स्वामी निरंजनानंद सरस्वती : आधुनिक युग के वैज्ञानिक संत

किशोर कुमार //

योग की बेहतर शिक्षा किस देश में और वहां के किन संस्थानों में लेनी चाहिए? यदि इंग्लैंड सहित दुनिया के विभिन्न देशों से प्रकाशित अखबार “द गार्जियन” से जानना चाहेंगे तो भारत के बिहार योग विद्यालय का नाम सबसे पहले बताया जाएगा। चूंकि ऐसा सवाल पश्चिमी देशों में आम है। इसलिए “द गार्जियन” ने लेख ही प्रकाशित कर दिया। उसमें भारत के दस श्रेष्ठ योग संस्थानों के नाम गिनाए गए हैं। बिहार योग विद्यालय का नाम सबसे ऊपर है। इस विश्वव्यापी योग संस्थान के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की समाधि के दस साल होने को हैं। फिर भी बिहार योग का आकर्षण दुनिया भर मे बना हुआ है तो निश्चित रूप से परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती को अपने गुरू परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती से मिली दिव्य-शक्ति और खुद की कठिन साधना का प्रतिफल है।

दरअसल, बिहार योग विद्यालय दुनिया के उन गिने-चुने योग संस्थानों में शूमार है, जो परंपरागत योग के सभी आयामों की समन्वित शिक्षा प्रदान करता है। उनमें हठयोग, राजयोग, क्रियायोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, कुंडलिनी योग आदि शामिल है। यह संस्थान योग को कैरियर बनाए बैठे प्रोफेशनल्स द्वारा नहीं, बल्कि पूरी तरह संन्यासियों द्वारा संचालित है। योग शिक्षा का वर्गीकरण भी लोगों को आकर्षित करता है। जैसे, आमलोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर अलग तरह का पाठ्यक्रम है और आध्यात्मिक उत्थान की चाहत रखने वालों के लिए अलग तरह का पाठ्यक्रम है। संन्यास मार्ग पर चलने वालों के लिए भी पाठ्यक्रम है, जबकि भारत में ज्यादातर योग संस्थानों में हठयोग की शिक्षा पर जोर होता हैं।

भारत के प्रख्यात योगी और ऋषिकेश में दिव्य जीवन संघ के संस्थापक स्वामी शिवानंद सरस्वती के शिष्य परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने साठ के दशक में बिहार योग विद्यालय की स्थापना की थी। वे 20वीं सदी के महानतम संत थे। उन्होंने बिहार के मुंगेर जैसे सुदूरवर्ती जिले को अपना केंद्र बनाकर विश्व के सौ से जयादा देशों में योग शिक्षा का प्रचार किया। उन देशों के चिकित्सा संस्थानों के साथ मिलकर य़ौगिक अनुसंधान किए। परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती उन्हीं के आध्यात्मिक उतराधिकारी हैं, जिन्हें आधुनिक युग का वैज्ञानिक संत कहना ज्यादा उपयुक्त होगा। जिस तरह स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस का और स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने स्वामी शिवानंद सरस्वती के मिशन को दुनिया भर में फैलाया था। उसी तरह स्वामी निरंजनानंद सरस्वती अपने गुरू का मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं।

आदिगुरू शंकराचार्य की दशनामी संन्यास परंपरा के संन्यासी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती आधुनिक युग के एक ऐसे सिद्ध संत हैं, जिनका जीवन योग की प्राचीन परंपरा, योग दर्शन, योग मनोविज्ञान, योग विज्ञान और आदर्श योगी-संन्यासी के बारे में सब कुछ समझने के लिए खुली किताब की तरह है। उनकी दिव्य-शक्ति का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने मात्र 11 साल की उम्र में लंदन के चिकित्सकों के सम्मेलन में बायोफीडबैक सिस्टम पर ऐसा भाषण दिया था कि चिकित्सा वैज्ञानिक हैरान रह गए थे। बाद में शोध से स्वामी जी की एक-एक बात साबित हो गई थी।

आज वही निरंजनानंद सरस्वती नासा के उन पांच सौ वैज्ञानिकों के दल में शामिल हैं, जो इस अध्ययन में जुटे हुए हैं कि दूसरे ग्रहों पर मानव गया तो वह अनेक चुनौतियों से किस तरह मुकाबला कर पाएगा। स्वामी निरंजन अपने हिस्से का काम नास की प्रयोगशाला में बैठकर नहीं, बल्कि मुंगेर में ही करते हैं। वहां क्वांटम मशीन और अन्य उपकरण रखे गए हैं। वे आधुनिक युग के संभवत: इकलौती सन्यासी हैं, जिन्हें संस्कृत के अलावा विश्व की लगभग दो दर्जन भाषाओं के साथ ही वेद, पुराण, योग दर्शन से लेकर विभिन्न प्रकार की वैदिक शिक्षा यौगिक निद्रा में मिली थी। उसी निद्रा को हम योगनिद्रा योग के रूप में जानते हैं, जो परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की ओर से दुनिया को दिया गया अमूल्य उपहार है।

केंद्र सरकार परमहंस स्वामी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती और बिहार योग विद्यालय की अहमियत समझती है। तभी एक तरफ उन्हें पद्मभूषण जैसे सम्मान से सम्मानित किया गया तो दूसरी ओर बिहार योग विद्यालय को श्रेष्ठ योग संस्थान के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार प्रदान किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद बिहार योग विद्यालय की योग विधियो से इतने प्रभावित हैं कि जब उनसे अमेरिकी राष्ट्रपति की बेटी इवांका ट्रंप ने पूछा कि आप इतनी मेहनत के बावजूद हर वक्त इतने चुस्त-दुरूस्त किस तरह रह पाते हैं तो इसके जबाव में प्रधानमंत्री ने परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की आवाज में रिकार्ड किए गए योगनिद्रा योग को ट्वीट करते हुए कहा था, इसी योग का असर है। जबाब में इवांका ट्रंप ने कहा था कि वह भी योगनिद्रा योग का अभ्यास करेंगी।     

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर देश में योग के प्रचार-प्रसार के लिए चार योग संस्थानों के चयन की बात आई तो एक ही परंपरा के दो योग संस्थानों का चयन किया गया। उनमें एक है ऋषिकेश स्थित शिवानंद आश्रम और दूसरा है बिहार योग विद्यालय। शिवानंद आश्रम खुद 20वीं शताब्दी के महान संत स्वामी शिवानंद सरस्वती ने स्थापित किया था। बिहार के मुंगेर में गंगा के तट पर बिहार योग विद्यलाय उनके शिष्य स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने स्थापित किया था। बाकी दो सस्थानों में पश्चिमी भारत के लिए कैवल्यधाम, लोनावाला और दक्षिणी भारत के लिए स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान का चयन किया गया था। समाधि लेने से पहले परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहा करते थे, “स्वामी निरंजन ने मानवता के क्ल्याण के लिए जन्म और संन्यास लिया है। उसका व्यक्तित्व नए युग के अनुरूप है।“

शायद उसी का नतीजा है कि जहां देश के अनेक नामचीन योगी कसरती स्टाइल की योग शिक्षा का प्रचार करते हुए बीमारियों को छूमंतर करने का नित नए दावा करते हैं। वहीं दूसरी ओर स्वामी निरंजनानंद सरस्वती योग को जीवन-शैली बताते है। वे कहते हैं कि यदि बीमारी के इलाज के लिए योग का प्रयोग करना हो तो एलोपैथी पद्धति से जांच और आयुर्वेदिक पद्धति से आहार के साथ योग ब़ड़ा ही असरदार पद्धति बन जाता है। उन्होंने सरकार को सुझाव दे रखा है कि वह योग की विभिन्न परंपराओं, विभिन्न विधियों को संरक्षित करने, उनका प्रचार करने और उन योग विधियों पर हो रहे अनुसंधानों को एक साथ संग्रह करने के लिए मोरारजी देसाई योग अनुसंधान संस्थान में राष्ट्रीय संसाधन केंद्र बनाए। इन बातों से समझा जा सकता है कि योग शिक्षा के शुद्ध ज्ञान के लिए बिहार योग विद्यालय देश-विदेश के लोगों को क्यों आकर्षित करता है। गुरू पूर्णिमा इसी सप्ताह है। आधुनिक युग के इस वैज्ञानिक संत और पूज्य गुरूदेव को नमन।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं)

गायत्री सिद्धि, सद्गुणों में अभिवृद्धि

किशोर कुमार

भारतीय लोकतंत्र के ऩए मंदिर यानी नए संसद भवन एक तरफ वैदिक मंत्रोच्चार से गूंजायमान था। उसी समय पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्वामी रामदेव बतला रहे थे कि यदि शरीर का आज्ञा-चक्र सक्रिय हो जाए तो उसका क्या प्रभाव होता है। उन्होंने दो बच्चों को प्रस्तुत किया, जिनकी आंखों पर पट्टियां थी और वे पुस्तकें पढ़ ले रहे थे। छपी हुई तस्वीरों के रंग तक बता दे रहे थे। मिड ब्रेन एक्टिवेशन के युग में यह कोई चौंकाने वाली बात न रही। पर मिड ब्रेन एक्टिवेशन जैसी वैज्ञानिक उपलब्धियों की सीमाएं हैं। अभी वह इस स्थिति में नहीं पहुंचा है कि हजारों मील दूर बैठे किसी संजय से महाभारत जैसे युद्ध की कमेंट्री करवा दे। पर योग-शक्ति से सक्रिय मस्तिष्क की कोई सीमा नहीं होती। इसके उदाहरण भरे पड़े हैं।

इसी युग में अमेरिकी नागरिक टेड सिरियो ने अमेरिका में बैठे-बैठे भारत के आगरा शहर के भौगोलिक स्थितियों का बयान ऐसे कर दिया था, मानो वह आगरा के किसी ऊंचे टीले से सबकुछ बता रहा हो। यही नहीं, उसने अपनी आंखों में कुछ तस्वीरें बसा ली थी, जिसके परीक्षण के बाद बिल्कुल सही पाया गया था। इसे तंत्र विज्ञान की भाषा में आज्ञा-चक्र का सक्रिय होना माना गया था। वैदिक युग में त्रिनेत्र का खुल जाना कहा गया। बीसवीं सदी के महान संत परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते थे कि मानसिक अनुभूमियां पदार्थ पर आधारित नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि सामने जब कोई चित्र न हो तथा आसपास संगीत न बज रहा हो, फिर भी हम उन्हें देख-सुन सकते हैं। यह मनुष्य के व्यक्तित्व की विशेषता है। मानसिक अनुभव के क्षेत्र का विस्तार करके यह शक्ति प्राप्त की जा सकती है। ऐतिहासिक तथ्यों और हाल की कुछ घटनाओं से इस बात की पुष्टि होती है। अब तो विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार रहा है। उसकी भाषा में यह कुछ और नहीं, बल्कि पीयूष ग्रंथि या पीनियल ग्लैंड का सक्रिय होना है।     

आखिर आज्ञा-चक्र या पीनियल ग्लैंड को किस तरह सक्रिय किया जा सकता है? गायत्री जयंती इस साल 31 मई को मनाई गई। यह लेख उसी आलोक में होगी। वैसे, गायत्री विद्या इतना व्यापक है कि इसके किसी भी पक्ष को ले लीजिए, यदि ज्ञान है तो मोटे-मोटे ग्रंथ तैयार हो जाएंगे। इसकी व्यापकता का अंदाज इस बात से लगा सकते हैं कि वैदिक ग्रंथों की श्रृंखला में गायत्री गीता है तो गायत्री उपनिषद है, गायत्री संहिता है तो गायत्री तंत्रम है। गायत्री रामायण है तो गायत्री सहस्रनाम है। गायत्री चालीसा है तो गायत्री हृदयम है। कहा जाता है कि गायत्री के 24 अक्षरों की व्याख्या के लिए ही चार वेद हैं। इसलिए गायत्री को वेदमाता कहा गया है। शास्त्रों में उल्लेख है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा को अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शक्तियां चाहिए थी। तब ब्रहमांडीय शक्ति की आकाशवाणी के जरिए उन्हें गायत्री मंत्र की दीक्षा मिली थी। वह मंत्र था –गायत्री सिद्धि, सद्गुणों में अभिवृद्धि। इस मंत्र का उल्लेख यजुर्वेद में मिलता है।

हममें से अनेक लोग बिना अर्थ जाने भी गायत्री मंत्र का पाठ कर लेते हैं। पर जब कोई उपलब्धि नहीं मिलती तो मंत्र की शक्ति पर ही अविश्वास करने लग जाते हैं। गायत्री मंत्र के जरिए हम जो प्रार्थना करते हैं, उसका भाव होता है – उस प्राण स्वरूप, दुःख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पाप नाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें। तुलसीदास जी ने हनुमान जी को ज्ञान और गुणों का सागर कहा है। पौराणिक कथा है कि हनुमान जी को गायत्री मंत्र की दीक्षा मिली थी। उपनयन संस्कार में भी यही मंत्र प्रयुक्त हुआ था। वे इस मंत्र की शक्ति से प्रखर व तेजयुक्त होते गए थे। कालांतर में तथ्यों के आधार पर यह विचार बलवती होता गया कि मनुष्य गायत्री शक्ति से सम्बन्ध स्थापित करके अपने जीवन विकास के मार्ग में बड़ी सहायता प्राप्त कर सकता है। 

बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं कि ऊं नाद है तो गायत्री प्राण है। गायत्री की उत्पत्ति ऊं से हुई है। ध्वनि सिद्धांत के अंतर्गत ऊं नाद का प्रतीक है। सृजन के क्रम में इस ध्वनि का विकास होता गया। इस तरह कह सकते हैं कि ऊं मंत्र का विकसित स्वरूप ही गायत्री है। वैदिक सिद्धांतों में गायत्री को प्राण की इष्ट देवी कहा गया है। वैज्ञानिक अनुसंधान हुआ तो इस बात की पुष्टि हुई कि गायत्री मंत्र के साथ प्राणायाम साधना अत्यंत प्रभावकारी होती है। योग शास्त्र में आज्ञा-चक्र को सक्रिय करने के लिए अनेक विधियां बतलाई गई हैं। यह सच है कि उनमें से किसी भी विधि से आज्ञा-चक्र को सक्रिय किया जा सकता है। पर इस मामले में गायत्री मंत्र की शक्ति अद्भुत है। इस मंत्र के सभी 24 अक्षरों के अलग-अलग देवता हैं और उन अक्षरों के उच्चारण का कुंडलिनी चक्रों पर प्रभाव होता है। जैसे, जब हम तत् का उच्चारण करते हैं तो इसके देवता गणेश हैं, जो सफलता शक्ति प्रदान करने वाले हैं।

जैसे हनुमान जी का उपनयन संस्कार हुआ था, वैसे ही भारत की प्रचीन परंपरा रही है कि बच्चे जब आठ साल के होते थे तो उनका उपनयन संस्कार कराया जाता था। इसके तहत चार वर्षों यानी बारह साल की उम्र तक के लिए मुख्य रूप से सूर्य नमस्कार, नाडी शोधन प्राणायाम और गायत्री मंत्र का अभ्यास करवाया जाता था। दरअसल, मस्तिष्क के केंद्र में स्थित पीनियल ग्रंथि बच्चों की चेतना के विस्तार के लिहाज से बेहद जरूरी है। अनुसंधानों के मुताबिक बच्चों के आठ-नौ साल के होते ही पीनियल ग्रंथि कमजोर होने लगती है। इसके साथ ही पिट्यूटरी ग्रंथि या पीयूष ग्रंथि और संपूर्ण अंत:स्रावी प्रणालियां अनियंत्रित होती जाती हैं। नतीजतन, असमय यौवनारंभ हो जाता है, जबकि बच्चों की मानसिक अवस्था इसके लिए उपयुक्त नहीं होती है। इसके अलावा में कई असंतुलन आते हैं। इसलिए उपनयन संस्कार के लिए आठ साल की उम्र का आदर्श माना जाता था।

गायत्री उपासना से आध्यात्मिक उपलब्धियों के साथ ही भौतिक उपलब्धियां मिलने के भी उदाहरण भरे-पड़े हैं। आधुनिक विज्ञान ने गायत्री मंत्र की वैज्ञानिकता और मानव की चेतना के विकास में उसके महत्व का बार-बार उजागर किया है। गायत्री जयंती पर यदि हम संकल्प लें कि गायत्री मंत्र की साधना को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाएंगे तो यह बड़ी उपलब्धि होगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

अनिद्रा से मुक्ति दिलाएंगी ये योग विधियां

किशोर कुमार

कोरोना महामारी के बाद अनिद्रा की समस्या से पीड़ित और अवसादग्रस्त लोगों की बढ़ती तादाद स्वास्थ्य से जुड़ी बड़ी समस्या बनकर उभरी है। जब बच्चे अनिद्रा की शिकायत करने लगें और तनावग्रस्त हो जाएं तो मान लेना चाहिए कि पानी सिर से ऊपर बह रहा है। आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देखने वाले भारत के लिए यह चिंता का विषय है। इसलिए कि इस समस्या का सीधा संबंध हमारी अर्थ-व्यवस्था से भी है। मेलाटोनिन हार्मोन का न बनना अनिद्रा की सबसे बड़ी वजह है। पर अनिद्रा की समस्या दूर हो जाए तो स्वास्थ्य संबंधी बहुत सारी समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी। भारत के योगी सदियों से बतलाते रहे हैं कि प्राकृतिक तौर पर मेलाटोनिन के उत्पादन में किसी कारण से बाधा आती है तो उसका यौगिक समाधान है। पर मेलोटोनिन स्राव के लिए दवा तैयार करने वाली कंपनियों का धंधा जिस तरह चमका है, वह चिंताजनक है। इसलिए कि इसके परिणाम अधिक घातक होने वाले हैं।

महाभारत की एक कथा इस संदर्भ में प्रासंगिक है। श्रीकृष्ण महाभारत युद्ध से पूर्व कौरवों के पास संधि प्रस्ताव लेकर गए थे। कहा था, क्यों आपस में झगड़ने पर आमादा हो? पांच राज्य नहीं, तो पांच गांव ही दे दो। दुर्योधन तैयार न हुआ तो श्रीकृष्ण ने उसे राजधर्म की याद दिलाई। इसके प्रत्युत्तर में दुर्योधन ने जो कहा, वह गौर करने लायक है। वह कहता है – “राजधर्म क्या है, मैं जानता हूं। पर उस ओर मेरी प्रवृत्ति नहीं है। अधर्म क्या है, मैं उसको भी जानता हूं। पर अधर्मों से अपने को दूर नहीं रख पाता। पता नहीं, वह कौन-सी शक्ति है, जो मेरे भीतर बैठकर पापकर्म कराती है।“ श्रीमद्भगवतगीता में अर्जुन इस बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि तमोगुणी व्यक्ति बड़ा ही अहंकारी होता है, अज्ञानी होता है। उसमें “मैं” की भावना प्रबल होती है। इस वजह से सज्जनों की बातों से राजी होने को तैयार नहीं होता, बल्कि इसके उलट काम करता है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि मानसिक शांति से ही मैपन छूटेगा, अहंकार टूटेगा, तमोगुण मिटेगा और जीवन सुखमय होगा। इसके लिए उपाय एक ही है और वह है – अभ्यास योगेन तत: मामिच्छाप्तुं धनंजय। यानी योगाभ्यास।

आज के संदर्भ में हम सबकी स्थिति भी कुछ दुर्योधन जैसी ही हो गई है। तभी यौगिक उपायों का ज्ञान होते हुए भी हम सब दवाओं के पीछे भागे चले जा रहे हैं। इसके कुपरिणाम तक झेलने को तैयार हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं रही कि अनिद्रा दूर करने वाला कृत्रिम मेलाटोनिन कुछ समय बाद अनिद्रा का ही कारण बन जाता है। अठारहवीं सदी के लखनवी शायर लाला मौजी राम मौजी ने लिखा था – “दिल के आइने में हैं तस्वीरें यार, जब जरा गर्दन झुकाई देख ली।“ हम सब भी नजरिया बदल लें तो बात बन जाएगी। योगाभ्यास से प्राकृतिक तौर पर मेलाटोनिन का उत्पादन होने लगेगा। इसके विस्तार में जाने से पहले जानना जरूरी है कि आखिर मेलाटोनिन हार्मोन होता क्या है? अनुसंधानों से पता चल चुका है कि भ्रू-मध्य के ठीक पीछे मस्तिष्क में अवस्थित पीयूष या पीनियल ग्रंथि के भीतर की पीनियलोसाइट्स कोशिकाओं से मेलाटोनिन हॉर्मोन बनना बंद हो जाता है तो अनुकंपी (पिंगला) और परानुकंपी (इड़ा) नाड़ी संस्थान के बीच का संतुलन बिगड़ जाता है।

इसके उलट यदि मेलाटोनिन हार्मोन का स्राव होते रहता है तो अनिद्रा की समस्या आती ही नहीं। अब तो यह भी पता चल चुका है कि इंफ्लूएंजा जैसी संक्रामक बीमारी के विरूद्ध प्रतिरोधक क्षमता तैयार करने में भी इसकी बड़ी भूमिका होती है। टी-सेल्स श्वेत रक्त-कोशिकाएं होती हैं, जो कि हमारी इम्युनिटी में बेहद अहम भूमिका निभाती हैं। ये ऐंटीबॉडी रिलीज करती हैं, जिससे वायरस मरता है। जब हम रात्रि में कमरे की लाइटें बंद करके विश्राम करते हैं तो मेलाटोनिन का स्राव होने लगता है। यदि कमरे में रोशनी रही तो इस कार्य में बाधा आती है। मेलाटोनिन का स्राव जितना गहरा होता है, नींद भी उतनी ही गहरी होती है। चार घंटों की नींद भी आठ घंटों की नींद जैसी जान पड़ती है। इससे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य दुरूस्त रहता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।

शास्त्रों में भी नींद की महत्ता बतलाई गई है। भविष्य पुराण, पदंम पुराण और मनुस्मृति में बतलाया गया है कि रात्रि में विश्राम की तैयारी किस तरह हो कि गहरी नींद आए। पर यदि नींद में बाधा है तो योग के साथ ही मंत्रों की अहमियत भी बतलाई गई है। कहा गया है कि “या देवी सर्वभूतेषु निद्रा-रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः“ मंत्र का नींद से संबंध है। इस मंत्र का जप श्रद्धापूर्वक करने से निद्रा में व्यवधान खत्म होता है। पर मंत्रयोग हो या योग की कोई अन्य विधि, लाभ तो तभी होगा, जब हम अनुशासित जीवन-शैली के लिए तैयार रहेंगे। कैफीन का सेवन करने वालों को भला कौन-सी युक्ति काम आएगी?   

खैर, जहां तक नींद के लिए यौगिक उपायों का सवाल है तो यह विज्ञानसम्मत है कि यदि योगनिद्रा, अजपा जप, भ्रामरी प्राणायाम, सोऽहं मंत्र के साथ नाडी शोधन प्राणायाम आदि योग विधियों में से किसी एक का भी निरंतर अभ्यास किया जाए, तो अनिद्रा की समस्या जाती रहेगी। अवसाद से भी छुटकारा मिलेगा। चिकित्सकीय परीक्षणों से साबित हुआ कि योगनिद्रा के अभ्यास के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। यानी चेतना अंतर्मुखता और बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। चेतना के अंतर्मुख होते ही मन तमाम तनावों, उत्तेजनाओं से मुक्त हो जाता है। यह गहरी निद्रा से भी आगे सूक्ष्म निद्रा की अवस्था होती है। बीटा और थीटा की यही अदला-बदली योगनिद्रा का रहस्य है। तभी कई गंभीर बीमारियों से जूझते मरीजों पर यह कमाल का असर दिखाता है।

सत्यानंद योग पद्धति में कहा गया है कि अजपा योग की ऐसी विधि है, जो नींद नहीं आती तो ट्रेंक्विलाइजर है, दिल की बीमारी है तो कोरामिन है और सिर में दर्द है तो एनासिन है। इसी तरह भ्रामरी प्राणायाम है। बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं कि रात में नींद खुल जाए तो तीन बार विधि पूर्वक भ्रामरी प्राणायाम कीजिए, नींद आ जाएगी। इसलिए कि इससे भी मेलाटोनिन का स्राव होने लगता है। पर योगनिद्रा तुरंत-तुरंत के लाभ के लिए बेहद उपयोगी है। वैसे, इन योग विधियों का नींद के लिए उपयोग वैसा ही जैसे सुई का काम तलवार से लिया जाए। पर संकट गहरा है तो तलवार से ही काम लेने में ही बुद्धिमानी है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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