योग की स्वीकार्यता और कमजोर होती मजहब की दीवारें

किशोर कुमार

आजादी की 75वीं वर्षगांठ को आजादी के अमृत महोत्सव के तौर पर मनाते हुए सूर्य नमस्कार की अहमियत को भी समझा जाना देश के उज्जवल भविष्य के लिए गहरा और बेहतरीन संदेश है। सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।। यानी सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े की कामना के पीछे मुख्य रूप से योगबल की ही बात है। पर देश पर लगातार विदेशियों के आक्रमण के दौरान आत्मविश्वास खो देने वालों का मिजाज ऐसा बना कि अपनी ही गौरवशाली प्राचीन संस्कृति पर प्रसन्नतापूर्वक आक्षेप करने लगे। कुछ मजहब के नाम पर तो कुछ दास मानसिकता के कारण। यह सुखद है कि राष्ट्रवादी ताकतों के केंद्रीय भूमिका में आते ही ऐसी नकारात्मक प्रवृत्तियों वाले लोग हाशिए पर जा रहे हैं। तभी सूर्य नमस्कार के विरोध को तवज्जो नहीं मिल रही है।   

अगले 20 फरवरी 2022 तक आयोजित योगामृत महोत्सव में 75 करोड़ सूर्य नमस्कार का लक्ष्य रखा गया है। निश्चित रूप से योगामृत महोत्सव जन-सामान्य को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाने के लिहाज से बेहद उपयोगी साबित होगा। इस बार यह आयोजन ऐसे वक्त में होना है, जब अपने वेदांत दर्शन के कारण दुनिया में भारत का मान बढ़ाने वाले स्वामी विवेकानंद और योगबल की बदौलत दुनिया को चमत्कृत करने वाले महर्षि महेश योगी की जयंती (12 जनवरी) भी है। इन दोनों महान योगियों को नमन, जिनके यौगिक मंत्रों की अहमियत सर्वकालिक है।

भारत की योग विद्या को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने के लिए हमारे ऋषि-मुनि अग्रणी भूमिका निभाते रहे हैं। उन्नीसवीं सदी के अंत में स्वामी विवेकानंद ने विस्मृत योग विद्या को फिर से दुनिया के सामने उपस्थित किया और महर्षि महेश योगी ने अपने भावातीत ध्यान के जरिए देश का मान बढ़ाया। पर उन्हें इस काम में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। जब यूरोपीय विद्वान बीएम लेजर लैजरियो कह देते कि फलां योग विधि उपयोगी है तो उनकी बातों को पूर्वी देशों के लोग भी मानने को तैयार हो जाते। पर भारतीय ऋषियों को योग विधियों को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर कसकर बताना पड़ता था।

योग विद्या के जानकार बताते है कि आजादी से पहले प्रख्यात योगी टी कृष्णामाचार्य की वजह से तत्कालीन मैसूर प्रांत के लोग सूर्य नमस्कार से परिचित हो चुके थे। पर औंध (मौजूदा पुणे के आसपास का इलाका) के राजा भवानराव श्रीनिवासराव पंत प्रतिनिधि की वजह से सूर्य नमस्कार को विदेशों में लोकप्रियता मिली थी। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने सूर्य नमस्कार की वैज्ञानिकता पर पुस्तक लिखी तो मानों मजहब की दीवारें दुनिया भर में गिरने लगीं। लोगों ने अनुभव किया कि समग्रता में योग और उसका अंग सूर्य नमस्कार विज्ञान है और इसका किसी मजहब ले लेना-देना नहीं है। फिर तो इस्लामिक देशों में भी सूर्य नमस्कार योग को लेकर पहले जैसा दुराग्रह नहीं रहा। 

भारत में भी ऐसे योगाभ्यासियों की तादाद तेजी से बढ़ी है, जो योग को धर्मिक कर्मकांडों का हिस्सा या धर्म विशेष का अंग मानकर उससे दूरी बनाए हुए थे। ऐसे लोग बिना किसी आग्रह-पूर्वाग्रह के अपनी काया को स्वस्थ्य रखने के लिए योग की किसी भी विधि को अपने से परहेज नहीं कर रहे हैं। कुछ साल पहले ही उत्तराखंड में ऐतिहासिक काम हुआ। कोटद्वार के कण्वाश्रम स्थित वैदिक आश्रम गुरुकुल महाविद्यालय में विश्व का संभवत: पहला मुस्लिम योग साधना शिविर आयोजित किया गया था। यह सुखद अनुभव रहा कि शिविर में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं और पुरूषों ने भाग लिया। शिविर में दूसरे धर्मों के लोगों ने भी हिस्सा लिया। योगीराज ब्रह्मचारी डा. विश्वपाल जयंत ने मुख्यमंत्री की मौजूदगी में मुस्लिम समुदाय समेत सभी समुदाय के साधकों को बज्रासन, शशंकासन, शेरासन, कष्ठासन, बज्रासन और मयूर पद्मासन का अभ्यास कराया।

वडोदरा का तदबीर फाउंडेशन योग को लेकर खासतौर से मुस्लिम महिलाओं का मिजाज बदलने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। इसके प्रशिक्षक कुरान के आयतों के उच्चारण के साथ योगाभ्यास कराते हैं। रांची की राफिया नाज की संस्था “योगा बिआण्ड रिलीजन” (वाईबीआर) अब तक पांच हजार से ज्यादा छात्राओं को योग में प्रशिक्षित कर चुकी है। बकौल राफिया शुरू में उन्हें भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। पर लोगों को बात समझ में आती गई तो बाधाएं भी दूर होती गईं।

जिस पाकिस्तान में लंबे समय तक योग के लिए दरवाजा बंद था, वहां भी चीजें तेजी से बदली हैं। योग के वैश्विक बाजार से आकर्षित पाकिस्तानी योग गुरू जब योग की व्याख्या करके उसे शारीरिक पीड़ा से ग्रस्त लोगों तक ले गए और इसके लाभ महसूस किए जाने लगे तो तीन-चार सालों के भीतर तस्वीर पूरी तरह बदलती दिख रही है। वरना सबको याद ही है कि इस्लामाबाद में 10 मार्च 2015 को आर्ट ऑफ लिविंग केंद्र को आग के हवाले कर दिया गया था। तब इसका किसी ने विरोध तक नहीं किया था। लोगों को योग से इतना नफरत था।

अब पाकिस्तान में योग के विरोध की बात तो छोड़ ही दीजिए, विवाद इस बात को लेकर है कि योग मूल रूप से हिंदुस्तान का है या पाकिस्तान का। पाकिस्तान के एक चर्चित योग गुरू शमशाद हैदर ने यह कहकर नया विवाद को जन्म दिया है कि महर्षि पतंजलि पर भारतीयों का दावा सही नहीं है। इसलिए कि महर्षि पतंजलि का ताल्लुकात मुल्तान से था और मुल्तान पाकिस्तान में है। हालांकि उनका यह दावा निरर्थक ही है। इसलिए कि जब महर्षि पजंजलि जन्में थे तब पाकिस्तान कहां था? खैर, लोगों में योग की स्वीकार्यता दिलाने के लिए मार्केटिंग का यह तरीका भी चलेगा। वह इस तर्क के साथ ही यह बात मजबूती से रखते हैं कि योग को किसी मजहब से जोड़कर देखना उचित नहीं। यह शरीर का विज्ञान है।

पर इन तमाम उदाहरणों के बावजूद योग को लेकर अंधविश्वास की परतें इतनी मोटी हो चुकी हैं कि उन्हें हटाने के लिए बड़ी मशक्कतें करनी पड़ रही है। जो लोग अब भी योग को धर्म के दायरे में देखते हैं उन्हें यह पता होना चाहिए कि 11वीं सदी में फ़ारसी विद्वान लेखक, वैज्ञानिक, धर्मज्ञ तथा विचारक अल-बरुनी ने पतंजलि के योग-सूत्र का अरबी में अनुवाद करके उसे दुनिया भर में प्रचारित किया था।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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