धीरेंद्र ब्रह्मचारी : बेशकीमती यौगिक सूक्ष्म व्यायाम है

किशोर कुमार

अस्सी के दशक के बहुचर्चित योगी और महर्षि कार्तिकेय के शिष्य धीरेंद्र ब्रह्मचारी राजनीति और व्यापार के पचड़े में न पड़े होते तो उनके “विश्वायतन योगाश्रम” और “योग अनुसंधान संस्थान” का परचम लहरा रहा होता। अपने समय के प्रतिभाशाली हठयोगी होने के कारण शिखर पर पहुंच तो गए थे। पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से संबंधों और अपनी कुछ गतिविधियों के कारण इतने विवादास्पद हुए कि योग को विज्ञान की कसौटी पर कसकर उसे जन-जन तक पहुंचाने के उनके अभियान को बड़ा धक्का लगा। लेखकों-पत्रकारों के एक बड़े वर्ग के लिए योग, यौगिक अनुसंधान व उससे मिलने वाले लाभ गौण हो गए और विवादास्पद प्रसंग महत्वपूर्ण हो गए।

वैसे, धीरेंद्र ब्रह्मचारी इकलौते योगी नहीं हैं, जो विवादास्पद बने। कई अन्य योगियों का भी अलग-अलग कारणों से विवादों से गहरा नाता रहा है। पर उनके मूल कार्यों पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। इस मामले में धीरेंद्र ब्रह्मचारी भाग्यशाली नहीं निकले। श्रीमद्भगवतगीता में श्रीकृष्ण कहते हैं – “कर्मफल का आश्रय न लेकर जो कर्तव्य-कर्म करता है, वही संन्यासी तथा योगी है।“ हम जानते हैं कि संसार त्रिगुणों यानी तमस, रजस और सत्व गुणों की लीला भूमि है। कोई भी व्यक्ति इन गुणों से परे नहीं है। फर्क इतना है कि किसी में तमस गुण की प्रधानता है तो किसी में रजस गुण की। आत्मज्ञानी संतों में सत्व गुण की प्रधानता होती है। धीरेंद्र ब्रह्मचारी की जैसी जीवन-शैली थी, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि वे रजस गुण प्रधान योगाचार्य थे।

धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने भी कभी नहीं कहा कि वे योगी या आत्मज्ञानी संत हैं। हमेशा खुद को हठयोग साधक या योगाचार्य बताते रहे। पर समस्या इसलिए भी खड़ी हुई कि हम उन्हें निवृत्ति मार्गी संन्यासी मानते हुए तदनुरूप व्यवहार की उम्मीद करने लगे। भूल गए कि योगाचार्य प्रोफेशनल भी हो सकता है। भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक बिक्रम चौधरी तो हॉट योग के लिए दुनिया भर में मशहूर हैं। कारोबार पांच सौ करोड़ रूपए का है। विवादों से नाता बना रहता है। पर कारोबार पर कभी फर्क नहीं पड़ा।    

धीरेंद्र ब्रह्मचारी हठयोग विद्या में प्रवीण थे। तंत्र की शक्तियों से वाकिफ थे। तभी हठयोग और तंत्र में परस्पर संबंध बतलाते हुए तदनुरूप योगाभ्यास भी कराते थे। उन योगाभ्यासों से किसी न किसी दौर में राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, राजीव गांधी, उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम और लोकनायक जयप्रकाश नारायण जैसी शख्सियतों के अलावा लाखों लोग लाभान्वित हुए। सच तो यह है कि सन् 1956 में जेपी जब यौगिक उपचार से मधुमेह-मुक्त हुए तो उन्होंने ही धीरेंद्र ब्रह्मचारी को कलकत्ता से दिल्ली लाने में भूमिका निभाई थी। वरना धीरेंद्र ब्रह्चारी ज्यादातर कलकत्ते में ही लोगों को योगाभ्यास कराते थे। जाहिर है कि धीरेंद्र ब्रह्मचारी में कुछ खास बात निश्चित रूप से रही होगी। तभी चेतना के बेहतर तल पर जीने वाली शख्सियतें उनसे प्रभावित थीं।

धीरेंद्र ब्रह्मचारी योग का प्रचार-प्रसार विश्वायतन संस्था के बैनर तले करते थे। इस संस्था के बड़े योगाश्रम दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में थे। दिल्ली का आश्रम अब भारत सरकार के अधीन मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान बन चुका है। जम्मू के मंतलाई आश्रम का कायाल्प करके उसे अंतर्राष्ट्रीय योग केंद्र बनाया जा रहा है। टीवी के जरिए योग का प्रचार-प्रसार अब आम है। पर धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने इसकी बुनियाद सत्तर के दशक में ही रख दी थी। दूरदर्शन पर “योगाभ्यास” नाम से कार्यक्रम प्रत्येक सप्ताह प्रसारित किया जाता था। वे कहते थे कि आत्मज्ञान योग का असल उद्देश्य है। पर यह विषय उनके एजेंडे में नहीं था। उनकी कोशिश इतनी भर थी कि लोग स्वस्थ्य एवं प्रसन्न रहें। इसलिए बहिरंग योग साधना उनका विषय था।

नई शिक्षा नीति में यौगिक क्रियाओं को अब जाकर स्थान मिला है। पर धीरेंद्र ब्रह्चारी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से अपने संबंधों का लाभ लेते हुए अस्सी के दशक में ही देश के सभी केंद्रीय विद्यालयों में योग शिक्षा आरंभ करवाई थी। ताकि छात्रों की प्रसुप्त क्षमताएं और प्रतिभाएं प्रकट हो सके। धीरेंद्र ब्रह्चारी संत भले न थे। पर संतों के प्रति अनुराग में कोई कमी न थी। इसे एक उदाहरण से समझिए। वे केंद्रीय विद्यालयों में योग शिक्षकों की बहाली के लिए खुद ही इंटरव्यू ले रहे थे। उनके समक्ष गेरू वस्त्र धारण किया हुआ एक अभ्यर्थी उपस्थित हुआ। उससे योग्यता प्रमाण-पत्र मांगा गया तो उसने बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के साथ की अपनी तस्वीर प्रस्तुत कर दी। धीरेंद्र ब्रह्चारी ऐसे उछले मानो कोयला खान में हीरा मिल गया हो। उन्होंने कहा, “इतने बड़े संत का जिसे सानिध्य मिल चुका है, उसके चयन के लिए कागज के टुकड़े का क्या मोल। आपका चयन किया जाता है।“

धीरेंद्र ब्रह्मचारी बिहार के मधुबनी जिले में जन्मे थे। यह वही जिला है, जहां स्वयं भगवान शिव अपने भक्त विद्यापति पर कृपा करके उनके घर में लंबे समय तक उगना के रूप में नौकरी किया करते थे। उगना महादेव मंदिर आज भी उस ईश्वरीय लीला की याद दिलाते रहता है। कृष्ण-भक्त धीरेंद्र ब्रह्चारी कोई बारह साल के थे तो उन पर सद्गुरू महर्षि कार्तिकेय की दृष्टि गई थी। इसके कुछ समय बाद ही वैराग्य के लक्ष्ण प्रकट हुए तो महादेव की लीला भूमि मधुबनी से निकल कर किसी कृष्णधाम नहीं, बल्कि काशी धाम ऐसे गए मानो आदियोगी उन्हें खींच ले गए हों। वहीं से उन्नाव के गोपाल खेड़ा स्थित कार्तिकेय आश्रम चले गए और योग विद्या हासिल की थी। जब कर्मक्षेत्र में उतरे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की नजर गई। फिर तो वे वैसे ही खिल गए, जैसे सूर्य की रोशनी पा कर सूरजमुखी के फूल खिल उठते हैं।

अब तो धीरेंद्र ब्रह्मचारी के गुजरे भी तीन दशक होने को हैं। उनके जीवन के श्याम पक्ष को पकड़ कर उसमें उलझे रहने का भी कोई सार नहीं है। सार है तो उनके यौगिक सूक्ष्म व्यायाम का, योगासन विज्ञान का। सन् 2024 धीरेंद्र ब्रह्मचारी का जन्मशताब्दी वर्ष है। उनकी यौगिक क्रियाओं का प्रचार-प्रसार करना और उन क्रियाओं को शोध का विषय बनाना योग को समृद्ध करना होगा। दिल्ली के बाद मंतलाई आश्रम का स्वरूप बदला जाना अच्छा कदम है। पर ध्यान रखा जाना चाहिए कि धीरेंद्र ब्रह्मचारी का योग-बल ही इन संस्थाओं की बुनियाद है। इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए। वरना इतिहास बदलने वाले कोई मौका कहां छोड़ते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

बिहार योग : ऐसे फैलती है सुगंधित पुष्प की खुशबू

सुगंधित पुष्प अपना प्रचार खुद करता है। यह शाश्वत सत्य बिहार योग या सत्यानंद योग के मामले में पूरी तरह चरितार्थ हो रहा है। बिहार योग चार महीनों के भीतर दूसरी बार चर्चा में है। पहले योगनिद्रा के कारण चर्चा में था। अब यौगिक कैप्सूल और गुरूकुल शिक्षा पद्धति को लेकर चर्चा में है। दोनों ही बार चर्चा की वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बने। वैसे तो बिहार योग की उपस्थिति एक सौ से ज्यादा देशों में है और जर्मनी में योग शिक्षा का आधार ही बिहार योग है। पर अपने देश में चिराग तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ होती रही।  परिस्थितियां बदलीं तो बिहार के सुदूरवर्ती मुंगेर जिले में उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर खिले योग रूपी फूल की खुशबू का अहसास सहज ही हुआ। उसी का नतीजा है कि बीते साल बिहार योग विद्यालय को श्रेष्ठ योग संस्थान का प्रधानमंत्री पुरस्कार मिला तो इसके एक साल पहले यानी सन् 2017 में बिहार योग विद्यालय के निवृत्त परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती को पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। यही नहीं, केंद्र सरकार देश में योग के संवर्द्धन के लिए जिन चार योग संस्थानों की सहायता ले रही है, उनमें बिहार योग विद्यालय भी है।        

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आधुनिक युग के जरूरतों को ध्यान में रखकर बिहार योग या सत्यानंद योग पद्धति से तैयार योग कैप्सूल में क्या खास दिखा कि वे खुद उसके दीवाने हुए और उसके बारे में देशवासी भी जानें, इसकी जरूरत समझी? इस सवाल पर विस्तार से चर्चा होगी। पर पहले योग की परंपरा और आध्यात्मिक चेतना के विकास से सबंधित कुछ ऐसी बातों की चर्चा, जिनके जरिए “फिट इंडिया मूवमेंट” की पहली वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम के मौके पर देशवासियों के बीच बड़ा संदेश गया।

प्रधानमंत्री के खुद का जीवन योगमय है और योग को अंतर्राष्ट्रीय फलक पर पुनर्स्थापित करने में उनका योगदान सर्वविदित है। उन्होंने “फिट इंडिया मूवमेंट” के कार्यक्रम में चर्चा के लिए फिटनेस की दुनिया के लोगों को आमंत्रित किया तो गुरूकुल परंपरा वाले संस्थान के संन्यासी से बात करना न भूले। उन्होंने इसके लिए स्वामी शिवध्यानम सरस्वती के रूप में एक ऐसे व्यक्ति का चयन किया, जो योग की गौरवशाली परंपरा वाले संस्थान बिहार योग विद्यालय के निवृत्त परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के शिष्य हैं और जिन्होंने आईआईटी, दिल्ली जैसे संस्थान से उच्च तकनीकी शिक्षा हासिल करने के बाद चेतना के उच्चतर विकास के लिए अलग मार्ग चुन लिया था। प्रधानमंत्री का यह कदम कोई अकारण नहीं रहा होगा। नई शिक्षा नीति में कई मामलों में गुरूकुल परंपरा की झलक दिखाई गई है। वे युवापीढ़ी को जरूर यह बताना चाहते होंगे कि गुरूकुल परंपरा और शास्त्रसम्मत योग विद्या का प्रभाव कैसा होता है।

स्वामी शिवध्यानम सरस्वती ने प्रधानमंत्री के सवालों का जबाव देते हुए स्वामी शिवानंद सरस्वती की गुरू-शिष्य परंपरा और बिहार योग परंपरा का वर्णन इस तरह किया कि नवीन और प्राचीन गुरूकुल परंपरा में एकरूपता की झांकी प्रस्तुत हो गई। अनेक लोगों को हैरानी हुई होगी कि आधुनिक जमाने में भी ऐसा गुरूकुल है। स्वामी शिवध्यानम उन्नत गुरू-शिष्य परंपरा के न होतें तो उनके पास एक मौका था कि प्रधानमंत्री के समाने खुले मंच पर अपनी पीठ खुद थपथपा सकते थे। पर गुरूकुल योग विद्या का असर देखिए कि उन्होंने अपनी योग परंपरा के तीन मुख्य संतों स्वामी शिवानंद सरस्वती, स्वामी सत्यानंद सरस्वती और स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के आदर्शों की चर्चा करते हुए आश्रम के अपने अनुभव को इस तरह साझा किया कि आदर्श गुरू-शिष्य परंपरा और शास्त्रसम्मत योग विद्या को लेकर नईपीढी के बीच सकारात्मक संदेश गया। 

बिहार योग-सत्यानंद योग एक ऐसी परंपरा है, जिसमें शास्त्रीय और अनुभवात्मक ज्ञान और आधुनिक दृष्टिकोण का समन्वय है। इसमें योग की प्राचीन पद्धति को आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया है। तमिलनाडु में जन्मे और पेशे से चिकित्सक स्वामी शिवानंद सरस्वती ने सत्यानंद सरस्वती जैसे शिष्य को आगे करके योग विद्या की ऐसी गंगा-जमुनी बहाई कि आज दुनिया के लोग उसमें डुबकी लगाकर आनंदमय जीवन जी रहे हैं। स्वामी सत्यानंद सरस्वती की समाधि के बाद स्वामी निरंजनानंद सरस्वती इस महायज्ञ को आगे बढ़ा रहे हैं।  

अब योग कैप्सूल की बात। विश्वव्यापी कोरोना वायरस का तांडव अपने देश में भी शुरू हुआ तो केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने योग संबंधी प्रोटोकॉल तैयार करवाए थे। मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान ने 3-6 वर्ष के बच्चों के लिए, नवयुवतियों के लिए, गर्भवती महिलाओँ के लिए, स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए औऱ चालीस वर्ष से ऊपर की महिलाओं के लिए योग संबंधी प्रोटोकॉल तैयार किए। स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने आधुनिक जमाने के लोगों की जीवन-पद्धति और दैनिक जरूरतों को ध्यान में रखकर कई साल पहले कुछ योग विधियां बतलाई थी, जिसके समन्वित रूप को योग कैप्सूल कहा था। प्रधानमंत्री को स्वामी निरंजन का योग कैप्सूल भा गया। शायद इसकी मुख्य वजह इसमें मंत्र-ध्वनि विज्ञान और योगनिद्रा का समावेश होना है, जिनके कारण शारीरिक व मानसिक बीमारियां दूर ही रहती हैं। 

स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के योग कैप्सूल कुछ इस तरह है – सुबह उठते ही महामृत्युंजय मंत्र व गायत्री मंत्र ग्यारह बार पाठ और दुर्गाजी के बत्तीस नामों का तीन बार पाठ। पहला मंत्र शारीरिक व मानसिक आरोग्य के लिए, दूसरा जीवन में बौद्धिक व भावनात्मक प्रतिभा की जागृति के लिए और तीसरा मंत्र जीवन से क्लेश व दु:ख की निवृत्ति एवं संयम व समरसता की प्राप्ति के लिए है। दैनिक चर्या के बाद पांच आसनों यथा तड़ासन, तिर्यक तड़ासन, कटि चक्रासन, सूर्य नमस्कार और सर्वांगासन का अभ्यास। इसके बाद नाड़ी शोधन और भ्रामरी प्राणायामों का अभ्यास। शाम को काम-काज से निवृत्त होने के बाद योगनिद्रा और रात को सोने से पहले दस मिनट मन को एकाग्र करने के लिए धारणा का अभ्यास। इसे ध्यान भी कहा जा सकता है।

बिहार योग विद्यालय के संस्थापक महासमाधिलीन परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने कहा था – “स्वामी निरंजन का व्यक्तित्व नए युग के अनुरूप है और वह आज की पीढ़ी के अनुरूप सोच सकते हैं।” स्वामी निरंजन अपने गुरू की कसौटी पर खरे उतरे। उनका यौगिक कैप्सूल योग साधना की एक ऐसी पद्धति है, जिसे अपनाने वाले अपने जीवन में बदलाव स्पष्ट रूप से देखने लगे हैं। देश-विदेश के लाखों लोग इस पद्धति को अपना कर निरोगी जीवन जी रहे हैं। योग विज्ञान के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है।

स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं – नाद सृष्टि का प्रथम व्यक्त रूप है। बाइबिल का प्रथम वाक्य है – “आरंभ में केवल शब्द था और वह शब्द ही ईश्वर था।“ भारतीय दर्शन के मुताबिक वह शब्द कुछ और नहीं, बल्कि “ॐ” था। ॐ मंत्र तीन ध्वनियों से मिलकर बना है – अ, उ और म। इनमें प्रत्येक ध्वनि के स्पंदन की आवृत्ति अलग-अलग होती है, जिससे चेतना पर उनका अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। इसी तरह ॐ नमः शिवाय कई नादो का समुच्य है। गायत्र मंत्र में चौबीस ध्वनियां हैं। मंत्र ध्वनि का विज्ञान है। इसकी सहायता से अपनी बहिर्मुखी चेतना को अंतर्मुखी बनाकर पुन: चेतना के मूल स्रोत तक पहुंचा जा सकता है।  

अनेक लोग किसी देवी-देवता को स्मरण करके मंत्रों का जप करते हैं। पर विदेशी लोग जब इन्हीं मंत्रों के जप करते हैं तो उनके मन में तो हमारे किसी देवी-देवता का रूप नहीं होता। फिर भी वे लाभान्वित होते हैं। स्वामी सत्यानंद सरस्वती तो कहते थे कि मंत्रों की साधना करते वक्त किसी भी विषय़ पर मन को एकाग्र करने की कोशिश ही नहीं करनी चाहिए। मन को खुलकर अभिव्यक्त होने देना चाहिए। मंत्र विज्ञान प्राचीन काल से विश्व के सभी भागों में व्यापक रूप से प्रयोग में था। इस विज्ञान की ओर अधुनिक विज्ञानियों की नजर गई है और इसका पुनरूत्थान किया जा रहा है। उन्हें पता चल गया है कि मंत्रों की शक्ति से ही प्रकृति और ब्रह्मांड के रहस्यों को उद्घाटित किया जा सकता है। आने वाले समय में मंत्रों का उपयोग एक वैज्ञानिक उपकरण के रूप में उसी तरह होगा, जिस तरह मौजूदा समय में लेजर या इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप का उपयोग प्रकृति के गहनतर आयामों को जानने के लिए किया जाता है।  

जहां तक योगनिद्रा की बात है तो प्रत्याहार की शक्तिशाली और मौजूदा समय में प्रचलित विधि स्वामी सत्यानंद सरस्वती की देन है। उन्होंने तंत्रशास्त्र से इस विद्या को हासिल करके इतना सरल, किन्तु असरदार बनाया कि आज दुनिया भर में इसका उपयोग मानसिक बीमारियों से लेकर कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों तक के उपचार में हो रहा है। दरअसल यह शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विश्रांति का एक व्यवस्थित तरीका है। गहरी निद्रा की स्थिति में डेल्टा तरंगें उत्पन्न होती हैं और ध्यान की अवस्था में अल्फा तरंगें निकालती हैं। योगाभ्यास के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। यानी योगाभ्यासी की चेतना अंतर्मुखता औऱ बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। चेतना जब बहिर्मुख होती है तो मन उत्तेजित हो जाता है औऱ अंतर्मुख होते ही सभी उत्तेजनाओं से मुक्ति मिल जाती है। इस तरह योगनिद्रा के दौरान बीटा औऱ थीटा की अदला-बदली होने की वजह से ही मन काबू में आ जाता है, शिथिल हो जाता है। मन की सजगता और शिथिलीकरण के लिए यह अचूक विधि मानी जाती है।

अब योग विधियों को लेकर वैज्ञानिक अनुसंधानों और उनके नतीजों की बात। बिहार योग विद्यालय ने स्पेन के बार्सिलोना स्थित अस्पताल में शल्य चिकित्सा कराने पहुंचे तनावग्रस्त मरीजों पर मंत्र के प्रभावों पर शोध किया। ऐसे सभी मरीजों को एक कमरे में बैठाकर बार-बार सस्वर ॐ मंत्र का उच्चारण करने को कहा गया था। ईईजी और अन्य चिकित्सा उपकरणों के जरिए देखा गया कि मंत्रोचारण से भय, घबराहट और चंचलता के लिए जिम्मेदार बीटा तरंगें कम होती गईं औऱ अल्फा तरंगों की वृद्धि होती गई। स्पेन में हुए शोध से साबित हुआ था कि मन की तरंगें सही रूप में उपयोग में लाई जाएं तो हमारा जीवन सुरक्षित हो सकता है।

अनिद्रा, तनाव, नशीली दवाओं के प्रभाव से मुक्ति, दर्द का निवारण, दमा, पेप्टिक अल्सर, कैंसर, हृदय रोग आदि बीमारियों पर किए गए अनुसंधानों से योगनिद्रा के सकारात्मक प्रभावों का पता चल चुका है। अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में किए गए एक अध्ययन में देखा गया कि योगनिद्रा के नियमित अभ्यास से रक्तचाप की समस्या का निवारण होता है। अमेरिका के शोधकर्ताओं ने योगनिद्रा को कैंसर की एक सफल चिकित्सा पद्धति के रूप में स्वीकार किया है। टेक्सास के रेडियोथैरापिस्ट डा. ओसी सीमोंटन ने एक प्रयोग में पाया कि रेडियोथेरापी से गुजर रहे कैंसर के रोगी का जीनव-काल योगनिद्रा के अभ्यास से काफी बढ़ गया था।

इन दृष्टांतों से समझा जा सकता है कि आधुनिक युग में योग कैप्सूल को जीवन-पद्धति में शामिल किया जाना कितना लाभप्रद है। शायद इसी वजह से प्रधानमंत्री चाहते हैं लोग योग कैप्सूल को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं और इसलिए उन्होंने सार्वजनिक मंच से इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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