तमिलनाडु में जन्मे और पेशे से चिकित्सक स्वामी शिवानंद सरस्वती ने सत्यानंद सरस्वती जैसे शिष्य को आगे करके योग विद्या की ऐसी गंगा-जमुनी बहाई कि आज दुनिया के लोग उसमें डुबकी लगाकर आनंदमय जीवन जी रहे हैं। स्वामी सत्यानंद सरस्वती की समाधि के बाद स्वामी निरंजनानंद सरस्वती इस महायज्ञ को आगे बढ़ा रहे हैं।  

अब योग कैप्सूल की बात। विश्वव्यापी कोरोना वायरस का तांडव अपने देश में भी शुरू हुआ तो केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने योग संबंधी प्रोटोकॉल तैयार करवाए थे। मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान ने 3-6 वर्ष के बच्चों के लिए, नवयुवतियों के लिए, गर्भवती महिलाओँ के लिए, स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए औऱ चालीस वर्ष से ऊपर की महिलाओं के लिए योग संबंधी प्रोटोकॉल तैयार किए। स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने आधुनिक जमाने के लोगों की जीवन-पद्धति और दैनिक जरूरतों को ध्यान में रखकर कई साल पहले कुछ योग विधियां बतलाई थी, जिसके समन्वित रूप को योग कैप्सूल कहा था। प्रधानमंत्री को स्वामी निरंजन का योग कैप्सूल भा गया। शायद इसकी मुख्य वजह इसमें मंत्र-ध्वनि विज्ञान और योगनिद्रा का समावेश होना है, जिनके कारण शारीरिक व मानसिक बीमारियां दूर ही रहती हैं। 

स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के योग कैप्सूल कुछ इस तरह है – सुबह उठते ही महामृत्युंजय मंत्र व गायत्री मंत्र ग्यारह बार पाठ और दुर्गाजी के बत्तीस नामों का तीन बार पाठ। पहला मंत्र शारीरिक व मानसिक आरोग्य के लिए, दूसरा जीवन में बौद्धिक व भावनात्मक प्रतिभा की जागृति के लिए और तीसरा मंत्र जीवन से क्लेश व दु:ख की निवृत्ति एवं संयम व समरसता की प्राप्ति के लिए है। दैनिक चर्या के बाद पांच आसनों यथा तड़ासन, तिर्यक तड़ासन, कटि चक्रासन, सूर्य नमस्कार और सर्वांगासन का अभ्यास। इसके बाद नाड़ी शोधन और भ्रामरी प्राणायामों का अभ्यास। शाम को काम-काज से निवृत्त होने के बाद योगनिद्रा और रात को सोने से पहले दस मिनट मन को एकाग्र करने के लिए धारणा का अभ्यास। इसे ध्यान भी कहा जा सकता है।

बिहार योग विद्यालय के संस्थापक महासमाधिलीन परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने कहा था – “स्वामी निरंजन का व्यक्तित्व नए युग के अनुरूप है और वह आज की पीढ़ी के अनुरूप सोच सकते हैं।” स्वामी निरंजन अपने गुरू की कसौटी पर खरे उतरे। उनका यौगिक कैप्सूल योग साधना की एक ऐसी पद्धति है, जिसे अपनाने वाले अपने जीवन में बदलाव स्पष्ट रूप से देखने लगे हैं। देश-विदेश के लाखों लोग इस पद्धति को अपना कर निरोगी जीवन जी रहे हैं। योग विज्ञान के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है।

स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं – नाद सृष्टि का प्रथम व्यक्त रूप है। बाइबिल का प्रथम वाक्य है – “आरंभ में केवल शब्द था और वह शब्द ही ईश्वर था।“ भारतीय दर्शन के मुताबिक वह शब्द कुछ और नहीं, बल्कि “ॐ” था। ॐ मंत्र तीन ध्वनियों से मिलकर बना है – अ, उ और म। इनमें प्रत्येक ध्वनि के स्पंदन की आवृत्ति अलग-अलग होती है, जिससे चेतना पर उनका अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। इसी तरह ॐ नमः शिवाय कई नादो का समुच्य है। गायत्र मंत्र में चौबीस ध्वनियां हैं। मंत्र ध्वनि का विज्ञान है। इसकी सहायता से अपनी बहिर्मुखी चेतना को अंतर्मुखी बनाकर पुन: चेतना के मूल स्रोत तक पहुंचा जा सकता है।  

अनेक लोग किसी देवी-देवता को स्मरण करके मंत्रों का जप करते हैं। पर विदेशी लोग जब इन्हीं मंत्रों के जप करते हैं तो उनके मन में तो हमारे किसी देवी-देवता का रूप नहीं होता। फिर भी वे लाभान्वित होते हैं। स्वामी सत्यानंद सरस्वती तो कहते थे कि मंत्रों की साधना करते वक्त किसी भी विषय़ पर मन को एकाग्र करने की कोशिश ही नहीं करनी चाहिए। मन को खुलकर अभिव्यक्त होने देना चाहिए। मंत्र विज्ञान प्राचीन काल से विश्व के सभी भागों में व्यापक रूप से प्रयोग में था। इस विज्ञान की ओर अधुनिक विज्ञानियों की नजर गई है और इसका पुनरूत्थान किया जा रहा है। उन्हें पता चल गया है कि मंत्रों की शक्ति से ही प्रकृति और ब्रह्मांड के रहस्यों को उद्घाटित किया जा सकता है। आने वाले समय में मंत्रों का उपयोग एक वैज्ञानिक उपकरण के रूप में उसी तरह होगा, जिस तरह मौजूदा समय में लेजर या इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप का उपयोग प्रकृति के गहनतर आयामों को जानने के लिए किया जाता है।  

जहां तक योगनिद्रा की बात है तो प्रत्याहार की शक्तिशाली और मौजूदा समय में प्रचलित विधि स्वामी सत्यानंद सरस्वती की देन है। उन्होंने तंत्रशास्त्र से इस विद्या को हासिल करके इतना सरल, किन्तु असरदार बनाया कि आज दुनिया भर में इसका उपयोग मानसिक बीमारियों से लेकर कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों तक के उपचार में हो रहा है। दरअसल यह शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विश्रांति का एक व्यवस्थित तरीका है। गहरी निद्रा की स्थिति में डेल्टा तरंगें उत्पन्न होती हैं और ध्यान की अवस्था में अल्फा तरंगें निकालती हैं। योगाभ्यास के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। यानी योगाभ्यासी की चेतना अंतर्मुखता औऱ बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। चेतना जब बहिर्मुख होती है तो मन उत्तेजित हो जाता है औऱ अंतर्मुख होते ही सभी उत्तेजनाओं से मुक्ति मिल जाती है। इस तरह योगनिद्रा के दौरान बीटा औऱ थीटा की अदला-बदली होने की वजह से ही मन काबू में आ जाता है, शिथिल हो जाता है। मन की सजगता और शिथिलीकरण के लिए यह अचूक विधि मानी जाती है।

अब योग विधियों को लेकर वैज्ञानिक अनुसंधानों और उनके नतीजों की बात। बिहार योग विद्यालय ने स्पेन के बार्सिलोना स्थित अस्पताल में शल्य चिकित्सा कराने पहुंचे तनावग्रस्त मरीजों पर मंत्र के प्रभावों पर शोध किया। ऐसे सभी मरीजों को एक कमरे में बैठाकर बार-बार सस्वर ॐ मंत्र का उच्चारण करने को कहा गया था। ईईजी और अन्य चिकित्सा उपकरणों के जरिए देखा गया कि मंत्रोचारण से भय, घबराहट और चंचलता के लिए जिम्मेदार बीटा तरंगें कम होती गईं औऱ अल्फा तरंगों की वृद्धि होती गई। स्पेन में हुए शोध से साबित हुआ था कि मन की तरंगें सही रूप में उपयोग में लाई जाएं तो हमारा जीवन सुरक्षित हो सकता है।

अनिद्रा, तनाव, नशीली दवाओं के प्रभाव से मुक्ति, दर्द का निवारण, दमा, पेप्टिक अल्सर, कैंसर, हृदय रोग आदि बीमारियों पर किए गए अनुसंधानों से योगनिद्रा के सकारात्मक प्रभावों का पता चल चुका है। अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में किए गए एक अध्ययन में देखा गया कि योगनिद्रा के नियमित अभ्यास से रक्तचाप की समस्या का निवारण होता है। अमेरिका के शोधकर्ताओं ने योगनिद्रा को कैंसर की एक सफल चिकित्सा पद्धति के रूप में स्वीकार किया है। टेक्सास के रेडियोथैरापिस्ट डा. ओसी सीमोंटन ने एक प्रयोग में पाया कि रेडियोथेरापी से गुजर रहे कैंसर के रोगी का जीनव-काल योगनिद्रा के अभ्यास से काफी बढ़ गया था।

इन दृष्टांतों से समझा जा सकता है कि आधुनिक युग में योग कैप्सूल को जीवन-पद्धति में शामिल किया जाना कितना लाभप्रद है। शायद इसी वजह से प्रधानमंत्री चाहते हैं लोग योग कैप्सूल को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं और इसलिए उन्होंने सार्वजनिक मंच से इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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