हृदय रोग से मुक्त रखता है उष्ट्रासन

किशोर कुमार

इस बार बात उष्ट्रासन की। हम जानते हैं कि योगासन कमर-तोड़ मेहनत या कसरत नहीं, बल्कि प्राण-शक्ति के उचित वहन और अभिसरण के साथ सात्विक कर्म की तरह अभ्यास किया जाए तो स्वास्थ्य, शांति, मनोबल और तीव्र बुद्धि की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। जिस तरह कर्म के तीन आधार होते हैं – मन वचन और शरीर, उसी तरह इसकी श्रेणियां होती हैं। यथा, सात्विक राजसिक और तामसिक। त्रिगुण कर्म की व्यवस्था और व्याख्या श्रीमद्भगवतगीता में सुंदर तरीके से की गई है। रावण, कुंभकर्ण और विभीषण का प्रसंग तो हम सब जानते ही हैं। तीनों ने घोर तपस्या की थी, योगसाधना की थी। पर रावण का तप राजसिक, कुंभकर्ण का तप तामसिक और विभीषण का तप सात्विक था। परिणाम यह हुआ कि रावण की वासनाएं असीमित थी। कुंभकर्ण नींद में ही रहता था, जबकि विभीषण अपनी सात्विक तपस्या की बदौलत श्रीराम का स्नेह पाने में सफल हो गया था।

उष्ट्रासन ऐसा योगासन है, जिसका अभ्यास सात्विक गुणों का विकास करके किया जाए तो अनाहत चक्र के जागरण में बड़ी मदद मिलती है। अनाहत चक्र भक्ति का केंद्र है। इसे अजपा जप द्वारा आसानी से जागृत किया जाता है। पर उष्ट्रासन अपजा के पहले उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है। गुरूजनों का अनुभव है कि अनाहत चक्र में चेतना का स्तर उठते ही योग साधक प्रारब्ध के सहारे नहीं, बल्कि अपनी इच्छानुसार जीवन जीने में सक्षम हो जाता है। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते थे कि अनाहत का संबंध हृदय से है, जो आजीवन लयबद्ध तरीके से स्पंदित और तरंगित होता रहता है। जब तक चेतना अनाहत के नीचे के चक्रों में केंद्रित होती है, तब तक व्यक्ति भाग्यवादी बना रहता है। प्रारब्ध की बदौलत उसके जीवन की गाड़ी बढ़ती रहती है। पर जब चेतना मणिपुर चक्र से होकर आगे बढ़ जाती है तो व्यक्ति जीवन की कुछ परिस्थितियों का सामना करने में पूरी तरह सक्षम हो जाता है। उसमें बहुत हद तक प्रारब्ध बदलने तक की क्षमता विकसित हो जाती है।   

उपरोक्त तथ्यों से उष्ट्रासन की महत्ता का पता चलता है। यानी यह योगासन शारीरिक व मानसिक पीड़ाओं से तो मुक्ति तो दिलाता ही है, आध्यात्मिक विकास में इसकी बड़ी भूमिका है। श्रीश्री रविशंकर स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से इस योगासन के लाभ बताते हुए कहते है कि इसके अभ्यास से पाचन शक्ति बढ़ती है। फेफड़ा स्वस्थ्य व मज़बूत बनाता है। पीठ व कंधों को मजबूती मिलती है। पीठ के निचले हिस्से में दर्द से छुटकारा मिलता है। रीढ़ की हड्डी में लचीलेपन एवं मुद्रा में सुधार आता है और मासिक धर्म की परेशानी से राहत मिलती है। परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती दावे के साथ कहते हैं कि कोई स्वस्थ्य व्यक्ति इस आसन को नियमपूर्वक करता रहे तो उसे जीवन में कभी हृदय रोग होगा ही नहीं। इस लिहाज से हृदय रोगियों के लिए भी यह बेहद उपयोगी आसन है। ऐसा इसलिए कि योगाभ्यासी जब यह आसन करते हुए पीछे की ओर झुकता है और हाथों को पीछे ले जाकर दोनों पैरों के सहारे टिकाता है तो हृदय से निकलने वाली सभी रक्त वाहिकाओं का विस्तार होता है। नतीजतन, चर्बी की मात्रा बढ़ जाने से जिनकी धमनियां अवरूद्ध हो चुकी हैं और वे इस वजह से नाना प्रकार की समस्याएँ झेल रहे है, उन्हें उष्ट्रासन से काफी लाभ होता है।

घेरंड संहिता में बतलाए गए कुल 32 आसनों में उष्ट्रासन का महत्वपूर्ण स्थान है। महर्षि घेरंड ने उसका वर्णन कुछ इस प्रकार किया है – अधोमुख लेटें और दोनों पांवों को पलटकर पीठ पर टिका ले। पांवों को हाथों से पकड़कर मुख और पांवों से दृढ़तापूर्वक सिकोड़ लें। यह उष्ट्रासन कहलाता है। स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा लिखित पुस्तक “आसन प्राणायाम मुद्रा बंध” में बतलाया गया है कि यह आसन पाचन और प्रजनन प्रणालियों के लिए लाभदायक है। आमाशय और आंतों में खिंचाव पैदा करके कब्ज दूर करता है। पीठ का पीछे झुकना कशेरूकाओं को लोच प्रदान करता है और मेरूदंड, झुके कंधे और कुबड़ेपन में लाभ दिलाता है। शरीर की आकृति में सुधार आता है। गर्दन का अग्रभाग पूरा खिंच जाता है, जिससे उस क्षेत्र के अंगों को शक्ति मिलती है र थाइराइड ग्रंथि नियंत्रित होती है। दमा से पीड़ित रोगी को इससे लाभ होता है।

घेरंड संहिता के भाष्य में परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं कि अभ्यासी श्वास रोककर सिर पीछे ले जाते हैं तो मस्तिष्क में खून का दबाव अधिक होने से कई बार चक्कर आने लगता है। ऐसे में सिर को सीधा ही रखना चाहिए और अभ्यासक्रम में कुछ दिनों बाद उसे पीछे ले जाना चाहिए। दूसरी बात यह कि आसन करते समय सामान्य श्वास ही लिया जाना चाहिए। गहरी श्वास लेने का प्रयास नहीं करना चाहिए। इसिलए कि छाती पहले से ही पूरी तरह फैली हुई होती है। आमाशय, गले, मेरूदंड औऱ सामान्य श्वास के प्रति सजग रहकर स्वाधिष्ठान चक्र पर ध्यान एकाग्र किया जाना चाहिए। हर योग साधना की तरह इसमें भी कुछ सावधानियां बरतने की सलाह दी जाती है। मसलन, उष्ट्रासन करके खड़े होते समय एड़ियों के बीच कमर की चौड़ाई जितनी दूरी होनी चाहिए। उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों को यह योगाभ्यास या तो नहीं करना चाहिए या फिर उचित मार्ग-दर्शन लेना चाहिए।   

कुछ समय पहले पुणे स्थित भारतीय विद्यापीठ के आयुर्वेदिक कालेज और श्रीगंगानगर आर्युवेदिक कालेज के शोधार्थियों ने कमर के निचले हिस्से के दर्द और गर्दन दर्द में उष्ट्रासन के प्रभावों का अध्ययन किया था। उसके मुताबिक, 26.67 फीसदी व्यक्तियों ने चिह्नित प्रतिक्रिया दिखाई, 36.67 फीसदी ने मध्यम प्रतिक्रिया दिखाई और 36.66 फीसदी ने हल्की प्रतिक्रिया दिखाई। अलग-अलग प्रभावों की वजहें थीं। पर इतना तय हुआ कि उष्ट्रासन इन बीमारियों में अपना असर दिखाता है।

प्रसिद्ध योगाचार्य और आयंगार योग के जनक बीकेएस आयंगार सात्विक योग साधना पर बहुत जोर देते थे। वे कहते थे कि योगासनों की साधना का भी सात्विक होना आवश्यक है। स्वास्थ्य, शांति और तीव्र बुद्धि की प्राप्ति के लिए विशुद्ध हेतु से किया गया आसन-तपस अंतर्रात्मा से मिलने के लिए है। इस धारणा को मन में रखने पर मार्ग आसान और सुस्पष्ट हो जाता है। उष्ट्रासन के मामले में भी यही बात लागू है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

नई सदी के योगधर्म की राह दिखता सत्यानंद योग

बिहार योग विद्यालय उस सुगंधित पुष्प की तरह है, जिसकी खुशबू सर्वत्र फैल रही है। उसकी विलक्षणताओं की वजह से इंग्लैंड सहित यूरोप और अमेरिका के कई शहरों से प्रकाशित होने वाले अखबार “द गार्जियन” ने इसे पहले स्थान पर ऱखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर देश में योग के प्रचार-प्रसार के लिए चयनित चार योग संस्थानों में बिहार योग विद्यालय भी है। इसकी श्रेष्ठता को देखते हुए उसे प्रधानमंत्री पुरस्कार के योग्य समझा गया। “फिट इंडिया मूवमेंट” की पहली वर्षगांठ पर कार्यक्रम हुआ तो वहां भी बिहार योग पद्धति छाई रही। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के यौगिक कैप्सूल की अहमियत बताते हुए देशवासियों से इसे अपनाने की अपील कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी को अपने लिए भी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की आवाज में निर्देशित योगनिद्रा योग बेहतर लगता है। बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के महासमाधि दिवस पर प्रस्तुत है यह आलेख।

किशोर कुमार

इस सदी का योग-दर्शन क्या हो? इस सवाल को लेकर भारत ही नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन से प्रभावित विद्वान दुनिया भर में बहस कर रहे हैं। इस बीच पूरी दुनिया में योग विद्या की दिशा-दशा तय करने के लिए एक बार फिर विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय ने राह दिखाई है। इस योग संस्थान के संस्थापक स्वामी सत्यानंद सरस्वती के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी और निवृत परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की प्रेरणा से सत्यानंद योग परंपरा के अनुरूप अगले पचास वर्षों के लिए योग विद्या का जो लक्ष्य और तदनुरूप उसका स्वरूप प्रस्तुत किया गया है, वह शास्त्रसम्मत और विज्ञानसम्मत तो है ही, इस युग की जरूरतों के अनुरूप भी साबित होगा। ठीक वैसे ही, जैसे सत्यानंद योग का यौगिक लक्ष्य बीते पचास वर्षों में फलीभूत हुआ था।

स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने सन् 1960 में ही कहा था – “योग विश्व की संस्कृति बनेगा और भारत पूरे विश्व को राह दिखाएगा।“ कालांतर में ऐसा हुआ भी। संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्य देशों की सहमति से अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा की गई। दुनिया भर में योग को स्वीकृति मिल गई। तब जरूरी हो गया कि योग और अध्यात्म की पावन भूमि भारत भविष्य के लिए योग का रोडमैप तैयार करे। वह बताए कि योग के उच्चतम पायदान पर कदम बढ़ाते हुए वास्तविक लक्ष्य हासिल करने के लिए अगले पचास वर्षों के लिए योग-विद्या की दिशा-दशा क्या होगी।

नौ वर्षों तक परिवाज्रक जीवन और कठिन साधनाओं के बाद साठ के दशक में स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने पचास वर्षों के लिए योग की दिशा तय की थी। उसे देश-विदेश में बड़े स्तर पर स्वीकार्यता मिली थी। इसलिए स्वामी सत्यानंद सरस्वती की महासमाधि के बाद जाहिर है कि परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती से इस पुनित कार्य की उम्मीद की जा रही थी। पर जो लोग सत्यानंद योग परंपरा के बारे में जानते हैं, वे इस बात से चौंके नहीं कि स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने इस दायित्व के निर्वहन के लिए जमीनी अभ्यास सन् 2013 से ही शुरू कर दिया था। पांच-छह वर्षों की कड़ी साधनाओं की अनुभूतियों और योगानुरागियों के फीडबैक के आधार पर अब अगले पचास वर्षों में योग को उच्चतम स्तर पर ले जाने के लिए दिशा-दशा तय करके उस पर अमल भी किया जाने लगा है।

कमाल यह है कि स्वामी शिवानंद सरस्वती ने समन्वित योग की जैसी परिकल्पना की थी और उनके शिष्य स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने उस परिकल्पना को विज्ञानसम्मत तरीके से व्यावहारिक रूप देकर योगानुरागियों का जीवन खुशनुमा बनाने का जो संकल्प लिया था, थोड़े अंतर से उसी समन्वित योग के वृहत्तर स्वरूप को अगले पचास वर्षों के लिए उपयुक्त समझा गया है। ताकि योगानुरागियों का आध्यत्मिक उत्थान हो और वे अनुभव कर सकें कि मन के पीछे की शक्ति क्या है। यानी मौजूदा समय में समन्वित योग शिक्षा के स्वरूप को व्यापक बनाया गया है। स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने साठ के दशक में आध्यात्मिक चेतना के विकास के लिए हठयोग, राजयोग, क्रियायोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग के साथ ही शास्त्र में वर्णित कुंडलिनी योग, मंत्रयोग, स्वरयोग, नादयोग आदि को मिलाकर समन्वित योग की शिक्षा देनी शुरू की थी। पर उसे उस समय की जरूरतों के लिहाज से सरल रखा था।

इस सदी के लिहाज से प्रस्तुत छह खंडों वाले योग-चक्र में हठयोग, राजयोग, क्रियायोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग शामिल है। अष्टांग योग को अलग से जगह नहीं दी गई है। इसलिए कि सत्यानंद योग पद्धति में माना गया है कि अष्टांगयोग का संबंध योग के सभी छह चक्रों से है। हठयोग में षट्कर्म, आसन, प्राणायाम, मुद्रा और बंध ये पांच उप अंग हैं। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि मिलाकर आठ उप अंग राजयोग के हैं। इसी तरह क्रियायोग के उप अंग प्रत्याहार, धारणा और ध्यान हैं। ज्ञानयोग के तहत भी सात उप अंग बनाए गए हैं। वे हैं – शुभेच्छा, विचारणा, तनुमानसा, सत्वापत्ति, असंसक्ति, पदार्थभावनी और तुर्यगा। अपरा भक्ति और परा भक्ति भक्तियोग के उप अंग हैं। कर्मयोग में आत्म शुद्धि, अकर्त्ताभाव और नैश्कर्म सिद्धि साधना शामिल हैं। बिहार योग पद्धति के तहत अब सभी छह योग-चक्रों के सभी उप अंगों की गहनतम शिक्षा दी जाएगी। मतलब यह कि यदि कोई हठयोग ही जानना चाहे तो उसे उसके सभी पांच उप अंगों को जानना अनिवार्य होगा। वैज्ञानिक शोधों के आधार पर नई-नई योग विधियां बनाने का काम पूर्ववत जारी रखा जाना है।

वसंत पंचमी के दिन इस गौरवशाली विश्व विख्यात और पूरी तरह संन्यासियों द्वारा संचालित संस्थान की स्थापना के 58 साल पूरे हो जाएंगे। शास्त्रसम्मत, विज्ञानसम्मत और दूरगामी सोच के तहत तय मानदंडों का ही नतीजा है कि यह अपनी स्थापना काल से ही योग विद्या के मामले में टेंड सेटर की भूमिका में है। इस संदर्भ में बेंगलुरू स्थित योग विश्वविद्यालय स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान के उपकुलपति डॉ एचआर नगेंद्र का वक्तव्य गौरतलब है – “मैं जब पहली बार बिहार योग विद्यालय के संपर्क में आया था तो स्वामी सत्यानंद सरस्वती जी की कार्यशैली देखकर मंत्रमुग्ध हो गया। मैंने देखा कि किस प्रकार वे योग के माध्यम से आश्रम आने वाले लोगों को रूपांतरित कर रहे थे। मैंने इस पद्धति को अपने संस्थान में लागू कर दिया। सच तो यह है कि पूज्य गुरूओं स्वामी सत्यानंद सरस्वती और स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने जिस प्रणाली का विकास किया, उसे हमने अपना लिया।“

इन्हीं विलक्षणताओं की वजह से इंग्लैंड सहित यूरोप और अमेरिका के कई शहरों से प्रकाशित होने वाले अखबार “द गार्जियन” ने इस संस्थान को पहले स्थान पर ऱखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर देश में योग के प्रचार-प्रसार के लिए चयनित चार योग संस्थानों में बिहार योग विद्यालय भी है। इसकी श्रेष्ठता को देखते हुए उसे प्रधानमंत्री पुरस्कार के योग्य समझा गया। “फिट इंडिया मूवमेंट” की पहली वर्षगांठ पर कार्यक्रम हुआ तो वहां भी बिहार योग पद्धति छाई रही। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के यौगिक कैप्सूल की अहमियत बताते हुए देशवासियों से इसे अपनाने की अपील कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी को अपने लिए भी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की आवाज में निर्देशित योगनिद्रा योग बेहतर लगता है।

स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते थे – “गुरूकुल में प्राचीन और आधुनिक विचारों का समन्वय करके ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए जो विश्व-बंधुत्व व वसुधैव-कुटुंबकम् के भावों को पोषित करता हो। इसलिए कि सत्यम्, शिवम् व सुंदरम् को प्रकट करना ही योगानुरागियों के जीवन का आदर्श उद्देश्य है।“  उम्मीद है कि नया योग-चक्र इन कसौटियों पर खरा उतरेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

स्वामी निरंजनानंद सरस्वती : आधुनिक युग के वैज्ञानिक संत

किशोर कुमार //

योग की बेहतर शिक्षा किस देश में और वहां के किन संस्थानों में लेनी चाहिए? यदि इंग्लैंड सहित दुनिया के विभिन्न देशों से प्रकाशित अखबार “द गार्जियन” से जानना चाहेंगे तो भारत के बिहार योग विद्यालय का नाम सबसे पहले बताया जाएगा। चूंकि ऐसा सवाल पश्चिमी देशों में आम है। इसलिए “द गार्जियन” ने लेख ही प्रकाशित कर दिया। उसमें भारत के दस श्रेष्ठ योग संस्थानों के नाम गिनाए गए हैं। बिहार योग विद्यालय का नाम सबसे ऊपर है। इस विश्वव्यापी योग संस्थान के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की समाधि के दस साल होने को हैं। फिर भी बिहार योग का आकर्षण दुनिया भर मे बना हुआ है तो निश्चित रूप से परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती को अपने गुरू परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती से मिली दिव्य-शक्ति और खुद की कठिन साधना का प्रतिफल है।

दरअसल, बिहार योग विद्यालय दुनिया के उन गिने-चुने योग संस्थानों में शूमार है, जो परंपरागत योग के सभी आयामों की समन्वित शिक्षा प्रदान करता है। उनमें हठयोग, राजयोग, क्रियायोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, कुंडलिनी योग आदि शामिल है। यह संस्थान योग को कैरियर बनाए बैठे प्रोफेशनल्स द्वारा नहीं, बल्कि पूरी तरह संन्यासियों द्वारा संचालित है। योग शिक्षा का वर्गीकरण भी लोगों को आकर्षित करता है। जैसे, आमलोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर अलग तरह का पाठ्यक्रम है और आध्यात्मिक उत्थान की चाहत रखने वालों के लिए अलग तरह का पाठ्यक्रम है। संन्यास मार्ग पर चलने वालों के लिए भी पाठ्यक्रम है, जबकि भारत में ज्यादातर योग संस्थानों में हठयोग की शिक्षा पर जोर होता हैं।

भारत के प्रख्यात योगी और ऋषिकेश में दिव्य जीवन संघ के संस्थापक स्वामी शिवानंद सरस्वती के शिष्य परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने साठ के दशक में बिहार योग विद्यालय की स्थापना की थी। वे 20वीं सदी के महानतम संत थे। उन्होंने बिहार के मुंगेर जैसे सुदूरवर्ती जिले को अपना केंद्र बनाकर विश्व के सौ से जयादा देशों में योग शिक्षा का प्रचार किया। उन देशों के चिकित्सा संस्थानों के साथ मिलकर य़ौगिक अनुसंधान किए। परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती उन्हीं के आध्यात्मिक उतराधिकारी हैं, जिन्हें आधुनिक युग का वैज्ञानिक संत कहना ज्यादा उपयुक्त होगा। जिस तरह स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस का और स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने स्वामी शिवानंद सरस्वती के मिशन को दुनिया भर में फैलाया था। उसी तरह स्वामी निरंजनानंद सरस्वती अपने गुरू का मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं।

आद्य गुरू शंकराचार्य की दशनामी संन्यास परंपरा के संन्यासी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती आधुनिक युग के एक ऐसे सिद्ध संत हैं, जिनका जीवन योग की प्राचीन परंपरा, योग दर्शन, योग मनोविज्ञान, योग विज्ञान और आदर्श योगी-संन्यासी के बारे में सब कुछ समझने के लिए खुली किताब की तरह है। उनकी दिव्य-शक्ति का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने मात्र 11 साल की उम्र में लंदन के चिकित्सकों के सम्मेलन में बायोफीडबैक सिस्टम पर ऐसा भाषण दिया था कि चिकित्सा वैज्ञानिक हैरान रह गए थे। बाद में शोध से स्वामी जी की एक-एक बात साबित हो गई थी।

आज वही निरंजनानंद सरस्वती नासा के उन पांच सौ वैज्ञानिकों के दल में शामिल हैं, जो इस अध्ययन में जुटे हुए हैं कि दूसरे ग्रहों पर मानव गया तो वह अनेक चुनौतियों से किस तरह मुकाबला कर पाएगा। स्वामी निरंजन अपने हिस्से का काम नास की प्रयोगशाला में बैठकर नहीं, बल्कि मुंगेर में ही करते हैं। वहां क्वांटम मशीन और अन्य उपकरण रखे गए हैं। वे आधुनिक युग के संभवत: इकलौती सन्यासी हैं, जिन्हें संस्कृत के अलावा विश्व की लगभग दो दर्जन भाषाओं के साथ ही वेद, पुराण, योग दर्शन से लेकर विभिन्न प्रकार की वैदिक शिक्षा यौगिक निद्रा में मिली थी। उसी निद्रा को हम योगनिद्रा योग के रूप में जानते हैं, जो परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की ओर से दुनिया को दिया गया अमूल्य उपहार है।

केंद्र सरकार परमहंस स्वामी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती और बिहार योग विद्यालय की अहमियत समझती है। तभी एक तरफ उन्हें पद्मभूषण जैसे सम्मान से सम्मानित किया गया तो दूसरी ओर बिहार योग विद्यालय को श्रेष्ठ योग संस्थान के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार प्रदान किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद बिहार योग विद्यालय की योग विधियो से इतने प्रभावित हैं कि जब उनसे अमेरिकी राष्ट्रपति की बेटी इवांका ट्रंप ने पूछा कि आप इतनी मेहनत के बावजूद हर वक्त इतने चुस्त-दुरूस्त किस तरह रह पाते हैं तो इसके जबाव में प्रधानमंत्री ने परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की आवाज में रिकार्ड किए गए योगनिद्रा योग को ट्वीट करते हुए कहा था, इसी योग का असर है। जबाब में इवांका ट्रंप ने कहा था कि वह भी योगनिद्रा योग का अभ्यास करेंगी।     

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर देश में योग के प्रचार-प्रसार के लिए चार योग संस्थानों के चयन की बात आई तो एक ही परंपरा के दो योग संस्थानों का चयन किया गया। उनमें एक है ऋषिकेश स्थित शिवानंद आश्रम और दूसरा है बिहार योग विद्यालय। शिवानंद आश्रम खुद 20वीं शताब्दी के महान संत स्वामी शिवानंद सरस्वती ने स्थापित किया था। बिहार के मुंगेर में गंगा के तट पर बिहार योग विद्यलाय उनके शिष्य स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने स्थापित किया था। बाकी दो सस्थानों में पश्चिमी भारत के लिए कैवल्यधाम, लोनावाला और दक्षिणी भारत के लिए स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान का चयन किया गया था। समाधि लेने से पहले परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहा करते थे, “स्वामी निरंजन ने मानवता के क्ल्याण के लिए जन्म और संन्यास लिया है। उसका व्यक्तित्व नए युग के अनुरूप है।“

शायद उसी का नतीजा है कि जहां देश के अनेक नामचीन योगी कसरती स्टाइल की योग शिक्षा का प्रचार करते हुए बीमारियों को छूमंतर करने का नित नए दावा करते हैं। वहीं दूसरी ओर स्वामी निरंजनानंद सरस्वती योग को जीवन-शैली बताते है। वे कहते हैं कि यदि बीमारी के इलाज के लिए योग का प्रयोग करना हो तो एलोपैथी पद्धति से जांच और आयुर्वेदिक पद्धति से आहार के साथ योग ब़ड़ा ही असरदार पद्धति बन जाता है। उन्होंने सरकार को सुझाव दे रखा है कि वह योग की विभिन्न परंपराओं, विभिन्न विधियों को संरक्षित करने, उनका प्रचार करने और उन योग विधियों पर हो रहे अनुसंधानों को एक साथ संग्रह करने के लिए मोरारजी देसाई योग अनुसंधान संस्थान में राष्ट्रीय संसाधन केंद्र बनाए। इन बातों से समझा जा सकता है कि योग शिक्षा के शुद्ध ज्ञान के लिए बिहार योग विद्यालय देश-विदेश के लोगों को क्यों आकर्षित करता है। गुरू पूर्णिमा इसी सप्ताह है। आधुनिक युग के इस वैज्ञानिक संत और पूज्य गुरूदेव को नमन।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं)

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