कोरोना से बचाव में मददगार है भ्रामरी

शारीरिक व मानसिक व्याधियों को दूर करने में योग की भूमिका से हम सब वाकिफ रहे हैं। पर हाल ही एक शोध से पता चला कि कोरोना संक्रमण का असर कम करने में योग की बड़ी भूमिका हो सकती है। जर्नल रेडॉक्स बायोलॉजी के मुताबिक, शोध से पता चला है कि नाइट्रिक ऑक्साइड कोविड-19 से उबरने में मदद कर सकती है और लाखों लोगों की जान बचा सकती है। यह एक एंटीमाइक्रोबियल और एंटी-इंफ्लामेटरी मोलिक्यूल है, जो पल्मोनरी वैस्क्युलर के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हम जानते हैंं कि नाइट्रिक ऑक्साइड शरीर में प्राकृतिक रूप से उत्पादित होने वाला एक पदार्थ है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है। परमहंस निरंजनानंद सरस्वती के मुताबिक ओम् के उच्चारण के साथ भ्रामरी प्राणायाम करने से नाइट्रिक आक्साइड 15 गुणा ज्यादा उत्पादित होता है।

बात तो कोविड-19 और योग के प्रभावों पर होनी है। पर शुरूआत एक औपनिषदिक कथा से। कौशल प्रदेश के विख्यात ऋषि थे अश्वलायन। पांडित्य उनके पास था, पर अनुभवात्मक ज्ञान नहीं था। ऐसे समझिए कि वे आम के बारे में जानते थे। पर आम का स्वाद चखा न था। ऋषि थे तो शब्दों से उन्हें सब पता था। शस्त्रों में जो कहा गया है, उन्हें ज्ञात था। सिद्धांत से परिचित थे। पर जब ब्रह्मविद्या की जिज्ञासा हुई तो महर्षि पिप्पलाद के पास ऐसे गए मानों उनका दिमाग खाली हो और वे कुछ भी नहीं जानते हैं। समिधा लेकर नम्रतापूर्वक खड़े हो गए। महर्षि पिप्पलाद के योग्य शिष्य बन गए। तभी उनका सैद्धांतिक ज्ञान अनुभव में तब्दील हो पाया था।

सैद्धांतिक ज्ञान हो और अनुभवात्मक ज्ञान न हो तो उसका परिणाम क्या होता है, इसे ऐसे समझिए।  बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती शिष्यों के साथ अपने अनुभव, अपना संस्मरण साझा किया करते थे। वे जब विदेश भ्रमण पर थे तो हवाई जहाज में उनकी मुलाकात एक ऐसे अन्वेषी से हो गई, जिसने रसगुल्ला पर अनुसंधान किया था। उसने रसगुल्ले के बारे में काफी कुछ बतलाया। पर इसी बीच एक घटना घटित हो गई। स्वामी जी के पास रसगुल्ला था। उन्होंने बैग से निकाला और सहयात्री को भी खाने के लिए दिया। सहयात्री ने रसगुल्ला कभी देखा न था। लिहाजा वह पूछ बैठा कि यह क्या है? स्वामी जी ने कहा कि यह वही चीज है, जिसके बारे में आप लंबा व्याख्यान दिए जा रहे थे….। इसलिए मैं इस कॉलम में अक्सर सलाह देता हूं कि लेख या किताबें पढ़कर कभी योगाभ्यास नहीं करना चाहिए। सैद्धांतिक ज्ञान योग्य योग शिक्षक के चयन और अभ्यास में तो सहायक होता है। पर जब अभ्यास करना हो तो योग्य प्रशिक्षक का मार्ग-दर्शन जरूरी है।

कोरोना महामारी की दूसरी लहर आई तो तमाम एहतियात के बावजूद मैं गंभीर रूप से कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गया। अनेक लोगों के फोन आते थे। वे कहते कि आप तो योग विद्या पर इतना लिखते हैं। यौगिक उपाय कीजिए। सब ठीक हो जाएगा। खैर, कोरोना की दूसरी लहर में अनेक लोगों का ज्वर दस-बारह दिनों तक भी रहता है। चिकित्सक कहते हैं कि छठा दिन महत्वपूर्ण है। यदि ज्वर न जाए तो चिकित्सकों की राय से स्ट्रायड के जरिए इलाज पर विचार होना चाहिए। मेरे चिकित्सक ने भी कुछ ऐसी अनुशंसा की। पर स्ट्रायड को लेकर तरह-तरह की आशंकाएं थीं। समस्या बढ़ती देख मैंने आठवें दिन अपने गुरू परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती का ध्यान करते हुए सो गया।

अगले दिन सुबह बिहार योग विद्यालय के एक वरिष्ठ संन्यासी का फोन आया। उन्होंने सुझाव दिया कि अन्य दवाओं के साथ ही महासुदर्शन चूर्ण लीजिए। बुखार उतर जाएगा। ठीक ही बुखार कम होने लगा और उतर गया। स्ट्रायड लेने की जरूरत ही न पड़ी। बीमारी के दौरान आक्सीजन का लेवर थोड़ा नीचे जाने लगा था तो उसी समय संभवत: गुरूजी की प्रेरणा से बिहार योग विद्यालय के पूर्व छात्र और दिल्ली के लोकप्रिय योगाचार्य शिवचित्तम मणि का फोन आ गया कि मकरासन, उदर श्वसन, नाड़ी शोधन प्राणायाम और भ्रामरी प्राणायाम करें। पर श्वास-प्रश्वास पर एकाग्रता के साथ। आर्श्चजनक ढंग से आक्सीजन के स्तर में सुधार हो गया और मानसिक शांति भी मिली।

कोविड-19 का दुष्प्रभाव मेरे वोकल कॉर्ड पर पड़ा था। आवाज एकदम दब गई थी। चिकित्सकों ने कहा कि इसके इलाज के पहले कई जांच की जरूरत होगी और आवाज लौटने में दो महीनों का वक्त लग सकता है। बिहार योग विद्यालय के वरिष्ठ संन्यासी और मेरे श्रद्धेय स्वामी जी ने इसके लिए काकी मुद्रा करने का सुझाव दिया। कहा कि इससे आवाज भी लौटेगी और फेफड़े को भी बल मिलेगा। यकीन मानिए कि काकी मुद्रा दो दिनों तक चार बार करने के साथ ही मेरी आवाज खुल गई। वोकल कॉर्ड की समस्या जाती रही। कोरोना संक्रमण खत्म होने के बाद कुछ योगाचार्यों की सलाह पर कपालभाती और भस्त्रिका प्राणायाम करने लगा। मुंह से और नाक से खून आने लगा। अजीब तरह का भारीपन महसूस हुआ। फिर जल्दी ही समझ में आया कि ये अभ्यास बीमारी से उबरने के पंद्रह-बीस दिनों बाद ही करने चाहिए।

आखिर कोरोना से संक्रमित मरीजों के लिए मकरासन, उदर श्वसन, नाड़ी शोधन प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम और काकी मुद्रा जरूरी क्यों है? मकसासन वैसे तो पीठ के नीचले भाग के दर्द या मेरूदंड की किसी भी गड़बड़ी में प्रभावकारी है। पर दमा और फेफड़े के रोगियों के लिए भी बेहद लाभकारी इसलिए है कि इससे फेफड़े में अधिक वायु प्रवेश करता है। इस आसन का महत्व एलोपैथी के चिकित्सकों ने भी समझा और खुलकर अनुशंसा की। उदर श्वसन से श्वसन का मार्ग प्रशस्त होता है। इसे श्वसन की सबसे स्वाभाविक व प्रभावी विधि माना जाता है। जाहिर है कि फेफड़े को मजबूती प्रदान करके आक्सीजन का स्तर सुधारने में इसकी भी बड़ी भूमिका होती है। हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है कि प्राण-वायु में अशांति के कारण दमा, खांसी, सरदर्द, आखों की बीमारियों सहित कई बीमारियां बिन बुलाए आ जाती है। पर प्राण वायु संतुलित हो तो फेफड़े से लेकर रक्त और शरीर की सभी कोशिकाओं में आक्सीजन पर्याप्त रूप से रहता है। नाड़ी शोधन प्राणायाम, जिसे अनुलोम-विलोम भी कहा जाता है, पर अनेक अनुसंधान हुए हैं। रक्त में पर्याप्त आक्सीजन पहुंचाने में इसकी भूमिका अतुलनीय है।

जर्नल रेडॉक्स बायोलॉजी के मुताबिक, हाल ही में हुए एक शोध से ये बात सामने आई है कि नाइट्रिक ऑक्साइड कोविड-19 से उबारने में मदद कर सकती है और लाखों लोगों की जान बचा सकती है। शोध के अनुसार, ये एक एंटीमाइक्रोबियल और एंटी-इंफ्लामेटरी मोलीक्यूल है, जो पल्मानरी वैस्क्यूलर के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मूल रूप से, नाइट्रिक ऑक्साइड शरीर में प्राकृतिक रूप से उत्पादित एक पदार्थ है। शोधों से साबित हो चुका है कि भ्रामरी प्राणायाम प्राकृतिक रूप से उत्पादित होने वाले नाइट्रिक ऑक्साइड में पंद्रह फीसदी तक की वृद्धि कर देता है। इसलिए योगियों ने कोरोनाकाल में भ्रामरी प्राणायाम पर काफी बल दिया। काकी मुद्रा से मानसिक तनाव कम होता है। रक्तचाप सामान्य रहता है। पाचन-क्रिया ठीक रहती है औऱ रक्त शुद्ध होता है। गले से संबंधित बीमारियां ठीक होती हैं।

योगशास्त्रों के मुताबिक योगियों को काकी मुद्रा की प्रेरणा कौए से मिली थी। कहते हैं कि कौए कभी बीमार नहीं होते। उसकी वजह यह है कि वे अपनी चोंच से श्वास लेते हैं। योगियों ने खुद पर प्रयोग किया। वे अपने मुख को कौए के चोंच सदृश्य बनाकर हवा भरतें और थोड़ी देर बाद नाक से उसे छोड़ देतें। इसके कई फायदे दिखे। मानसिक तनाव कम होता है। रक्तचाप सामान्य रखता है। पाचन-क्रिया ठीक रहती है औऱ रक्त शुद्ध होता है। गला साफ होता है। आजकल चेहरे पर झुर्रियां न पड़े, इसलिए लड़कियों और महिलाओं में यह लोकप्रिय हो रहा है। स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते थे कि इसके नियमित अभ्यास से कौए के समान निरोग और दीर्घ जीवन प्राप्त होता है। इन अभ्यासों के साथ ही नेति किया जाए तो सोने पे सुहागा। इन तथ्यों से साफ है कि कोरोना संक्रमण और उसके कुप्रभावों को दूर करने में योग बेहद प्रभावकारी है।  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)         

नेति और कुंजल : ये हैं कोरोना के विरूद्ध अग्रिम पंक्ति की यौगिक सेनाएं

प्राचीनकाल से योगमार्ग पर आगे बढ़ने के लिए ऋषियों ने षट्कर्म की जिन क्रियाओं को प्रथमत: अनिवार्य माना था, उनमें से नेति और कुंजल जैसी क्रियाएं आधुनिक चिकित्सा जगत को भी लुभा रही हैं। इसलिए कि ये क्रियाएं कोविड-19 जैसे अनजान, किन्तु मारक संक्रमण से बचाव में असरदार साबित हो हैं। वैसे तो कोरोना संक्रमण फैलने के साथ ही योग के वैज्ञानिक संत कहने लगे थे कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और संक्रमण को प्रवेश बिंदु पर ही रोककर कर नष्ट कर देने के कई यौगिक उपाय हैं। पर अब चिकित्सा विज्ञानी भी विभिन्न शोधों की बदौलत इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि आज के माहौल में नेति और कुंजल बड़े काम के हैं।

भारत में कोरोना महामारी फैलने के बाद केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रावैधिकी मंत्रालय को विभिन्न संस्थानों के लगभग पांच सौ ऐसे शोध-पत्र मिले हैं, जिनमें दावा किया गया है कि यौगिक उपायों से कोविड-19 के संक्रमण से बचाव और एक सीमा तक रोकथाम संभव है। पर सबसे ताजी रिपोर्ट राजस्थान वाली ही है और खास बात यह कि यह रिपोर्ट योग विज्ञानियों की नहीं, बल्कि चिकित्सा विज्ञानियों की है। इन चिकित्सा विज्ञानियों ने माना है कि कोरोना संक्रमण से बचाव में नेति और कुंजल बड़े काम के हैं। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय की पहल पर देश के नामचीन योग संस्थानों के सहयोग से कोविड-19 के संक्रमण की रोकथाम के लिए यौगिक प्रभावों पर तीन अनुसंधान किए जा रहे हैं और उसकी रिपोर्ट आनी है। इस बीच राजस्थान से आई ताजा रिपोर्ट को बेहद अहम् माना जा रहा है।

राजस्थान के चार चिकित्सा संस्थानों एसएमएस मेडिकल कालेज के टीबी एवं चेस्ट रोग विभाग, इंटरनेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च (आईआईएचएमआर) के महामारी विज्ञान विभाग, आस्थमा भवन के शोध प्रभाग और राजस्थान हास्पीटल के छह चिकित्सकों डा. श्वेता सिंह, डॉ नीरज शर्मा व डॉ दयाकृष्ण मंगल, डॉ उदयवीर सिंह व डॉ तेजराज सिंह और वीरेंद्र सिंह ने कोई 28 दिनों तक अध्ययन किया। इस दौरान नेति और कुंजल क्रियाओं के बेहतर परिणाम मिले। दरअसल, जापान में कोविड-19 के कारण मृत्यु दर काफी कम होने के कारण शोधकर्त्ताओं का उधर ध्यान गया। उन्होंने पाया कि सामाजिक दूरी और मास्क का उपयोग तो बेहतर तरीके से किया ही गया था। साथ ही नमकीन कुनकुने पानी से नाक और गले को साफ रखने पर काफी जोर दिया गया था। ये क्रियाएं योगशास्त्र के जलनेति और कुंजल की तरह की थीं। राजस्थान के चिकित्सकों ने इन्हीं बातों से प्रेरित होकर जलनेति और कुंजल के प्रभावों पर अध्ययन किया।  

चिकित्सा जगत की नजर में यह अध्ययन रिपोर्ट बेहद विश्वसनीय है। तभी एक तरफ इसे इंडियन चेस्ट सोसाइटी के प्रतिष्ठित जर्नल “लंग इंडिया” में जगह मिल गई है। दूसरी तरफ देश को लगभग एक हजार चिकित्सकों का समूह भी इस अध्ययन को विश्वसनीय मान रहा है। कोविड-19 संक्रमण फैलने के बाद इस विषय से संबंधित भारतीय चिकित्सकों के सीएमई इंडिया नाम से चार वाट्सएप्प ग्रुप बन चुके हैं। इसमें दुनिया भर में कोविड-19 के आलोक में किए जा रहे अध्ययनों और चिकित्सकीय उपायों पर चर्चा होती है। इन ग्रुपों से देश के प्राय: तमाम नामचीन चिकित्सक जुड़े हुए हैं। ये सुचारू ढंग से काम काम करें और अर्थपूर्ण चर्चा के नतीजों से जनता को लाभ मिले, इसके लिए मधुमेह के ख्याति प्राप्त चिकित्सक डॉ एनके सिंह संयोजक की भूमिका में हैं। डॉ सिंह के मुताबिक प्राय: सभी चिकित्सक मरीजों को और आम लोगों को भी बताते हैं कि कोरोना महामारी से बचाव के लिए उन्हें अन्य उपायों के साथ ही नेति और कुंजल क्रियाओं के अभ्यास अनिवार्य रूप से करने चाहिए।

भारत की तर्ज पर अमेरिकी शोध संस्थानों की भी यही राय बनी है कि कोविड-19 के वैक्सीन आने तक योग ही सहारा है। योग और ध्यान के जरिए कोरोना संक्रमण से अधिकतम बचाव संभव है। भारतीय मूल के अमेरिकी योग गुरू दीपक चोपड़ा, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी और इस अध्ययन के लिए हार्वड यूनिवर्सिटी से संबद्ध मासेचुसेट्स इस्टीच्यूट ऑफ टेक्नालॉजी ने यौगिक उपायों पर अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला है। वैसे इस अध्ययन से पहले ही अमेरिका से धमाकेदार खबर आई थी। भारतीय मूल के कंप्यूटर प्रोफेशनल प्रमोद भगत ने दावा किया था कि वे कोरोना पाजिटिव थे और मुख्यत: कुंजल क्रिया की बदौलत मारक बीमारी से बच निकले थे। दरअसल, कुंजल को दमा के मरीजों के लिए प्रभावशाली माना जाता है। इसलिए कोरोना संक्रण को प्रारंभिक स्तर पर नष्ट करने में कुंजल काम आ गया तो योगियों को हैरानी नहीं हुई थी, क्योंकि दमा और कोरोना के शुरूआती लक्षणों में बड़ी समानता है। 

भारत में कोरोना महामारी का आगाज होते ही महाराष्ट्र के लोनावाला स्थित कैवल्यधाम योग इंस्टीच्यूट के वरीय योग थेरेपिस्ट संदीप वानखेड़े ने अपने संस्थान के यूट्यूब चैनल के जरिए बताया था कि कोरोना महामारी से बचाव में जलनेति की कितनी बड़ी भूमिका हो सकती है। यह कहने का उनके पास वैज्ञानिक आधार भी था। वे भारत सरकार के केंद्रीय योग व प्राकृतिक चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सहयोग से लोनावाला में स्थापित अनुसंधान केंद्र के साथ भी जुड़े हुए हैं। यह केंद्र षट्कर्म और प्राणायाम पर शोध कर रहा है। नेति और कुंजल षट्कर्म के तहत ही आते हैं।

आयुर्वेद में एक शब्द है – त्रिदोष। यानी वात, पित्त और कफ। इसे ही बीमारियों की उत्पत्ति के मूल कारण माना गया हैं। योगशास्त्र ने षट्कर्म के रूप में त्रिदोष को जड़ से समाप्त करने का उपाय प्रस्तुत किया। यानी योगियों ने भी माना कि त्रिदोषों के बीच असंतुलन से बीमारियां उत्पन्न होती हैं। षट्कर्म मतलब, नेति, धौति, नौलि, बस्ति, कपालभाति और त्राटक। योग के आध्यात्मिक साधक तो सनातन काल से इन षट्कर्मों की महत्ता समझते रहे हैं। तभी वेद से लेकर प्राचीन योग उपनिषदों तक में इनकी महत्ता प्रतिपादित की गई हैं। पर महर्षि घेरंड की घेरंड संहिता औऱ स्वात्माराम की हठ प्रदीपिका में अनेक बीमारियों में भी इन यौगिक क्रियाओं के लाभ बतलाए गए हैं।

यद्यपि योगियों ने नेति क्रिया का इजाद आज्ञाचक्र यानी पीनियल ग्रंथि से संबंधिति यौगिक क्रियाओं को सुचारू बनाने के मकसद से किया था। बाद में आम लोग इस क्रिया को कोई नाम दिए बिना नसिका क्षेत्र की सफाई के लिए से अपनाने लगे। नेति को मौजूदा स्वरूप प्रदान करने में वैज्ञानिक योगी स्वामी कुवल्यानंद और बिहार योग विद्यालय के संस्थापक स्वामी सत्यानंद सरस्वती का बड़ा योगदान है। बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं कि नेति ईएनटी डाक्टर की क्रियाओं जैसी असर दिखाती है। योग शास्त्रों के मुताबिक पहले कुंजल फिर जलनेति का अभ्यास करना चाहिए। चूंकि इन दोनों ही क्रियाओं में नमकीन कुनकुने पानी का उपयोग किया जाता है। इसलिए इन क्रियाओं के बाद आगे झुककर कपालभाति प्राणायाम अनिवार्य रूप से कर लेना चाहिए। ताकि सारा पानी निकल जाए। साथ ही शरीर व मस्तिष्क में उत्पन्न तनाव भी दूर हो जाता है।   

कोविड-19 के इलाज के लिए विश्वसनीय दवाओं के अभाव में जहां पूरी दुनिया में त्राहिमाम है, वैसे में नेति, कुंजल और कुछ अन्य यौगिक उपाय घने अंधेरे में में उम्मीद की रोशनी की तरह हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले यौगिक उपायों के साथ ये क्रियाएं अधिक शक्तिशाली हो जाती हैं। योग शास्त्रों के मुताबिक पहले कुंजल फिर जलनेति का अभ्यास करना चाहिए। अंत में आगे झुककर कपालभाति प्राणायाम अनिवार्य रूप से कर लेना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा योग विज्ञान विश्लेषक हैं)

: News & Archives