नई सदी के योगधर्म की राह दिखता सत्यानंद योग

बिहार योग विद्यालय उस सुगंधित पुष्प की तरह है, जिसकी खुशबू सर्वत्र फैल रही है। उसकी विलक्षणताओं की वजह से इंग्लैंड सहित यूरोप और अमेरिका के कई शहरों से प्रकाशित होने वाले अखबार “द गार्जियन” ने इसे पहले स्थान पर ऱखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर देश में योग के प्रचार-प्रसार के लिए चयनित चार योग संस्थानों में बिहार योग विद्यालय भी है। इसकी श्रेष्ठता को देखते हुए उसे प्रधानमंत्री पुरस्कार के योग्य समझा गया। “फिट इंडिया मूवमेंट” की पहली वर्षगांठ पर कार्यक्रम हुआ तो वहां भी बिहार योग पद्धति छाई रही। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के यौगिक कैप्सूल की अहमियत बताते हुए देशवासियों से इसे अपनाने की अपील कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी को अपने लिए भी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की आवाज में निर्देशित योगनिद्रा योग बेहतर लगता है। बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के महासमाधि दिवस पर प्रस्तुत है यह आलेख।

किशोर कुमार

इस सदी का योग-दर्शन क्या हो? इस सवाल को लेकर भारत ही नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन से प्रभावित विद्वान दुनिया भर में बहस कर रहे हैं। इस बीच पूरी दुनिया में योग विद्या की दिशा-दशा तय करने के लिए एक बार फिर विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय ने राह दिखाई है। इस योग संस्थान के संस्थापक स्वामी सत्यानंद सरस्वती के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी और निवृत परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की प्रेरणा से सत्यानंद योग परंपरा के अनुरूप अगले पचास वर्षों के लिए योग विद्या का जो लक्ष्य और तदनुरूप उसका स्वरूप प्रस्तुत किया गया है, वह शास्त्रसम्मत और विज्ञानसम्मत तो है ही, इस युग की जरूरतों के अनुरूप भी साबित होगा। ठीक वैसे ही, जैसे सत्यानंद योग का यौगिक लक्ष्य बीते पचास वर्षों में फलीभूत हुआ था।

स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने सन् 1960 में ही कहा था – “योग विश्व की संस्कृति बनेगा और भारत पूरे विश्व को राह दिखाएगा।“ कालांतर में ऐसा हुआ भी। संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्य देशों की सहमति से अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा की गई। दुनिया भर में योग को स्वीकृति मिल गई। तब जरूरी हो गया कि योग और अध्यात्म की पावन भूमि भारत भविष्य के लिए योग का रोडमैप तैयार करे। वह बताए कि योग के उच्चतम पायदान पर कदम बढ़ाते हुए वास्तविक लक्ष्य हासिल करने के लिए अगले पचास वर्षों के लिए योग-विद्या की दिशा-दशा क्या होगी।

नौ वर्षों तक परिवाज्रक जीवन और कठिन साधनाओं के बाद साठ के दशक में स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने पचास वर्षों के लिए योग की दिशा तय की थी। उसे देश-विदेश में बड़े स्तर पर स्वीकार्यता मिली थी। इसलिए स्वामी सत्यानंद सरस्वती की महासमाधि के बाद जाहिर है कि परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती से इस पुनित कार्य की उम्मीद की जा रही थी। पर जो लोग सत्यानंद योग परंपरा के बारे में जानते हैं, वे इस बात से चौंके नहीं कि स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने इस दायित्व के निर्वहन के लिए जमीनी अभ्यास सन् 2013 से ही शुरू कर दिया था। पांच-छह वर्षों की कड़ी साधनाओं की अनुभूतियों और योगानुरागियों के फीडबैक के आधार पर अब अगले पचास वर्षों में योग को उच्चतम स्तर पर ले जाने के लिए दिशा-दशा तय करके उस पर अमल भी किया जाने लगा है।

कमाल यह है कि स्वामी शिवानंद सरस्वती ने समन्वित योग की जैसी परिकल्पना की थी और उनके शिष्य स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने उस परिकल्पना को विज्ञानसम्मत तरीके से व्यावहारिक रूप देकर योगानुरागियों का जीवन खुशनुमा बनाने का जो संकल्प लिया था, थोड़े अंतर से उसी समन्वित योग के वृहत्तर स्वरूप को अगले पचास वर्षों के लिए उपयुक्त समझा गया है। ताकि योगानुरागियों का आध्यत्मिक उत्थान हो और वे अनुभव कर सकें कि मन के पीछे की शक्ति क्या है। यानी मौजूदा समय में समन्वित योग शिक्षा के स्वरूप को व्यापक बनाया गया है। स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने साठ के दशक में आध्यात्मिक चेतना के विकास के लिए हठयोग, राजयोग, क्रियायोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग के साथ ही शास्त्र में वर्णित कुंडलिनी योग, मंत्रयोग, स्वरयोग, नादयोग आदि को मिलाकर समन्वित योग की शिक्षा देनी शुरू की थी। पर उसे उस समय की जरूरतों के लिहाज से सरल रखा था।

इस सदी के लिहाज से प्रस्तुत छह खंडों वाले योग-चक्र में हठयोग, राजयोग, क्रियायोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग शामिल है। अष्टांग योग को अलग से जगह नहीं दी गई है। इसलिए कि सत्यानंद योग पद्धति में माना गया है कि अष्टांगयोग का संबंध योग के सभी छह चक्रों से है। हठयोग में षट्कर्म, आसन, प्राणायाम, मुद्रा और बंध ये पांच उप अंग हैं। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि मिलाकर आठ उप अंग राजयोग के हैं। इसी तरह क्रियायोग के उप अंग प्रत्याहार, धारणा और ध्यान हैं। ज्ञानयोग के तहत भी सात उप अंग बनाए गए हैं। वे हैं – शुभेच्छा, विचारणा, तनुमानसा, सत्वापत्ति, असंसक्ति, पदार्थभावनी और तुर्यगा। अपरा भक्ति और परा भक्ति भक्तियोग के उप अंग हैं। कर्मयोग में आत्म शुद्धि, अकर्त्ताभाव और नैश्कर्म सिद्धि साधना शामिल हैं। बिहार योग पद्धति के तहत अब सभी छह योग-चक्रों के सभी उप अंगों की गहनतम शिक्षा दी जाएगी। मतलब यह कि यदि कोई हठयोग ही जानना चाहे तो उसे उसके सभी पांच उप अंगों को जानना अनिवार्य होगा। वैज्ञानिक शोधों के आधार पर नई-नई योग विधियां बनाने का काम पूर्ववत जारी रखा जाना है।

वसंत पंचमी के दिन इस गौरवशाली विश्व विख्यात और पूरी तरह संन्यासियों द्वारा संचालित संस्थान की स्थापना के 58 साल पूरे हो जाएंगे। शास्त्रसम्मत, विज्ञानसम्मत और दूरगामी सोच के तहत तय मानदंडों का ही नतीजा है कि यह अपनी स्थापना काल से ही योग विद्या के मामले में टेंड सेटर की भूमिका में है। इस संदर्भ में बेंगलुरू स्थित योग विश्वविद्यालय स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान के उपकुलपति डॉ एचआर नगेंद्र का वक्तव्य गौरतलब है – “मैं जब पहली बार बिहार योग विद्यालय के संपर्क में आया था तो स्वामी सत्यानंद सरस्वती जी की कार्यशैली देखकर मंत्रमुग्ध हो गया। मैंने देखा कि किस प्रकार वे योग के माध्यम से आश्रम आने वाले लोगों को रूपांतरित कर रहे थे। मैंने इस पद्धति को अपने संस्थान में लागू कर दिया। सच तो यह है कि पूज्य गुरूओं स्वामी सत्यानंद सरस्वती और स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने जिस प्रणाली का विकास किया, उसे हमने अपना लिया।“

इन्हीं विलक्षणताओं की वजह से इंग्लैंड सहित यूरोप और अमेरिका के कई शहरों से प्रकाशित होने वाले अखबार “द गार्जियन” ने इस संस्थान को पहले स्थान पर ऱखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर देश में योग के प्रचार-प्रसार के लिए चयनित चार योग संस्थानों में बिहार योग विद्यालय भी है। इसकी श्रेष्ठता को देखते हुए उसे प्रधानमंत्री पुरस्कार के योग्य समझा गया। “फिट इंडिया मूवमेंट” की पहली वर्षगांठ पर कार्यक्रम हुआ तो वहां भी बिहार योग पद्धति छाई रही। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के यौगिक कैप्सूल की अहमियत बताते हुए देशवासियों से इसे अपनाने की अपील कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी को अपने लिए भी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की आवाज में निर्देशित योगनिद्रा योग बेहतर लगता है।

स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते थे – “गुरूकुल में प्राचीन और आधुनिक विचारों का समन्वय करके ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए जो विश्व-बंधुत्व व वसुधैव-कुटुंबकम् के भावों को पोषित करता हो। इसलिए कि सत्यम्, शिवम् व सुंदरम् को प्रकट करना ही योगानुरागियों के जीवन का आदर्श उद्देश्य है।“  उम्मीद है कि नया योग-चक्र इन कसौटियों पर खरा उतरेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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