अनिद्रा से मुक्ति दिलाएंगी ये योग विधियां

किशोर कुमार

कोरोना महामारी के बाद अनिद्रा की समस्या से पीड़ित और अवसादग्रस्त लोगों की बढ़ती तादाद स्वास्थ्य से जुड़ी बड़ी समस्या बनकर उभरी है। जब बच्चे अनिद्रा की शिकायत करने लगें और तनावग्रस्त हो जाएं तो मान लेना चाहिए कि पानी सिर से ऊपर बह रहा है। आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देखने वाले भारत के लिए यह चिंता का विषय है। इसलिए कि इस समस्या का सीधा संबंध हमारी अर्थ-व्यवस्था से भी है। मेलाटोनिन हार्मोन का न बनना अनिद्रा की सबसे बड़ी वजह है। पर अनिद्रा की समस्या दूर हो जाए तो स्वास्थ्य संबंधी बहुत सारी समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी। भारत के योगी सदियों से बतलाते रहे हैं कि प्राकृतिक तौर पर मेलाटोनिन के उत्पादन में किसी कारण से बाधा आती है तो उसका यौगिक समाधान है। पर मेलोटोनिन स्राव के लिए दवा तैयार करने वाली कंपनियों का धंधा जिस तरह चमका है, वह चिंताजनक है। इसलिए कि इसके परिणाम अधिक घातक होने वाले हैं।

महाभारत की एक कथा इस संदर्भ में प्रासंगिक है। श्रीकृष्ण महाभारत युद्ध से पूर्व कौरवों के पास संधि प्रस्ताव लेकर गए थे। कहा था, क्यों आपस में झगड़ने पर आमादा हो? पांच राज्य नहीं, तो पांच गांव ही दे दो। दुर्योधन तैयार न हुआ तो श्रीकृष्ण ने उसे राजधर्म की याद दिलाई। इसके प्रत्युत्तर में दुर्योधन ने जो कहा, वह गौर करने लायक है। वह कहता है – “राजधर्म क्या है, मैं जानता हूं। पर उस ओर मेरी प्रवृत्ति नहीं है। अधर्म क्या है, मैं उसको भी जानता हूं। पर अधर्मों से अपने को दूर नहीं रख पाता। पता नहीं, वह कौन-सी शक्ति है, जो मेरे भीतर बैठकर पापकर्म कराती है।“ श्रीमद्भगवतगीता में अर्जुन इस बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि तमोगुणी व्यक्ति बड़ा ही अहंकारी होता है, अज्ञानी होता है। उसमें “मैं” की भावना प्रबल होती है। इस वजह से सज्जनों की बातों से राजी होने को तैयार नहीं होता, बल्कि इसके उलट काम करता है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि मानसिक शांति से ही मैपन छूटेगा, अहंकार टूटेगा, तमोगुण मिटेगा और जीवन सुखमय होगा। इसके लिए उपाय एक ही है और वह है – अभ्यास योगेन तत: मामिच्छाप्तुं धनंजय। यानी योगाभ्यास।

आज के संदर्भ में हम सबकी स्थिति भी कुछ दुर्योधन जैसी ही हो गई है। तभी यौगिक उपायों का ज्ञान होते हुए भी हम सब दवाओं के पीछे भागे चले जा रहे हैं। इसके कुपरिणाम तक झेलने को तैयार हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं रही कि अनिद्रा दूर करने वाला कृत्रिम मेलाटोनिन कुछ समय बाद अनिद्रा का ही कारण बन जाता है। अठारहवीं सदी के लखनवी शायर लाला मौजी राम मौजी ने लिखा था – “दिल के आइने में हैं तस्वीरें यार, जब जरा गर्दन झुकाई देख ली।“ हम सब भी नजरिया बदल लें तो बात बन जाएगी। योगाभ्यास से प्राकृतिक तौर पर मेलाटोनिन का उत्पादन होने लगेगा। इसके विस्तार में जाने से पहले जानना जरूरी है कि आखिर मेलाटोनिन हार्मोन होता क्या है? अनुसंधानों से पता चल चुका है कि भ्रू-मध्य के ठीक पीछे मस्तिष्क में अवस्थित पीयूष या पीनियल ग्रंथि के भीतर की पीनियलोसाइट्स कोशिकाओं से मेलाटोनिन हॉर्मोन बनना बंद हो जाता है तो अनुकंपी (पिंगला) और परानुकंपी (इड़ा) नाड़ी संस्थान के बीच का संतुलन बिगड़ जाता है।

इसके उलट यदि मेलाटोनिन हार्मोन का स्राव होते रहता है तो अनिद्रा की समस्या आती ही नहीं। अब तो यह भी पता चल चुका है कि इंफ्लूएंजा जैसी संक्रामक बीमारी के विरूद्ध प्रतिरोधक क्षमता तैयार करने में भी इसकी बड़ी भूमिका होती है। टी-सेल्स श्वेत रक्त-कोशिकाएं होती हैं, जो कि हमारी इम्युनिटी में बेहद अहम भूमिका निभाती हैं। ये ऐंटीबॉडी रिलीज करती हैं, जिससे वायरस मरता है। जब हम रात्रि में कमरे की लाइटें बंद करके विश्राम करते हैं तो मेलाटोनिन का स्राव होने लगता है। यदि कमरे में रोशनी रही तो इस कार्य में बाधा आती है। मेलाटोनिन का स्राव जितना गहरा होता है, नींद भी उतनी ही गहरी होती है। चार घंटों की नींद भी आठ घंटों की नींद जैसी जान पड़ती है। इससे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य दुरूस्त रहता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।

शास्त्रों में भी नींद की महत्ता बतलाई गई है। भविष्य पुराण, पदंम पुराण और मनुस्मृति में बतलाया गया है कि रात्रि में विश्राम की तैयारी किस तरह हो कि गहरी नींद आए। पर यदि नींद में बाधा है तो योग के साथ ही मंत्रों की अहमियत भी बतलाई गई है। कहा गया है कि “या देवी सर्वभूतेषु निद्रा-रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः“ मंत्र का नींद से संबंध है। इस मंत्र का जप श्रद्धापूर्वक करने से निद्रा में व्यवधान खत्म होता है। पर मंत्रयोग हो या योग की कोई अन्य विधि, लाभ तो तभी होगा, जब हम अनुशासित जीवन-शैली के लिए तैयार रहेंगे। कैफीन का सेवन करने वालों को भला कौन-सी युक्ति काम आएगी?   

खैर, जहां तक नींद के लिए यौगिक उपायों का सवाल है तो यह विज्ञानसम्मत है कि यदि योगनिद्रा, अजपा जप, भ्रामरी प्राणायाम, सोऽहं मंत्र के साथ नाडी शोधन प्राणायाम आदि योग विधियों में से किसी एक का भी निरंतर अभ्यास किया जाए, तो अनिद्रा की समस्या जाती रहेगी। अवसाद से भी छुटकारा मिलेगा। चिकित्सकीय परीक्षणों से साबित हुआ कि योगनिद्रा के अभ्यास के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। यानी चेतना अंतर्मुखता और बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। चेतना के अंतर्मुख होते ही मन तमाम तनावों, उत्तेजनाओं से मुक्त हो जाता है। यह गहरी निद्रा से भी आगे सूक्ष्म निद्रा की अवस्था होती है। बीटा और थीटा की यही अदला-बदली योगनिद्रा का रहस्य है। तभी कई गंभीर बीमारियों से जूझते मरीजों पर यह कमाल का असर दिखाता है।

सत्यानंद योग पद्धति में कहा गया है कि अजपा योग की ऐसी विधि है, जो नींद नहीं आती तो ट्रेंक्विलाइजर है, दिल की बीमारी है तो कोरामिन है और सिर में दर्द है तो एनासिन है। इसी तरह भ्रामरी प्राणायाम है। बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं कि रात में नींद खुल जाए तो तीन बार विधि पूर्वक भ्रामरी प्राणायाम कीजिए, नींद आ जाएगी। इसलिए कि इससे भी मेलाटोनिन का स्राव होने लगता है। पर योगनिद्रा तुरंत-तुरंत के लाभ के लिए बेहद उपयोगी है। वैसे, इन योग विधियों का नींद के लिए उपयोग वैसा ही जैसे सुई का काम तलवार से लिया जाए। पर संकट गहरा है तो तलवार से ही काम लेने में ही बुद्धिमानी है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

कोरोना से बचाव में मददगार है भ्रामरी

शारीरिक व मानसिक व्याधियों को दूर करने में योग की भूमिका से हम सब वाकिफ रहे हैं। पर हाल ही एक शोध से पता चला कि कोरोना संक्रमण का असर कम करने में योग की बड़ी भूमिका हो सकती है। जर्नल रेडॉक्स बायोलॉजी के मुताबिक, शोध से पता चला है कि नाइट्रिक ऑक्साइड कोविड-19 से उबरने में मदद कर सकती है और लाखों लोगों की जान बचा सकती है। यह एक एंटीमाइक्रोबियल और एंटी-इंफ्लामेटरी मोलिक्यूल है, जो पल्मोनरी वैस्क्युलर के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हम जानते हैंं कि नाइट्रिक ऑक्साइड शरीर में प्राकृतिक रूप से उत्पादित होने वाला एक पदार्थ है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है। परमहंस निरंजनानंद सरस्वती के मुताबिक ओम् के उच्चारण के साथ भ्रामरी प्राणायाम करने से नाइट्रिक आक्साइड 15 गुणा ज्यादा उत्पादित होता है।

बात तो कोविड-19 और योग के प्रभावों पर होनी है। पर शुरूआत एक औपनिषदिक कथा से। कौशल प्रदेश के विख्यात ऋषि थे अश्वलायन। पांडित्य उनके पास था, पर अनुभवात्मक ज्ञान नहीं था। ऐसे समझिए कि वे आम के बारे में जानते थे। पर आम का स्वाद चखा न था। ऋषि थे तो शब्दों से उन्हें सब पता था। शस्त्रों में जो कहा गया है, उन्हें ज्ञात था। सिद्धांत से परिचित थे। पर जब ब्रह्मविद्या की जिज्ञासा हुई तो महर्षि पिप्पलाद के पास ऐसे गए मानों उनका दिमाग खाली हो और वे कुछ भी नहीं जानते हैं। समिधा लेकर नम्रतापूर्वक खड़े हो गए। महर्षि पिप्पलाद के योग्य शिष्य बन गए। तभी उनका सैद्धांतिक ज्ञान अनुभव में तब्दील हो पाया था।

सैद्धांतिक ज्ञान हो और अनुभवात्मक ज्ञान न हो तो उसका परिणाम क्या होता है, इसे ऐसे समझिए।  बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती शिष्यों के साथ अपने अनुभव, अपना संस्मरण साझा किया करते थे। वे जब विदेश भ्रमण पर थे तो हवाई जहाज में उनकी मुलाकात एक ऐसे अन्वेषी से हो गई, जिसने रसगुल्ला पर अनुसंधान किया था। उसने रसगुल्ले के बारे में काफी कुछ बतलाया। पर इसी बीच एक घटना घटित हो गई। स्वामी जी के पास रसगुल्ला था। उन्होंने बैग से निकाला और सहयात्री को भी खाने के लिए दिया। सहयात्री ने रसगुल्ला कभी देखा न था। लिहाजा वह पूछ बैठा कि यह क्या है? स्वामी जी ने कहा कि यह वही चीज है, जिसके बारे में आप लंबा व्याख्यान दिए जा रहे थे….। इसलिए मैं इस कॉलम में अक्सर सलाह देता हूं कि लेख या किताबें पढ़कर कभी योगाभ्यास नहीं करना चाहिए। सैद्धांतिक ज्ञान योग्य योग शिक्षक के चयन और अभ्यास में तो सहायक होता है। पर जब अभ्यास करना हो तो योग्य प्रशिक्षक का मार्ग-दर्शन जरूरी है।

कोरोना महामारी की दूसरी लहर आई तो तमाम एहतियात के बावजूद मैं गंभीर रूप से कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गया। अनेक लोगों के फोन आते थे। वे कहते कि आप तो योग विद्या पर इतना लिखते हैं। यौगिक उपाय कीजिए। सब ठीक हो जाएगा। खैर, कोरोना की दूसरी लहर में अनेक लोगों का ज्वर दस-बारह दिनों तक भी रहता है। चिकित्सक कहते हैं कि छठा दिन महत्वपूर्ण है। यदि ज्वर न जाए तो चिकित्सकों की राय से स्ट्रायड के जरिए इलाज पर विचार होना चाहिए। मेरे चिकित्सक ने भी कुछ ऐसी अनुशंसा की। पर स्ट्रायड को लेकर तरह-तरह की आशंकाएं थीं। समस्या बढ़ती देख मैंने आठवें दिन अपने गुरू परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती का ध्यान करते हुए सो गया।

अगले दिन सुबह बिहार योग विद्यालय के एक वरिष्ठ संन्यासी का फोन आया। उन्होंने सुझाव दिया कि अन्य दवाओं के साथ ही महासुदर्शन चूर्ण लीजिए। बुखार उतर जाएगा। ठीक ही बुखार कम होने लगा और उतर गया। स्ट्रायड लेने की जरूरत ही न पड़ी। बीमारी के दौरान आक्सीजन का लेवर थोड़ा नीचे जाने लगा था तो उसी समय संभवत: गुरूजी की प्रेरणा से बिहार योग विद्यालय के पूर्व छात्र और दिल्ली के लोकप्रिय योगाचार्य शिवचित्तम मणि का फोन आ गया कि मकरासन, उदर श्वसन, नाड़ी शोधन प्राणायाम और भ्रामरी प्राणायाम करें। पर श्वास-प्रश्वास पर एकाग्रता के साथ। आर्श्चजनक ढंग से आक्सीजन के स्तर में सुधार हो गया और मानसिक शांति भी मिली।

कोविड-19 का दुष्प्रभाव मेरे वोकल कॉर्ड पर पड़ा था। आवाज एकदम दब गई थी। चिकित्सकों ने कहा कि इसके इलाज के पहले कई जांच की जरूरत होगी और आवाज लौटने में दो महीनों का वक्त लग सकता है। बिहार योग विद्यालय के वरिष्ठ संन्यासी और मेरे श्रद्धेय स्वामी जी ने इसके लिए काकी मुद्रा करने का सुझाव दिया। कहा कि इससे आवाज भी लौटेगी और फेफड़े को भी बल मिलेगा। यकीन मानिए कि काकी मुद्रा दो दिनों तक चार बार करने के साथ ही मेरी आवाज खुल गई। वोकल कॉर्ड की समस्या जाती रही। कोरोना संक्रमण खत्म होने के बाद कुछ योगाचार्यों की सलाह पर कपालभाती और भस्त्रिका प्राणायाम करने लगा। मुंह से और नाक से खून आने लगा। अजीब तरह का भारीपन महसूस हुआ। फिर जल्दी ही समझ में आया कि ये अभ्यास बीमारी से उबरने के पंद्रह-बीस दिनों बाद ही करने चाहिए।

आखिर कोरोना से संक्रमित मरीजों के लिए मकरासन, उदर श्वसन, नाड़ी शोधन प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम और काकी मुद्रा जरूरी क्यों है? मकसासन वैसे तो पीठ के नीचले भाग के दर्द या मेरूदंड की किसी भी गड़बड़ी में प्रभावकारी है। पर दमा और फेफड़े के रोगियों के लिए भी बेहद लाभकारी इसलिए है कि इससे फेफड़े में अधिक वायु प्रवेश करता है। इस आसन का महत्व एलोपैथी के चिकित्सकों ने भी समझा और खुलकर अनुशंसा की। उदर श्वसन से श्वसन का मार्ग प्रशस्त होता है। इसे श्वसन की सबसे स्वाभाविक व प्रभावी विधि माना जाता है। जाहिर है कि फेफड़े को मजबूती प्रदान करके आक्सीजन का स्तर सुधारने में इसकी भी बड़ी भूमिका होती है। हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है कि प्राण-वायु में अशांति के कारण दमा, खांसी, सरदर्द, आखों की बीमारियों सहित कई बीमारियां बिन बुलाए आ जाती है। पर प्राण वायु संतुलित हो तो फेफड़े से लेकर रक्त और शरीर की सभी कोशिकाओं में आक्सीजन पर्याप्त रूप से रहता है। नाड़ी शोधन प्राणायाम, जिसे अनुलोम-विलोम भी कहा जाता है, पर अनेक अनुसंधान हुए हैं। रक्त में पर्याप्त आक्सीजन पहुंचाने में इसकी भूमिका अतुलनीय है।

जर्नल रेडॉक्स बायोलॉजी के मुताबिक, हाल ही में हुए एक शोध से ये बात सामने आई है कि नाइट्रिक ऑक्साइड कोविड-19 से उबारने में मदद कर सकती है और लाखों लोगों की जान बचा सकती है। शोध के अनुसार, ये एक एंटीमाइक्रोबियल और एंटी-इंफ्लामेटरी मोलीक्यूल है, जो पल्मानरी वैस्क्यूलर के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मूल रूप से, नाइट्रिक ऑक्साइड शरीर में प्राकृतिक रूप से उत्पादित एक पदार्थ है। शोधों से साबित हो चुका है कि भ्रामरी प्राणायाम प्राकृतिक रूप से उत्पादित होने वाले नाइट्रिक ऑक्साइड में पंद्रह फीसदी तक की वृद्धि कर देता है। इसलिए योगियों ने कोरोनाकाल में भ्रामरी प्राणायाम पर काफी बल दिया। काकी मुद्रा से मानसिक तनाव कम होता है। रक्तचाप सामान्य रहता है। पाचन-क्रिया ठीक रहती है औऱ रक्त शुद्ध होता है। गले से संबंधित बीमारियां ठीक होती हैं।

योगशास्त्रों के मुताबिक योगियों को काकी मुद्रा की प्रेरणा कौए से मिली थी। कहते हैं कि कौए कभी बीमार नहीं होते। उसकी वजह यह है कि वे अपनी चोंच से श्वास लेते हैं। योगियों ने खुद पर प्रयोग किया। वे अपने मुख को कौए के चोंच सदृश्य बनाकर हवा भरतें और थोड़ी देर बाद नाक से उसे छोड़ देतें। इसके कई फायदे दिखे। मानसिक तनाव कम होता है। रक्तचाप सामान्य रखता है। पाचन-क्रिया ठीक रहती है औऱ रक्त शुद्ध होता है। गला साफ होता है। आजकल चेहरे पर झुर्रियां न पड़े, इसलिए लड़कियों और महिलाओं में यह लोकप्रिय हो रहा है। स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते थे कि इसके नियमित अभ्यास से कौए के समान निरोग और दीर्घ जीवन प्राप्त होता है। इन अभ्यासों के साथ ही नेति किया जाए तो सोने पे सुहागा। इन तथ्यों से साफ है कि कोरोना संक्रमण और उसके कुप्रभावों को दूर करने में योग बेहद प्रभावकारी है।  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)         

नींद की गोली न बनाएं इन योग विधियों को

भक्तिकाल के महान संत अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ानाँ उर्फ रहीम का एक प्रसिद्ध दोहा है – “रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजै डारि। जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥“ हम सब बोलचाल में इसी बात को कहते भी हैं कि जहां सुई की जरूरत है, वहां तलवार का क्या काम? पश्चिम के दार्शनिकों और वैज्ञानिकों ने लॉ ऑफ इंस्ट्रुमेंट कहा। पर अब्राहम मास्लो की व्याख्या सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुई – यदि आपके पास केवल और केवल हथौड़ा ही है तो आप हर वस्तु को कील समझने लगते हैं। गुरूत्तर उद्देश्य वाली योग विद्या के साथ व्यवहार रूप में ऐसा ही हो रहा है। प्राणायाम, प्रत्याहार और धारणा की जिन विधियों का उपयोग शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य और चेतना के विकास के लिए होना चाहिए था, उनका इस्तेमाल नींद की गोलियों की तरह किया जा रहा है। यानी सुई का काम तलवार से।

ऑस्ट्रेलियाई सेना के ब्रिगेडियर ओलिवर डेविड जैक्सन की एक प्रचलित कहानी है। साठ के दशक में उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम के बीच युद्ध चरम पर था। ब्रिगेडियर डेविड की अगुआई में आस्ट्रेलियाई सेना दक्षिणी वियतनाम की तरफ से जंग-ए-मैदान में थी। दुश्मनों ने एक रात आस्ट्रेलियाई सेना की एक टुकड़ी के सभी जवानों पर एक साथ वार करके उन्हें मौत की नींद सुला दी। ब्रिगेडियर डेविड खुद किसी तरह बच गए। पर उस हृदयविदारक घटना इतने द्रवित हुए कि हृदयाघात हो गया। अस्पताल ले जाया गया। उन्होंने वहां एक साधु को देखा तो पूछा लिया, “आप यहां क्या कर रहे हैं?” उत्तर मिला, “मैं मरीजों को योगाभ्यास कराता हूं।“ ब्रिगेडियर डेविड ने अगला सवाल किया, “क्या मैं योग की बदौलत फिर से युद्ध के मैदान में खड़ा हो सकता हूं?”  इसके बाद जो हुआ, उससे उनका जीवन बदल गया। वे “योगनिद्रा” की बदौलत स्वस्थ हो गए और युद्ध के मैदान में जा खड़े हुए थे।

चिकित्सकीय परीक्षणों से साबित हो चुका है कि योगनिद्रा के अभ्यास के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। यानी चेतना अंतर्मुखता और बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। चेतना के अंतर्मुख होते ही मन तमाम तनावों, उत्तेजनाओं से मुक्त हो जाता है। यह गहरी निद्रा से भी आगे सूक्ष्म निद्रा की अवस्था होती है। बीटा और थीटा की यही अदला-बदली योगनिद्रा का रहस्य है। तभी कई गंभीर बीमारियों से जूझते मरीजों पर यह कमाल का असर दिखाता है। जरा सोचिए, इतनी प्रभावशाली योग विद्या का इस्तेमाल हम अपने संपूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य के लिए न करके केवल नींद के लिए करते हैं तो इसे क्या कहा जाए?  मेरे कई जानने वाले उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, अवसाद आदि गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं। मैं जब उनसे पूछता हूं कि आप योगनिद्रा का नियमित अभ्यास करते हैं तो जबाव होता है कि हां, जब नींद नहीं आती है तो उसका प्रयोग कर लेता हूं। तुरंत ही नींद आ जाती है।

योगनिद्रा की तरह ही अजपा जप एक महान योग विधि है। इस पर भी दुनिया भर में अध्ययन किया गया। सिलसिला अब भी जारी है। इस योग विधि में शारीरिक तनाव, मानसिक तनाव और भावनात्मक तनाव इन तीनों को एक साथ ही दूर कर देने की असीम शक्ति है। ऐसे में इसके सामान्य अभ्यास से ही नींद आ जाना मामूली बात है। पर जीवन में ऐसी उथल-पुथल मची रहती है कि हम इस बात पर विचार नहीं करते कि नींद क्यों नहीं आती है और क्या नींद न आने के कारणों का इलाज इस योग विधि से संभव है? नतीजा होता है कि हम छोटे लाभों के लिए बड़ा अवसर गंवा देते हैं और समस्या बढ़ती चली जाती है।

“अजपा जप” प्राणायाम और धारणा के बीच का उच्चतर योग कर्म है। यह जब सिद्ध होता है तो बिना जप किए जप होने लगता है। अंतर्ध्वनि खुद प्रकट हो जाती है। रामायण में प्रसंग है कि जब हनुमान जी सीती जी की खोज में जंगलों में भटक रहे थे तो उनकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी। वह नींद में था। पर उसके मुख से राम नाम का मंत्र निकल रहा था। तब हनुमान जी अपने इष्ट श्रीराम को याद कर आराधना करते हैं। कहते हैं – हे प्रभु, ऐसी अवस्था मुझे भी प्राप्त हो जाए। उस राम नाम का संबंध श्रीराम से नहीं था। शास्त्रों में उल्लेख है और परंपरागत योग के संन्यासी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते भी हैं कि कृष्ण और राम नाम वाले तमाम मंत्र कृष्ण भगवान और मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के जन्म से पहले भी थे। खैर, अजपा जप में प्रयुक्त मंत्र की शक्ति इतनी प्रबल होती है कि यह आधुनिक युग की अनेक बीमारियों की एक दवा हो सकती है। आध्यात्मिक चेतना का विकास तो होता ही है।

भ्रामरी प्राणायाम भी बेहद शक्तिशाली प्राणायाम है। पर इसका ज्यादातर प्रयोग नींद के लिए किया जाने लगा है। यह सच है कि यदि नींद न आ रही हो और इस प्राणायाम का अभ्यास कर लिया जाए तो नींद आने की संभावना प्रबल हो जाती है। पर भ्रामरी प्राणायाम का इसे बाईप्रोडक्ट कह सकते हैं। इस प्राणायाम में दम इतना कि अमेरिका के येल स्कूल ऑल मेडिसिन में अध्ययन हुआ तो पता चला कि यह त्वचा कैंसर से मुक्ति दिलाने में मददगार है। दरअसल, इससे पीनियल ग्रंथि उदीप्त होता है तो मिलेनिन का बनना बंद हो जाता है, जो त्वचा कैंसर की प्रमुख वजह है। योगशास्त्र में पीनियल ग्रंथि वाले स्थान को ही आज्ञा चक्र कहते हैं, जो मस्तिष्क के कार्य, व्यवहार और ग्रहणशीलता को नियंत्रित रखने में सहायक है। इसलिए बच्चों को विशेष तौर से यह योगाभ्यास करने की सलाह दी जाती है। ताकि बौद्धिक विकास हो और जीवन में स्पष्टता आए।

योग की कोई विधि एलोपैथिक दवा नहीं कि किसी रोग की वजह से दर्द हुआ और एक दर्दनाशक टैबलेट खाकर उससे अस्थाई मुक्ति पा ली। शारीरिक स्वास्थ्य के संदर्भ में योग का पहला उद्देश्य तो है कि मानव शरीर रोगग्रस्त हो ही नहीं। यदि रोग हो ही गया और आधुनिक चिकित्सा पद्धति से रोग का कारण पता लगाकर  आयुर्वेदिक आहार के साथ समुचित योगाभ्यास कमाल का असर दिखाता है। कुल मिलाकर बात इतनी कि नींद क्यों नहीं आती, इसकी पड़ताल करके उससे मुक्ति पाने के लिए योग कर्म होना चाहिए। तभी योग की सार्थकता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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