योगियों के उपदेशों पर मुहर लगाता विज्ञान

किशोर कुमार

“योग भगाए रोग” न कभी नारा था, न है। योग तो अब कैंसर जैसी घातक बीमारी में लाभकारी साबित हो रहा है। तभी भारत ही नहीं, बल्कि विकासित देशों के चिकित्सा विज्ञानी भी कैसर रोगियों के लिए योग की अनुशंसा अनिवार्य रूप से करने लगे हैं। टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के एक अध्ययन से पता चला है कि स्तन कैंसर के रोगियों के इलाज में योग को शामिल करने से मृत्यु दर में कोई पंद्रह फीसदी की कमी हो जाती है। कैंसर रोगियों पर योग के प्रभावों को लेकर अमेरिका में भी कई अध्ययन कराए गए हैं। सबके परिणाम ठीक वैसे ही मिले हैं, जैसा कि भारत के योगी दशकों से कहते रहे हैं।

भारत के वैज्ञानिक संत कई दशकों से कहते आ रहे हैं कि लोग न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी बीमार होते हैं। इसी के परिणाम स्वरूप हृदय रोग और कैंसर जैसी प्राण घातक बीमारियां भी आम हो गई हैं। स्वामी शिवानंद सरस्वती, स्वामी कुवल्यानंद और स्वामी सत्यानंद सरस्वती जैसे संतों ने वैज्ञानिक अनुसंधानों और अपने अनुभवों के आधार पर सिद्ध किया था कि योग में इतनी शक्ति है कि उससे न केवल शांति, पूर्णता और शाश्वत आनन्द की प्राप्ति की जा सकती है, बल्कि आधुनिक युग में होने वाले कैंसर और हृदय रोग जैसे घातक रोगों से निजात पाने में भी मदद मिल जाती है। इन बातों के पक्ष में अनेक प्रमाण दिए जाने के बावजूद चिकित्सा विज्ञानियों के लिए ये बातें वर्षों पहेली बनी रहीं। पर अब दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञानी कैंसर के उपचार को असरदार बनाने के लिए योग की महती भूमिका को खुले तौर पर स्वीकार कर रहे हैं।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में कैंसर 12.8 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अध्ययन के नतीजों से तो पता चलता है कि हर नौ भारतीयों में से एक को अपने जीवनकाल के दौरान कैंसर हो जाएगा। अध्ययन से यह बात भी स्पष्ट हुई कि प्रत्येक 68 पुरुषों में से एक को फेफड़े का कैंसर होगा और प्रत्येक 29 महिलाओं में से एक को स्तन कैंसर होगा। कुछ खास प्रकार के कैंसर की त्वरित पहचान और उसकी रोकथाम संभव होने के बावजूद हालात बिगड़ते जाना चिंता का सबब बना हुआ है। पर योग के प्रयोग से मिले परिणाम सांत्वना प्रदान करने वाले हैं। केंद्रीय मंत्री श्रीपद यसो नायक दो साल पहले बंगलुरू स्थित स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान इंस्टीच्यूट के दौरे पर थे तो उनका ऐसे मरीजों से साक्षात्कार हुआ था, जिन्हें नियमित योगाभ्यास से ही कैंसर जैसी घातक बीमारी से निजात मिल गई थी।

हर साल सितंबर माह को रक्त कैंसर जागरूकता माह के तौर पर मनाया जाता है। इस दौरान विविध स्तरों पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसी के तहत अमेरिकन ऑकोलॉजी इंस्टीट्यूट (एओआई), हैदराबाद की ओर से बड़े पैमाने पर आयोजित कार्यक्रम में रेडिएशन ऑकोलॉजिस्ट डॉ. सुनीता मुलिंटी ने कई उदाहरणों के जरिए बतलाया कि योग के साथ कैंसर का उपचार कितना असरदार होता है। केवल योगनिद्रा के ही चमत्कारिक परिणाम मिलने लगते हैं। आस्ट्रेलिया के मनश्चिकित्सक डॉ. एइनसाइ मीरेस तो काफी पहले ही आपने शोध के के आधार पर बतला चुके हैं कि योगनिद्रा के अभ्यास से मलाशय का कैंसर कम हो जाता है। वहीं फेफड़ों में प्राथमिक कैंसर से उत्पन्न होने वाले द्वितीयक कैंसर का बढ़ना रूक जाता है। ऐसा इसलिए कि रोग प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत हो जाती है।

बंगलुरू स्थित एचसीजी कैंसर सेंटर की चिकित्सक डॉ. दीपिका के मुताबिक, “योग कोर्टिसोल के स्तर को कम करने में मदद करता है, जो तनाव के लिए जिम्मेदार हार्मोन है। इसके कारण रिकवरी की दर बढ़ जाती है। मुंबई स्थित एक सौ साल से भी ज्यादा पुराने योग संस्थान की निदेशक, भारतीय योग संघ और अंतर्राष्ट्रीय योग बोर्ड की अध्यक्ष डॉ. हंसाजी योगेन्द्र का अनुभव है कि योग के नियमित अभ्यास से  हार्मोनल संतुलन हो जाता है। वे कैंसर रोगियों के लिए आसनों में पर्वतासन, सुप्त बद्ध कोणासन, सेतुबंदासन, मत्स्यासन, वीरभद्रासन, ताड़ासन, विपरीतकरणी आदि को बेहद असरदार मानती हैं।  

टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के अध्ययन के लिए जो योग प्रोटोकॉल बनाए गए थे, उनमें नियमित अवधि के विश्राम और प्राणायाम के साथ सौम्य और पुनर्स्थापनात्मक योगासन शामिल किए गए थे। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अधीनस्थ मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान की ओर से कैंसर के मरीजों के लिए षट्कर्म में विशेष तौर से जलनेति व कपालभाति और प्रत्याहार में योगनिद्रा को अनिवार्य बताया गया है। इसके साथ ही नाडीशोधन प्राणायाम व भ्रामरी प्राणायाम और आसनों में ताड़ासन, कटिचक्रासन, वज्रासन, अर्द्ध उठासन, भुजंगासन, शशंकासन, बलासन और सुप्त बंध कोनासन को प्रमुख माना गया है। यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन का भी मानना है कि कैंसर के मरीजों के लिए शिथलीकरण के योगाभ्यास बेहद लाभप्रद साबित होते हैं।

यदि विस्तार से जानना हो कि योग से कैंसर के मरीजों की रिकवरी आसान क्यों हो जाती है तो “यौगिक मैनेजमेंट ऑफ कैंसर” नामक पुस्तक का अध्ययन अनिवार्य रूप से करना चाहिए। स्वामी सत्यानंद सरस्वती के मार्ग-दर्शन में योग रिसर्च फाउंडेशन के विज्ञान-सम्मत अध्ययनों के आधार पर इस पुस्तक का प्रकाशन किया गया है। इसमें विस्तार से विश्लेषण है कि कैंसर के मरीजों को किन परिस्थितियों में कौन-से योगाभ्यास क्यों, कब और कितना करना चाहिए। मुंबई की प्रख्यात चिकित्सक रहीं स्वामी डा. निर्मलानंद इस पुस्तक की लेखिका हैं, जो बिहार योग विद्यालय की संन्यासी हैं। इस पुस्तक में एक प्रसंग है कि किस तरह आस्ट्रेलिया के कैंसर शोध संस्थान के चिकित्सकों ने कैंसर के छह मरीजों को जबाव दे दिया था और वे सभी मरीज नियमित रूप से योगनिद्रा, प्राणायाम और अजपा जप का अभ्यास करके चौदह वर्षों से भी ज्यादा जीवित रहे।

मौजूदा समय में बड़ी संख्या में लोगों का ज्ञात हो चुका है कि कैंसर बेलगाम क्यों है। अमेरिका के दो महत्वपूर्ण संगठनों अमेरिकन कैंसर सोसायटी और नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के मुताबिक, मुख्य रूप से तनाव, शराब, मोटापा, तंबाकू के साथ ही अनेक प्रकार के संक्रमणों के कारण कैंसर बेलगाम है। प्रदूषण उत्प्रेरक का काम कर रहा है। पर जहां तक उपचार की बात है, तो सफलता के तमाम प्रसंगों के बावजूद हम जानते हैं कि हर पैथी की अपनी सीमाएं होती हैं। योग की भी सीमाएं हैं। इसलिए बचाव से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं। समय रहते योग को जीनव-शैली बना लेने में ही भलाई है।    

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

अजपा जप : कई मर्ज की एक दवा

किशोर कुमार //

नींद क्यों नहीं आती? क्यों बच्चे तक अनिद्रा के शिकार हो रहे हैं? इन सवालों का सीधा-सा जबाव है कि स्ट्रेस हार्मोन कर्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है और मेलाटोनिन का स्राव कम हो जाता है तो नींद समस्या खड़ी होती है। स्पील एप्निया, इंसोमनिया आदि कई प्रकार की बीमारियों के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। पिछले लेखों में इस पर व्यापक रूप से चर्चा हुई थी। इससे बचने के आसान यौगिक उपायों जैसे योगनिद्रा, अजपा जप और भ्रामरी प्राणायाम की भी चर्चा हुई थी। पाठक चाहते थे कि योगनिद्रा और अजपा जप पर विस्तार से प्रकाश डाला जाए। योगनिद्रा के बारे में बीते सप्ताह विस्तार से चर्चा की गई थी। इस बार अजपा जप का विश्लेषण प्रस्तुत है।    

इस विश्लेषण का आधार बिहार योग विद्यालय का अध्ययन और अनुसंधान है। ब्रिटिश दैनिक अखबार “द गार्जियन” ने बीते साल भारत के दस शीर्ष योग संस्थानों के नाम प्रकाशित किए थे और उनमें पहला स्थान बिहार योग विद्यालय का था। बीसवीं सदी के महान संत और ऋषिकेश स्थित डिवाइन लाइफ सोसाइटी के संस्थापक स्वामी शिवानंद के पट्शिष्य परमहंस स्वामी  सत्यानंद सरस्वती ने पचास के दशक में बिहार के मुंगेर में उस संस्थान की स्थापना की थी। उसके बाद दुनिया भर की प्रयोगशालाओं के सहयोग से योग की विभिन्न विधियों का मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया। इसके बाद ही अजपा जप के बारे में कहा था – यह योग की ऐसी विधि है, जो नींद नहीं आती तो ट्रेंक्विलाइजर है, दिल की बीमारी है तो कोरामिन है और सिर में दर्द है तो एनासिन है।

अजपा जप की साधना तो किसी योग्य योग प्रशिक्षक से निर्देशन लेकर ही की जानी चाहिए। अजपा जप में आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार और धारणा या ध्यान सभी योग विधियों का अभ्यास एक साथ ही हो जाता है। इस तरह कहा जा सकता है कि अजपा जप स्वयं में एक पूर्ण अभ्यास है। महर्षि पतंजलि के योगसूत्र से भी इस बात की पुष्टि होती है। उसमें कहा गया है कि सबसे पहले खुले नेत्रों से किसी स्थूल वस्तु पर मन को एकाग्र करना पड़ता है। इसके बाद उसी वस्तु पर बंद नेत्रों से एकाग्रता का अभ्यास करना होता है। अजपा जप के अभ्यास के दौरान भी उन दोनों स्थितियों का अभ्यास हो जाता है। इस योग विधि में तीन महत्वपूर्ण बिंदुएं होती हैं। जैसे, गहरा श्वसन, विश्रांति और पूर्ण सजगता। आरामदायक आसन जैसे सुखासन में बैठकर शरीर और मन में सामंजस्य स्थापित करने के लिए सजगतापूर्वक श्वसन का उपयोग किया जाता है। इससे श्वसन लंबा और गहरा बन जाता है। इससे कई बीमारियां तो स्वत: दूर हो जाती हैं। अध्ययन बतलाता है कि आयु में भी वृद्धि होती है।

अजपा जप के छह चरण होते हैं। पहला है सोSहं मंत्र के साथ श्वास को मिलाना और दूसरा चरण है श्वास के साथ “हं” को मिलाना। इसे ऐसे समझिए। पहले चरण में अंदर जाने वाली श्वास के साथ “सो” और बाहर जाने वाली श्वास के साथ “हं” की ध्वनि को आंतरिक रूप से देखना होता है। दूसरे चरण में यह प्रक्रिया उलट जाती है। श्वास छोड़ते समय “हं” और श्वास लेते समय  “सो“ का मानसिक दर्शन करना होता है। फिर चेतना को त्रिकुटी यानी अनाहत चक्र में ले जा कर पूर्ण सजगजता के साथ ध्यान करना होता है। इस अभ्यास को सधने में कोई एक महीने का वक्त लग जाता है। इसी तरह छह चरणों में यह अभ्यास पूरा होता है। ध्यान साधना की एक विधि के तौर पर अजपा जप बेहद सरल है। पर तन-मन पर उसका प्रभाव बहुआयामी है। पौराणिक ग्रंथों के अनेक प्रसंगों में इसकी महत्ता तो बतलाई ही गई है, आधुनिक विज्ञान भी इसके महत्व को स्वीकारता है।

बाल्मीकि रामायण के मुताबिक, लंका जलाने के बाद हनुमानजी का मन अशांत था। वे इस आशंका से घिर गए थे कि हो सकता है कि सीता माता को भी क्षति हुई होगी। उन्हें आत्मग्लानि हुई। तभी जंगल में उनकी नजर व्यक्ति पर गई, जो गहरी नींद में था। पर उसके मुख से राम राम की ध्वनि निकल रही थी। इसे कहते हैं स्वत: स्फूर्त चेतना। यही अजपा जप है। जब नामोच्चारण मुख से होता है तो वह जप होता हैं और जब हृदय से होता है तो वह अजपा होता है। अजपा का महत्व हनुमान जी तो जानते ही थे। उनके मुख से अचानक ही निकला – “हे प्रभु। इस व्यक्ति जैसा मेरा दिन कब आएगा?”  गीता में भी अजपा जप की महत्ता बतलाई गई है। आधुनिक युग में योगियों और वैज्ञानिकों ने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए इस योग विधि को बेहद उपयोगी माना है।

कुछ साल पहले ही केंद्रीय मंत्री श्रीपद यसो नायक का बंगलुरू स्थित स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान इंस्टीच्यूट के दौरे के दौरान ऐसे मरीजों से साक्षात्कार हुआ, जिन्हें इन योग विधियों के नियमित अभ्यास के फलस्वरू कैंसर जैसी घातक बीमारी से निजात पाने में बड़ी मदद मिली थी। आस्ट्रेलिया के कैंसर शोध संस्थान के चिकित्सकों ने कैंसर के छह मरीजों को जबाव दे दिया था। कहते हैं न कि मरता क्या न करता। सो, उन लोगों ने योग का सहारा लिया। वे नियमित रूप से योगनिद्रा, प्राणायाम और अजपा जप का अभ्यास करने लगे। नतीजा हुआ कि उनके चौदह वर्षों तक जीवित रहने के प्रमाण हैं।  

अनुसंधानकर्त्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अजपा जप से अधिक मात्रा में प्राण-शक्ति आक्सीजन के जरिए शरीर में प्रवेश करती है। फिर वह सभी अंगों में प्रवाहित होती है। रक्त नाड़ियों में अधिक समय तक उसका ठहराव होता है। प्राण-शक्ति शरीर में ज्यादा होने से मनुष्य स्वस्थ्य और दीर्घायु होता है। वैसे तो प्राण-शक्ति हर आदमी के शरीर में प्रवाहित होती रहती है। पर जिसके शरीर में अधिक मात्रा में प्रवाहित होती है, वह स्वस्थ्य, प्रसन्न, शांत, सौम्य होते हैं। यदि कोई रोग लगा भी तो उसे ठीक होते देर नहीं लगती है। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते थे – “अजपा का अभ्यास ठीक ढंग से और पूरी तत्परता से किया जाए तो यह हो नहीं सकता कि रोग ठीक न हो। मात्र अजपा के अभ्यास से मनुष्य काल और मृत्यु को जीत सकता है। तात्पर्य यह कि कोई कोई काल से प्रभावित हुए बिना रह सकता है और चाहे तो इच्छा मृत्यु को प्राप्त कर सकता है।“  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

मानसिक शांति व चेतना के विकास के लिए बड़े काम का है अजपा जप

“जो लोग तनावों और समस्याओं से भरे होते हैं, उनके लिए अजपा जप बड़ा लाभकारी अभ्यास है। अध्ययन और मानसिक कार्य करने वाले भी इस विधि से काफी लाभान्वित होते हैं। जब श्वास में मंत्र जागृत होता है तो उससे पूरा शरीर आवेशित हो जाता है। नाड़ियों में संचित विषाक्त तत्व बाहर निकलते हैं तथा अनेक अवरोध, जो मानसिक बीमारियों के मूल कारण होते हैं, दूर होते हैं। दरअसल, अजपा जप में प्रयुक्त मंत्र की शक्ति से सुषुम्ना नाड़ी जागृत होती है। इससे जब इड़ा नाड़ी तरंगित होती है तो मन सक्रिय होता है और पिंगला नाड़ी तरंगित होती है तो प्राण-शक्ति सक्रिय होती है। नतीजतन, पूरे शरीर में ऊर्जा प्रवाहित होने लगती है। सच तो यह है कि अजपा जप क्रियायोग का आधार है। इसमें कुशलता प्राप्ति से प्रत्याहार, धारणा तथा एकाग्रता की प्राप्ति होती है। यहीं से ध्यान योग प्रारंभ होता है।“

कोरोनाकाल में मानसिक अशांति बड़ी समस्या बनकर उभरी है। इसकी वजह से कई अन्य बीमारियां जन्म ले रही हैं। हम जानते हैं कि योग बहुआयामी विज्ञान है और इसका संबंध तन, मन, भावना के साथ ही आत्मा के विकास से भी है। योग की अनेक विधियां हैं, जो मानसिक शांति के लिए बड़े काम की हैं। पर ध्यान साधना की एक विधि के तौर पर अजपा जप योग एक ऐसी विधि है, जो सरल तो है। पर तन-मन पर उसका प्रभाव बहुआयामी है। पौराणिक ग्रंथों के अनेक प्रसंगों में इसकी महत्ता तो बतलाई ही गई है, आधुनिक विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है।

बाल्मीकि रामायण के मुताबिक, लंका जलाने के बाद हनुमानजी का मन अशांत था। वे इस आशंका से घिर गए थे कि हो सकता है कि सीता माता को भी क्षति हुई होगी। उन्हें आत्मग्लानि हुई। तभी जंगल में उनकी नजर व्यक्ति पर गई, जो गहरी नींद में था। पर उसके मुख से राम राम की ध्वनि निकल रही थी। इसे कहते हैं स्वत: स्फूर्त चेतना। यही अजपा जप है। जब नामोच्चारण मुख से होता है तो वह जप होता हैं और जब हृदय से होता है तो वह अजपा होता है। अजपा का महत्व हनुमान जी तो जानते ही थे। उनके मुख से अचानक ही निकला – “हे प्रभु। इस व्यक्ति जैसा मेरा दिन कब आएगा?”  

गीता में कहा गया है कि नासिका प्रदेश में प्राण व अपान में समानता रखते हुए अंदर जाने वाली औऱ बाहर आने वाली श्वास को नासिका छिद्रों में समय एवं लंबाई की दृष्टि से संतुलित रखें। समय व लंबाई में समानता होनी चाहिए। बिहार योग के जनक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की अगुआई में योग रिसर्च फाउंडेशन ने अजपा पर देश-विदेश में काफी शोध किए। उसके आधार पर शोध-पत्र प्रकाशित किए गए थे। उसमें कहा गया है कि अजपा शरारीरिक व मानसिक तनाव तो दूर करने की कारगर यौगिक विधि तो ही है, यह रोगोपचार, चेतना के विस्तार और संस्कारों के प्रकटीकरण का सशक्त माध्यम भी हो सकता है। संतों का वर्षों-वर्षों का अनुभव है कि ध्यान जितना गहरा होता है, उसके लिहाज से भूत और भविष्य के रिकार्ड खुलते जाते हैं। इससे पूर्व जन्म की घटनाओं की स्मृतियां प्रकट होती हैं तो भविष्य की घटनाओं की झलक भी मिलती है। योगशास्त्र की इसी आधार पर मान्यता है कि मनुष्य भविष्य के संस्कारों का बीजारोपण भी स्वयं करता है।

विभिन्न रोगों में अजपा जप के प्रयोग के नतीजे बेहद शक्तिशाली साबित होते रहे हैं। यदि इसका अभ्यास योगनिद्रा और प्राणायाम के साथ हो तो कैंसर जैसी बीमारी में फायदा होता है। इस बात के कुछ प्रमाण भी हैं। केंद्रीय मंत्री श्रीपद यसो नायक का बंगलुरू स्थित स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान इंस्टीच्यूट के दौरे के दौरान ऐसे मरीजों से साक्षात्कार हुआ, जिन्हें नियमित योगाभ्यास के जरिए कैंसर जैसी घातक बीमारी से निजात मिल गई थी। उन्होंने अपने भाषण में इस बात का उल्लेख किया था, जो अखबारों की सुर्खियां बनी। एक उदाहरण आस्ट्रेलिया का है। वहां के कैंसर शोध संस्थान के चिकित्सकों ने कैंसर के छह मरीजों को जबाव दे दिया था। उनका बचना संभव न था। कहते हैं न कि मरता क्या न करता। सो, उन लोगों ने योग का सहारा लिया। सत्यानंद योग पद्धति से उन्हें योगनिद्रा, प्राणायाम और अजपा जप का अभ्यास कराया गया। लगभग तीन महीनों में बेहतर स्वस्थ्य के लक्षण मिलने लगे थे और कुछ महीनों बाद बिल्कुल ही ठीक हो गए थे। इसके बाद चौदह वर्षों तक जीवित रहने के प्रमाण हैं।   

अजपा जप योग को लेकर विश्व के अनेक शोध संस्थानों में हुए शोधों के निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं। उनके मुताबिक यह योग साधना अनिद्रा के शिकार मरीजों के लिए ट्रेंक्विलाइजर है तो हृदय रोगियों के लिए कोरेमिन। यदि सामान्य कारणों से सिर में दर्द है तो यह दर्द निवारक दवा का भी काम करता है। हिस्टीरिया और उच्च रक्तचाप के मरीजों पर इसका सकारात्मक प्रभाव है। पर सबसे चमकारिक असर है मोटापे की वजह से उत्पन्न बीमारियों के मामलों में है। अनुसंधानों से साबित हुआ कि अजपा जप योग मनुष्य के शरीर की चर्बी जला देता है। मनुष्य के शरीर की चर्बी जलने से जिन प्रमुख गंभीर बीमारियों से मुक्ति मिलती है, वे हृदय, किडनी, डायबिटीज, और ब्लड प्रेशर से संबंधित हैं।

अनुसंधानकर्त्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अजपा जप से अधिक मात्रा में प्राण-शक्ति आक्सीजन के जरिए शरीर में प्रवेश करती है। फिर वह सभी अंगों में प्रवाहित होती है। रक्त नाड़ियों में अधिक समय तक उसका ठहराव होता है। प्राण-शक्ति शरीर में ज्यादा होने से मनुष्य स्वस्थ्य और दीर्घायु होता है। वैसे तो प्राण-शक्ति हर आदमी के शरीर में प्रवाहित होती रहती है। पर जिसके शरीर में अधिक मात्रा में प्रवाहित होती है, वह स्वस्थ्य, प्रसन्न, शांत, सौम्य होते हैं। यदि कोई रोग लगा भी तो उसे ठीक होते देर नहीं लगती है।

कुछ बीमारियां ऐसी भी हैं, जिनका चिकित्सा शास्त्र में उपाय नहीं है। जैसे, मानसिक विकार यानी वैमनस्य, ईर्ष्या आदि। योग-निद्रा की तरह ही अजपा की क्रिया मनोकायिक है। अजपा जप मन को नियंत्रित करता है। विज्ञान की कसौटी पर साबित हो चुका है कि बीमारियों का कारण प्राय: मानसिक होता है। इसलिए योग विज्ञान दवाओं से पहले मन के उपचार पर बल देता है। अजपा जप शक्ति केंद्रों का भंडारगृह यानी सुषुम्ना नाड़ी में गर्मी पैदा करता है। इसके साथ ही बीमारियों पर वार शुरू हो जाता है।

इस तरह समझा जा सकता है कि बीमारियों के लिहाज से योग-निद्रा योग के बाद अजपा जप कितनी महत्वपूर्ण योग साधना है। स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते थे – “अजपा का अभ्यास ठीक ढंग से और पूरी तत्परता से किया जाए तो यह हो नहीं सकता कि रोग ठीक न हो। मात्र अजपा के अभ्यास से मनुष्य काल और मृत्यु को जीत सकता है। तात्पर्य यह कि कोई कोई काल से प्रभावित हुए बिना रह सकता है और चाहे तो इच्छा मृत्यु को प्राप्त कर सकता है।“   

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

कैंसर रोगियों के इलाज में योग का बढ़ता दबदबा

किशोर कुमार //

योगाभ्यासों के जरिए कैंसर जैसी घातक बीमारी को काबू में करने के दिशा में हम एक-दो कदम नहीं, बल्कि कई कदम आगे बढ़ गए हैं। तीन दशक पहले तक हम इस पड़ताल में थे कि क्या कैंसर से जूझ रहे मरीजों की मानसिक यंत्रणा कम करने में योगाभ्यासों की भूमिका हो सकती है? इस बात को लेकर  दुनिया भर में हुए शोधों के से निष्कर्ष निकला कि खास तरीके से “योग निद्रा” योग और कुछ अन्य योगाभ्यासों से कैंसर मरीजों को मानसिक लाभ ही नहीं मिलता, बल्कि कैंसर के जीवाणुओं का विकास धीमा हो जाता है, कई बार रूक भी जाता है। ऐसे भी उदाहरण हैं कि योगाभ्यासी कैंसर के मरीज चमत्कारिक तरीके से कैंसर से मुक्त हो गए, जबकि मेडिकल साइंस के मुताबिक ऐसा परिणाम असंभव था।   

इन अध्ययनों के नतीजों का असर यह हुआ है कि विभिन्न प्रकार की धार्मिक मान्यताओं से परे कैंसर के मरीजों में योग निद्रा और योग अन्य क्रियाएं तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं। महाराष्ट्र के लोनावाला स्थित कैवल्यधाम आश्रम में बीते सप्ताह ही विभिन्न शोधों के परिणामों के आधार पर योगाभ्यासों से कैंसर मरीजों के उपचार को लेकर छह दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग का आयोजन किया गया। इसमें मोटोको सैटो और नीरज सिंह ने कैंसर की रोकथाम में योगाभ्यासों की भूमिका पर पेपर प्रस्तुत किए। स्वामी कुवलयानंद योग को आधुनिक वैज्ञानिक कसौटी पर कसकर इसका प्रसार करना चाहते थे। ताकि योग के चिकत्सकीय पहलू को लोगों के सामने लाया जा सके। इसके लिए उन्होंने 1924 में कैवल्यधाम नाम से दुनिया का पहला योग रिचर्स इंस्टीट्यूट स्थापित किया था। यह मुंबई-पुणे के बीच लोनावाला में स्थापित है। स्वामी कुवलयानंद के संकल्पों को आत्मसात करते हुए वहां योग विज्ञान पर अनेक शोध कार्य किए जा रहे हैं। उनमें कैंसर पर शोध भी शामिल है।

दूसरी तरफ योग की विभिन्न क्रियाओं से कैंसर को काबू में करने के लिए अनुसंधानों का दायरा बढ़ता जा रहा है। यह सच है कि अभी तक इस बात के पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं कि योग की क्रियाओं से कैंसर का शर्तिया इलाज हो सकता है। पर भारत से लेकर अमेरिका तक के योग विज्ञानियों में यह धारणा बलवती हुई है कि योग निद्रा जैसे शिथलीकरण के योगाभ्यासों की बदौलत कैंसर के गंभीर मरीजों की रिकवरी में तेजी आती है। कई चिकित्सकों का दावा है कि “योग निद्रा” योग कैंसर मरीजों के लिए चमत्कारिक औषधि की तरह साबित हुआ है।

टेक्सास के रेडियोथैरेपिस्ट डॉ ओसी सीमोनटन ने अपने प्रयोग में पाया कि रेडियोथेरेपी से गुजर रहे कैंसर के एक रोगी को ध्यान के बाद योग निद्रा योग का अभ्यास कराया गया था। उस रोगी को कहा गया कि वह योग निद्रा के अभ्यास के दौरान कल्पना करे कि उसके शरीर का सफेद रक्त कैंसर के जीवाणुओं से लड़ते हुए उन्हें नष्ट कर रहा है। इस अभ्यास का नतीजा यह हुआ कि मरीज का जीवनकाल काफी ब़ढ़ गया। आस्ट्रेलिया के मनश्चिकित्सक़ डॉ एइनसाई मीरेस के शोध का नतीजा पूर्ववर्ती शोध के नतीजों से एक कदम बढ़कर था। उन्होंने अपने प्रयोगों से साबित किया कि ध्यान और योग निद्रा के अभ्यासों की बदौलत मलाशय का कैंसर कम हो जाता है। वहीं फेफड़ों में प्राथमिक कैंसर से उत्पन्न होने वाले द्वितीयक कैंसर का बढ़ना रूक जाता है।    

यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन ने बीते दो दशकों में किए गए शोधों का विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा है कि अभी तक ऐसे कोई नतीजे सामने नहीं आए, जिनके आधार पर कहा जा सके कि योग की कोई क्रिया शरीर को पूरी तरह कैंसर-मुक्त करने में कारगर है। पर इतना जरूर है कि कैंसर के मरीजों पर शिथलीकरण के योगाभ्यासों के प्रभाव आशाजनक हैं। इसलिए चिकित्सक मरीजों के उपचार के दौरान योगाभ्यासों की सहायता लेने लगे हैं। कैंसर रिसर्च यूके के अध्ययनों के नतीजे भी कुछ ऐसे ही हैं। इस संस्थान को अध्ययन के दौरान ऐसे भी मरीज मिले, जिन्होंने स्वीकार किया कि शिथलीकरण के योगाभ्यासों की वजह से न केवल उनकी रिकवरी तेजी से हुई, बल्कि बीमारी के दुष्परिणामों से जूझने की भी शक्ति मिली।

सवाल है कि यह योग निद्रा योग हैं क्या? महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्र में अष्टांग योगों की चर्चा की है। वे हैं – १) यम, २) नियम, ३) आसन, ४) प्राणायाम, ५) प्रत्याहार, ६) धारणा ७) ध्यान ८) समाधि। प्रत्याहार को शोधकर ही शिथलीकरण के लिए योग निद्रा पद्धति विकसित की गई थी। प्रत्याहार का मतलब होता है इंद्रियों पर संयम। योग रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक विज्ञान की कसौटी पर साबित हो चुका है कि व्यक्ति जब योग निद्रा का अभ्यास कर रहा होता है तो वह मन उबाऊ एकाग्रता का शिकार नहीं होता। बल्कि  उसकी चेतना कई अवस्थाओं से होकर गुजरती है। इससे मन हल्का होता है, नियंत्रित होता है। लिहाजा कैंसर सहित अन्य मनोदैहिक बीमारियों पर काबू पाना आसान हो जाता है। इसलिए योग की इस पद्धति को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सफलतापूर्वक अपनाया जा रहा है। 

सच तो यह है कि चिकित्सा विज्ञान ने योग निद्रा योग का लोहा मान लिया। जर्मनी सरकार ने सन् 2013 में बारहवीं के विद्यार्थियों के लिए योग निद्रा की पढ़ाई अनिवार्य कर दी थी। योग निद्रा अभ्यास के दौरान ऐसा लगता है कि व्यक्ति सोया हुआ है। पर हकीकत में उसकी चेतना सजगता के अधिक गहरे स्तर पर कार्य कर रही होती है। दूसरे शब्दों में योग निद्रा पूर्ण शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विश्रांति लाने का एक व्यवस्थित तरीका है।

बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योग निद्रा के गूढ़ ज्ञान को वैज्ञानिक ढ़ंग से विकसित करके उससे पहली बार दुनिया को परिचय कराया था। उन्होने ही तंत्र शास्त्र में वर्णित न्यास पद्धति के गूढ़ ज्ञान को वैज्ञानिक ढ़ंग से विकसित करके उससे दुनिया को परिचित कराया था। स्वामी सत्यानंद 35 वर्ष की उम्र में जब अपने गुरू स्वामी शिवानंद सरस्वती के ऋषिकेश स्थित आश्रम में थे तो एक ऐसा अनुभव हुआ कि उन्हें योग निद्रा के विज्ञान को विकसित करने में रूचि पैदा हो गई थी। योग निद्रा योग और उसके अन्य रोगों पर होने वाले प्रभावों के बारे में चर्चा फिर कभी। 

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