योगियों के उपदेशों पर मुहर लगाता विज्ञान

किशोर कुमार

“योग भगाए रोग” न कभी नारा था, न है। योग तो अब कैंसर जैसी घातक बीमारी में लाभकारी साबित हो रहा है। तभी भारत ही नहीं, बल्कि विकासित देशों के चिकित्सा विज्ञानी भी कैसर रोगियों के लिए योग की अनुशंसा अनिवार्य रूप से करने लगे हैं। टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के एक अध्ययन से पता चला है कि स्तन कैंसर के रोगियों के इलाज में योग को शामिल करने से मृत्यु दर में कोई पंद्रह फीसदी की कमी हो जाती है। कैंसर रोगियों पर योग के प्रभावों को लेकर अमेरिका में भी कई अध्ययन कराए गए हैं। सबके परिणाम ठीक वैसे ही मिले हैं, जैसा कि भारत के योगी दशकों से कहते रहे हैं।

भारत के वैज्ञानिक संत कई दशकों से कहते आ रहे हैं कि लोग न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी बीमार होते हैं। इसी के परिणाम स्वरूप हृदय रोग और कैंसर जैसी प्राण घातक बीमारियां भी आम हो गई हैं। स्वामी शिवानंद सरस्वती, स्वामी कुवल्यानंद और स्वामी सत्यानंद सरस्वती जैसे संतों ने वैज्ञानिक अनुसंधानों और अपने अनुभवों के आधार पर सिद्ध किया था कि योग में इतनी शक्ति है कि उससे न केवल शांति, पूर्णता और शाश्वत आनन्द की प्राप्ति की जा सकती है, बल्कि आधुनिक युग में होने वाले कैंसर और हृदय रोग जैसे घातक रोगों से निजात पाने में भी मदद मिल जाती है। इन बातों के पक्ष में अनेक प्रमाण दिए जाने के बावजूद चिकित्सा विज्ञानियों के लिए ये बातें वर्षों पहेली बनी रहीं। पर अब दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञानी कैंसर के उपचार को असरदार बनाने के लिए योग की महती भूमिका को खुले तौर पर स्वीकार कर रहे हैं।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में कैंसर 12.8 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अध्ययन के नतीजों से तो पता चलता है कि हर नौ भारतीयों में से एक को अपने जीवनकाल के दौरान कैंसर हो जाएगा। अध्ययन से यह बात भी स्पष्ट हुई कि प्रत्येक 68 पुरुषों में से एक को फेफड़े का कैंसर होगा और प्रत्येक 29 महिलाओं में से एक को स्तन कैंसर होगा। कुछ खास प्रकार के कैंसर की त्वरित पहचान और उसकी रोकथाम संभव होने के बावजूद हालात बिगड़ते जाना चिंता का सबब बना हुआ है। पर योग के प्रयोग से मिले परिणाम सांत्वना प्रदान करने वाले हैं। केंद्रीय मंत्री श्रीपद यसो नायक दो साल पहले बंगलुरू स्थित स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान इंस्टीच्यूट के दौरे पर थे तो उनका ऐसे मरीजों से साक्षात्कार हुआ था, जिन्हें नियमित योगाभ्यास से ही कैंसर जैसी घातक बीमारी से निजात मिल गई थी।

हर साल सितंबर माह को रक्त कैंसर जागरूकता माह के तौर पर मनाया जाता है। इस दौरान विविध स्तरों पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसी के तहत अमेरिकन ऑकोलॉजी इंस्टीट्यूट (एओआई), हैदराबाद की ओर से बड़े पैमाने पर आयोजित कार्यक्रम में रेडिएशन ऑकोलॉजिस्ट डॉ. सुनीता मुलिंटी ने कई उदाहरणों के जरिए बतलाया कि योग के साथ कैंसर का उपचार कितना असरदार होता है। केवल योगनिद्रा के ही चमत्कारिक परिणाम मिलने लगते हैं। आस्ट्रेलिया के मनश्चिकित्सक डॉ. एइनसाइ मीरेस तो काफी पहले ही आपने शोध के के आधार पर बतला चुके हैं कि योगनिद्रा के अभ्यास से मलाशय का कैंसर कम हो जाता है। वहीं फेफड़ों में प्राथमिक कैंसर से उत्पन्न होने वाले द्वितीयक कैंसर का बढ़ना रूक जाता है। ऐसा इसलिए कि रोग प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत हो जाती है।

बंगलुरू स्थित एचसीजी कैंसर सेंटर की चिकित्सक डॉ. दीपिका के मुताबिक, “योग कोर्टिसोल के स्तर को कम करने में मदद करता है, जो तनाव के लिए जिम्मेदार हार्मोन है। इसके कारण रिकवरी की दर बढ़ जाती है। मुंबई स्थित एक सौ साल से भी ज्यादा पुराने योग संस्थान की निदेशक, भारतीय योग संघ और अंतर्राष्ट्रीय योग बोर्ड की अध्यक्ष डॉ. हंसाजी योगेन्द्र का अनुभव है कि योग के नियमित अभ्यास से  हार्मोनल संतुलन हो जाता है। वे कैंसर रोगियों के लिए आसनों में पर्वतासन, सुप्त बद्ध कोणासन, सेतुबंदासन, मत्स्यासन, वीरभद्रासन, ताड़ासन, विपरीतकरणी आदि को बेहद असरदार मानती हैं।  

टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के अध्ययन के लिए जो योग प्रोटोकॉल बनाए गए थे, उनमें नियमित अवधि के विश्राम और प्राणायाम के साथ सौम्य और पुनर्स्थापनात्मक योगासन शामिल किए गए थे। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अधीनस्थ मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान की ओर से कैंसर के मरीजों के लिए षट्कर्म में विशेष तौर से जलनेति व कपालभाति और प्रत्याहार में योगनिद्रा को अनिवार्य बताया गया है। इसके साथ ही नाडीशोधन प्राणायाम व भ्रामरी प्राणायाम और आसनों में ताड़ासन, कटिचक्रासन, वज्रासन, अर्द्ध उठासन, भुजंगासन, शशंकासन, बलासन और सुप्त बंध कोनासन को प्रमुख माना गया है। यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन का भी मानना है कि कैंसर के मरीजों के लिए शिथलीकरण के योगाभ्यास बेहद लाभप्रद साबित होते हैं।

यदि विस्तार से जानना हो कि योग से कैंसर के मरीजों की रिकवरी आसान क्यों हो जाती है तो “यौगिक मैनेजमेंट ऑफ कैंसर” नामक पुस्तक का अध्ययन अनिवार्य रूप से करना चाहिए। स्वामी सत्यानंद सरस्वती के मार्ग-दर्शन में योग रिसर्च फाउंडेशन के विज्ञान-सम्मत अध्ययनों के आधार पर इस पुस्तक का प्रकाशन किया गया है। इसमें विस्तार से विश्लेषण है कि कैंसर के मरीजों को किन परिस्थितियों में कौन-से योगाभ्यास क्यों, कब और कितना करना चाहिए। मुंबई की प्रख्यात चिकित्सक रहीं स्वामी डा. निर्मलानंद इस पुस्तक की लेखिका हैं, जो बिहार योग विद्यालय की संन्यासी हैं। इस पुस्तक में एक प्रसंग है कि किस तरह आस्ट्रेलिया के कैंसर शोध संस्थान के चिकित्सकों ने कैंसर के छह मरीजों को जबाव दे दिया था और वे सभी मरीज नियमित रूप से योगनिद्रा, प्राणायाम और अजपा जप का अभ्यास करके चौदह वर्षों से भी ज्यादा जीवित रहे।

मौजूदा समय में बड़ी संख्या में लोगों का ज्ञात हो चुका है कि कैंसर बेलगाम क्यों है। अमेरिका के दो महत्वपूर्ण संगठनों अमेरिकन कैंसर सोसायटी और नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के मुताबिक, मुख्य रूप से तनाव, शराब, मोटापा, तंबाकू के साथ ही अनेक प्रकार के संक्रमणों के कारण कैंसर बेलगाम है। प्रदूषण उत्प्रेरक का काम कर रहा है। पर जहां तक उपचार की बात है, तो सफलता के तमाम प्रसंगों के बावजूद हम जानते हैं कि हर पैथी की अपनी सीमाएं होती हैं। योग की भी सीमाएं हैं। इसलिए बचाव से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं। समय रहते योग को जीनव-शैली बना लेने में ही भलाई है।    

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

नेति और कुंजल : ये हैं कोरोना के विरूद्ध अग्रिम पंक्ति की यौगिक सेनाएं

प्राचीनकाल से योगमार्ग पर आगे बढ़ने के लिए ऋषियों ने षट्कर्म की जिन क्रियाओं को प्रथमत: अनिवार्य माना था, उनमें से नेति और कुंजल जैसी क्रियाएं आधुनिक चिकित्सा जगत को भी लुभा रही हैं। इसलिए कि ये क्रियाएं कोविड-19 जैसे अनजान, किन्तु मारक संक्रमण से बचाव में असरदार साबित हो हैं। वैसे तो कोरोना संक्रमण फैलने के साथ ही योग के वैज्ञानिक संत कहने लगे थे कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और संक्रमण को प्रवेश बिंदु पर ही रोककर कर नष्ट कर देने के कई यौगिक उपाय हैं। पर अब चिकित्सा विज्ञानी भी विभिन्न शोधों की बदौलत इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि आज के माहौल में नेति और कुंजल बड़े काम के हैं।

भारत में कोरोना महामारी फैलने के बाद केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रावैधिकी मंत्रालय को विभिन्न संस्थानों के लगभग पांच सौ ऐसे शोध-पत्र मिले हैं, जिनमें दावा किया गया है कि यौगिक उपायों से कोविड-19 के संक्रमण से बचाव और एक सीमा तक रोकथाम संभव है। पर सबसे ताजी रिपोर्ट राजस्थान वाली ही है और खास बात यह कि यह रिपोर्ट योग विज्ञानियों की नहीं, बल्कि चिकित्सा विज्ञानियों की है। इन चिकित्सा विज्ञानियों ने माना है कि कोरोना संक्रमण से बचाव में नेति और कुंजल बड़े काम के हैं। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय की पहल पर देश के नामचीन योग संस्थानों के सहयोग से कोविड-19 के संक्रमण की रोकथाम के लिए यौगिक प्रभावों पर तीन अनुसंधान किए जा रहे हैं और उसकी रिपोर्ट आनी है। इस बीच राजस्थान से आई ताजा रिपोर्ट को बेहद अहम् माना जा रहा है।

राजस्थान के चार चिकित्सा संस्थानों एसएमएस मेडिकल कालेज के टीबी एवं चेस्ट रोग विभाग, इंटरनेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च (आईआईएचएमआर) के महामारी विज्ञान विभाग, आस्थमा भवन के शोध प्रभाग और राजस्थान हास्पीटल के छह चिकित्सकों डा. श्वेता सिंह, डॉ नीरज शर्मा व डॉ दयाकृष्ण मंगल, डॉ उदयवीर सिंह व डॉ तेजराज सिंह और वीरेंद्र सिंह ने कोई 28 दिनों तक अध्ययन किया। इस दौरान नेति और कुंजल क्रियाओं के बेहतर परिणाम मिले। दरअसल, जापान में कोविड-19 के कारण मृत्यु दर काफी कम होने के कारण शोधकर्त्ताओं का उधर ध्यान गया। उन्होंने पाया कि सामाजिक दूरी और मास्क का उपयोग तो बेहतर तरीके से किया ही गया था। साथ ही नमकीन कुनकुने पानी से नाक और गले को साफ रखने पर काफी जोर दिया गया था। ये क्रियाएं योगशास्त्र के जलनेति और कुंजल की तरह की थीं। राजस्थान के चिकित्सकों ने इन्हीं बातों से प्रेरित होकर जलनेति और कुंजल के प्रभावों पर अध्ययन किया।  

चिकित्सा जगत की नजर में यह अध्ययन रिपोर्ट बेहद विश्वसनीय है। तभी एक तरफ इसे इंडियन चेस्ट सोसाइटी के प्रतिष्ठित जर्नल “लंग इंडिया” में जगह मिल गई है। दूसरी तरफ देश को लगभग एक हजार चिकित्सकों का समूह भी इस अध्ययन को विश्वसनीय मान रहा है। कोविड-19 संक्रमण फैलने के बाद इस विषय से संबंधित भारतीय चिकित्सकों के सीएमई इंडिया नाम से चार वाट्सएप्प ग्रुप बन चुके हैं। इसमें दुनिया भर में कोविड-19 के आलोक में किए जा रहे अध्ययनों और चिकित्सकीय उपायों पर चर्चा होती है। इन ग्रुपों से देश के प्राय: तमाम नामचीन चिकित्सक जुड़े हुए हैं। ये सुचारू ढंग से काम काम करें और अर्थपूर्ण चर्चा के नतीजों से जनता को लाभ मिले, इसके लिए मधुमेह के ख्याति प्राप्त चिकित्सक डॉ एनके सिंह संयोजक की भूमिका में हैं। डॉ सिंह के मुताबिक प्राय: सभी चिकित्सक मरीजों को और आम लोगों को भी बताते हैं कि कोरोना महामारी से बचाव के लिए उन्हें अन्य उपायों के साथ ही नेति और कुंजल क्रियाओं के अभ्यास अनिवार्य रूप से करने चाहिए।

भारत की तर्ज पर अमेरिकी शोध संस्थानों की भी यही राय बनी है कि कोविड-19 के वैक्सीन आने तक योग ही सहारा है। योग और ध्यान के जरिए कोरोना संक्रमण से अधिकतम बचाव संभव है। भारतीय मूल के अमेरिकी योग गुरू दीपक चोपड़ा, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी और इस अध्ययन के लिए हार्वड यूनिवर्सिटी से संबद्ध मासेचुसेट्स इस्टीच्यूट ऑफ टेक्नालॉजी ने यौगिक उपायों पर अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला है। वैसे इस अध्ययन से पहले ही अमेरिका से धमाकेदार खबर आई थी। भारतीय मूल के कंप्यूटर प्रोफेशनल प्रमोद भगत ने दावा किया था कि वे कोरोना पाजिटिव थे और मुख्यत: कुंजल क्रिया की बदौलत मारक बीमारी से बच निकले थे। दरअसल, कुंजल को दमा के मरीजों के लिए प्रभावशाली माना जाता है। इसलिए कोरोना संक्रण को प्रारंभिक स्तर पर नष्ट करने में कुंजल काम आ गया तो योगियों को हैरानी नहीं हुई थी, क्योंकि दमा और कोरोना के शुरूआती लक्षणों में बड़ी समानता है। 

भारत में कोरोना महामारी का आगाज होते ही महाराष्ट्र के लोनावाला स्थित कैवल्यधाम योग इंस्टीच्यूट के वरीय योग थेरेपिस्ट संदीप वानखेड़े ने अपने संस्थान के यूट्यूब चैनल के जरिए बताया था कि कोरोना महामारी से बचाव में जलनेति की कितनी बड़ी भूमिका हो सकती है। यह कहने का उनके पास वैज्ञानिक आधार भी था। वे भारत सरकार के केंद्रीय योग व प्राकृतिक चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सहयोग से लोनावाला में स्थापित अनुसंधान केंद्र के साथ भी जुड़े हुए हैं। यह केंद्र षट्कर्म और प्राणायाम पर शोध कर रहा है। नेति और कुंजल षट्कर्म के तहत ही आते हैं।

आयुर्वेद में एक शब्द है – त्रिदोष। यानी वात, पित्त और कफ। इसे ही बीमारियों की उत्पत्ति के मूल कारण माना गया हैं। योगशास्त्र ने षट्कर्म के रूप में त्रिदोष को जड़ से समाप्त करने का उपाय प्रस्तुत किया। यानी योगियों ने भी माना कि त्रिदोषों के बीच असंतुलन से बीमारियां उत्पन्न होती हैं। षट्कर्म मतलब, नेति, धौति, नौलि, बस्ति, कपालभाति और त्राटक। योग के आध्यात्मिक साधक तो सनातन काल से इन षट्कर्मों की महत्ता समझते रहे हैं। तभी वेद से लेकर प्राचीन योग उपनिषदों तक में इनकी महत्ता प्रतिपादित की गई हैं। पर महर्षि घेरंड की घेरंड संहिता औऱ स्वात्माराम की हठ प्रदीपिका में अनेक बीमारियों में भी इन यौगिक क्रियाओं के लाभ बतलाए गए हैं।

यद्यपि योगियों ने नेति क्रिया का इजाद आज्ञाचक्र यानी पीनियल ग्रंथि से संबंधिति यौगिक क्रियाओं को सुचारू बनाने के मकसद से किया था। बाद में आम लोग इस क्रिया को कोई नाम दिए बिना नसिका क्षेत्र की सफाई के लिए से अपनाने लगे। नेति को मौजूदा स्वरूप प्रदान करने में वैज्ञानिक योगी स्वामी कुवल्यानंद और बिहार योग विद्यालय के संस्थापक स्वामी सत्यानंद सरस्वती का बड़ा योगदान है। बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं कि नेति ईएनटी डाक्टर की क्रियाओं जैसी असर दिखाती है। योग शास्त्रों के मुताबिक पहले कुंजल फिर जलनेति का अभ्यास करना चाहिए। चूंकि इन दोनों ही क्रियाओं में नमकीन कुनकुने पानी का उपयोग किया जाता है। इसलिए इन क्रियाओं के बाद आगे झुककर कपालभाति प्राणायाम अनिवार्य रूप से कर लेना चाहिए। ताकि सारा पानी निकल जाए। साथ ही शरीर व मस्तिष्क में उत्पन्न तनाव भी दूर हो जाता है।   

कोविड-19 के इलाज के लिए विश्वसनीय दवाओं के अभाव में जहां पूरी दुनिया में त्राहिमाम है, वैसे में नेति, कुंजल और कुछ अन्य यौगिक उपाय घने अंधेरे में में उम्मीद की रोशनी की तरह हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले यौगिक उपायों के साथ ये क्रियाएं अधिक शक्तिशाली हो जाती हैं। योग शास्त्रों के मुताबिक पहले कुंजल फिर जलनेति का अभ्यास करना चाहिए। अंत में आगे झुककर कपालभाति प्राणायाम अनिवार्य रूप से कर लेना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा योग विज्ञान विश्लेषक हैं)

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