मुद्रा योग का असर ऐसा कि छा गए थे आयंगार

किशोर कुमार

यौगिक और आध्यात्मिक विषयों को लेकर अलग कुछ जानने की उत्सुकता बड़े-बुजुर्गों में तो होती ही है। पर ऐसे ही सवाल किशोर वय के लड़के-लड़कियां करने लगें तो इसे बड़े बदलाव का संकेत माना जाना चाहिए। मेरे मैसेज बाक्स में ऐसे लड़के-लड़कियों के सवालो की संख्या बढ़ती जा रही है। कोरोना महामारी का शिकार होने के बाद कई अन्य शारीरिक-मानसिक समस्यों से घिरी एक अठारह साल की लड़की का सवाल है कि क्या योग मुद्राओं में इतनी शक्ति है कि वह इन समस्याओं से मुक्ति दिलाने या उसे कम करने में मदद कर सके? उपलब्ध दस्तावेजों और योगियों से विमर्श के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि बता सकूं कि मुद्राओं का विज्ञान बड़ा ही शक्तिशाली है। तभी मुद्रा चिकित्सा की लोकप्रियता दुनिया भर में बढ़ती जा रही है।

इंग्लैंड के मशहूर वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन का नाम योग की दुनिया में भी बड़ा ही जाना-पहचाना है। वे अनिद्रा की तात्कालिक समस्या को लेकर योग साधना के विश्वविख्यात उपासक और योगाचार्य बीकेएस आयंगार के पास गए थे। आयंगार ने मुद्रा योग की शक्ति का कमाल दिखाया और मेनुहिन को अनिद्रा से मुक्ति मिल गई थी। आज यह प्रसंग ऐसे समय में आया है, जब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। योग व अध्यात्म को लेकर बच्चों मन में उठते सवाल और नेहरू जी-येहुदी मेनुहिन प्रसंग के कारण इस दिवस प्रासंगिक बन पड़ा है।

नेहरूजी-मेनुहिन का प्रसंग बड़ा रोचक है। बीकेएस आयंगार के यौगिक उपचार से मेनुहिन अनिद्रा के साथ ही अन्य शारीरिक व्याधियों से भी मुक्त हो गए तो बात नेहरू जी के कानों तक पहुंची। वे खुद ही अनेक कठिन योग साधनाएं किया करते थे। पर मेनुहिन जैसी बीमारियों से ग्रसित थे, उसमें योग का ऐसा चमत्कारिक असर हुआ होगा, यह मानना शायद कठिन जान पड़ा होगा। उन्होंने मेनुहिन को अपने निवास स्थान तीनमूर्ति भवन में बुलाया और शीर्षासन करने की चुनौती दी। मेनुहिन ने सहजता से ऐसा कर दिखाया। नेहरू जी इतने प्रभावित और उत्साहित हुए थे कि खुद भी शीर्षासन कर बैठे थे। यह खबर जंगल में लगी आग की तरह फैल गई। देश-विदेश के अखबारों की सुर्खियां बनी और योग गुरू बीकेएस आयंगार रातों-रात दुनिया भर में मशहूर हो गए थे।    

सवाल है कि येहुदी मेनुहिन को आखिर कौन-सी यौगिक क्रियाएं करवाई गई थी? दरअसल, मेनुहिन कोहनी के हाइपरेक्स्टेंशन से पीड़ित थे। ब्रेंकियल आर्टरी गंभीर रूप से प्रभावित हो गई थी। न्यूरो कार्डियोलॉजी से संबंधित मामला होने के कारण असहनीय दर्द के साथ ही अन्य संभावित खतरे भी परेशान करने वाले थे। कई-कई दिनों तक सो नहीं पाते थे। मेनुहिन भारत के दौरे आए तो आयंगार ने उन्हें शवासन की स्थिति में षण्मुखी मुद्रा करवाई। आमतौर पर इस मुद्रा का अभ्यास पद्मासन या सिद्धासन में कराया जाता है। पर आयंगार ने मेनुहिन के मामले में बिल्कुल अलग विधि अपनाई। नतीजा हुआ कि पांच मिनट भी नहीं बीते और मेनुहिन एक घंटे तक बेसुध सोए रहे। जो काम नींद की दवाएं नहीं पा रही थी और कई-कई रातें जगकर बितानी होती थी, वह काम पांच मिनटों के अभ्यास में हो गया था। मेनुहिन की नींद खुली तो उन्हें खुशी का ठिकाना न रहा। वे पहले सुनते थे, अब खुद ही भारतीय योग-शक्ति के गवाह बन चुके थे।

हठयोग में आसन और प्राणायाम के बाद मुद्रा योग प्रमुख है। यह प्राणिक ऊर्जा नियंत्रण का यह विज्ञान शास्त्र-सम्मत और  विज्ञान-सम्मत है। तभी रोगोपचार के तौर पर मुद्रा योग भारत ही नहीं, दुनिया के ज्यादातर देशों में लोकप्रिय है। साठ के दशक के प्रारंभ में गोल्डी लिप्सन ने अपनी पुस्तक “रिजुवेनेशन थ्रू योगा” में योग मुद्राओं के बारे में लिखा था कि यह उंगलियों का व्यायाम भर है। पर परहसंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने 1969 में आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बंध नामक पुस्तक लिखी तो पश्चिमी देशों में भी मुद्रा योग को स्वतंत्र विद्या के तौर पर मानने का आधार बना था। अब तो मुद्रा चिकित्सा पर पुस्तकों की भरमार है।

सवाल है कि मुद्रा विज्ञान शरीर पर किस तरह काम करता है? आयुर्वेद में कहा गया है कि मनुष्य में पंच महाभूत यानी पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश तत्वों के असंतुलन के कारण बीमारियां होती हैं। योगशास्त्र के मुताबिक मनुष्य की उंगलियों में इन तत्वों के गुण हैं। इसलिए जब मुद्राओं का अभ्यास किया जाता है तो निश्चित बिंदुओं पर दबाव पड़ते ही शरीर के सुप्त ऊर्जा केंद्र मुख्यत: मेरूदंड के चक्र सक्रिय हो जाते हैं। हम जानते हैं कि प्राणिक शरीर को चक्रों से ऊर्जा मिलती है। पर इस ऊर्जा का ह्रास हो जाने के विविध शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। चूंकि मुद्रा की स्थिति में उंगलियों के रास्ते इन प्राणिक ऊर्जा का प्रवाह बाहर की तरफ नहीं हो पाता है। इसलिए वह ऊर्जा शरीर के पांच कोशों में अन्नमय कोश, प्राणमय कोश और मनोमय कोश को स्पंदित करती है। इससे स्वस्थ होने की क्षमता विकसित होती है। हठयोग प्रदीपिका में भी इसके महत्व का प्रतिपादन है। कहा गया है कि ब्रह्म-द्वार के मुख पर सोती हुई देवी (कुंडलिनी) को जगाने के लिए पूर्ण प्रयास के साथ मुद्राओं का अभ्यास करना चाहिए।  

अब जानते हैं कि मेनुहिन पर शवासन में षण्मुखी मुद्रा क्यों इतना असरदार साबित हुई होगी। षण्मुखी मतलब सप्त द्वार। यानी दो आखें, दो कान, दो नासिकाएं और एक मुंह। इस मुद्रा में ये सभी द्वार बंद हो जाते हैं। प्राण विद्या की यह तकनीक हाथों और उंगलियों से उत्सर्जित ऊर्जा चेहरे की स्नायुओं और पेशियों को उत्प्रेरित और शिथिल करती है। नतीजतन इससे एक साथ कुछ हद तक शांभवी मुद्रा, योनि मुद्रा और प्रत्याहार का फल मिलने लगता है। पेशियों व तंत्रिकाओं पर दबाव कम होते और आंतरिक सजगता बढ़ती है। न्यूरो कार्डियोलॉजी के मरीजों के मामले में शवासन की अवस्था में पेरिकार्डियन का विस्तार होता है। इससे हृदय के दाहिनी एट्रियम का फैलाव बढ़ जाता है। इससे रक्तचाप कम जाता है। इससे गजब की विश्रांति मिलती है। ऐसे में मेनुहिन का चैन से सो जाना लाजिमी ही था। इस एक उदाहरण से मुद्रा योग की अहमियत का सहज अंदाज लगाया जा सकता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

योगियों के अमृत मंथन से निकला सूर्य नमस्कार!

किसके दिमाग की उपज है सूर्य नमस्कार, जिसकी महत्ता आधुनिक युग के सभी योगियों से लेकर वैज्ञानिक तक स्वीकार रहे हैं? आम धारणा है कि सूर्य नमस्कार औंध (महाराष्ट्र) के राजा भवानराव श्रीनिवासराव पंत प्रतिनिधि की देन है। पर उपलब्ध साक्ष्य इस बात के खंडन करते हैं। जिस काल-खंड में भवानराव श्रीनिवासराव सूर्य नमस्कार का प्रचार कर रहे थे, उससे पहले मैसूर के प्रसिद्ध योगी टी कृष्णामाचार्य लोगों को सूर्य नमस्कार सिखाया करते थे। हां, यह सच है कि देश-विदेश में इसे प्रचार भवानराव श्रीनिवासराव के कारण ही मिला था। पर नामकरण उन्होंने नहीं किया था। कहा जाता है कि सन् 1608 में जन्मे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध सन्त , सूर्योपासक और छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ रामदास योगासनों की एक श्रृखंला तैयार करके उसका अभ्यास किया करते थे। उनकी कालजयी पुस्तक “दासबोध” में भी सूर्य की महिमा का उल्लेख मिलता है। ऐसा लगता है कि उन्होंने ही आसनों के समूह के लिए सूर्य नमस्कार शब्द दिया।  

किशोर कुमार

इस बार सूर्य नमस्कार की बात। हठयोग की एक ऐसी शक्तिशाली विद्या की बात, जो प्राचीन काल में हठयोग का हिस्सा नहीं था। पर उसकी क्रियाएं मौजूद थीं और सूर्य उपासना मानव की आंतरिक अभिव्यक्तियों का एक अत्यंत सहज रूप थी। इनका समन्वय करके बनाई गई योग विधि ही आधुनिक युग का सूर्य नमस्कार है। मंत्र योग के बाद शायद यह इकलौती योग विधि है, जिसका धार्मिक वजहों से विवादों से नाता बना रहता है। बावजूद लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है। योग विज्ञानी इसे मानव शरीर में सूर्य की ऊर्जाओं को व्यवस्थित करने का बेहतरीन तरीका मानते हैं, जिनसे हमारा जीवन संचालित है। इसकी सत्यता का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान होने लगे तो विज्ञान को भी इसकी अहमियत स्वीकारनी पड़ी है।

जीवन-शक्ति प्रदायक इस योग विधि से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा होगी। इसके पहले जानते हैं कि जिस सूर्य नमस्कार को अपने आप में पूर्ण योग साधना माना जाता, उसे मौजूदा स्वरूप कब और कहां मिला? आसनों के समूह को एक साथ किसने गूंथा? इसे लोकप्रियता किसने दिलाई? वैसे तो सूर्योपासना आदिकाल से की जाती रही है। सूर्योपनिषद् में कहा गया है कि जो व्यक्ति सूर्य को ब्रह्म मानकर उसकी उपासना करता है, वह शक्तिशाली, क्रियाशील, बुद्धिमान और दीर्घजीवी होता है। पर योग के आयामों पर शोध करने वाले अमेरिकी मानव विज्ञानी जोसेफ एस अल्टर की पुस्तक “योगा इन मॉडर्न इंडिया” के मुताबिक सूर्य नमस्कार 19वीं शताब्दी से पहले किसी भी हठयोग शास्त्र का हिस्सा नहीं था। इस बात की पुष्टि स्वात्माराम कृत हठप्रदीपिका और महर्षि घेरंड की घेरंड संहिता से भी होती है। यहां तक कि हठयोग के लिए ख्यात नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक गोरक्षनाथ के गोरक्षशतक में भी सूर्य नमस्कार का उल्लेख नहीं है। फिर यह वजूद में आया कैसे?

श्रुति व स्मृति के आधार पर उपलब्ध दस्तावेजों और अन्य साक्ष्यों से पता चलता है कि महाराष्ट्र के प्रसिद्ध सन्त और छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ रामदास योगासनों की एक श्रृखंला तैयार करके उसका प्रतिदिन अभ्यास किया करते थे। वे सूर्य के उपासक थे और सूर्योदय के साथ ही सूर्य को प्रणाम करके योगासन करते थे। माना जाता है कि वही कालांतर में सूर्य नमस्कार के रूप में प्रसिद्ध हुआ। वैदिक काल से चली आ रही सूर्य उपासना समर्थ रामदास के जीवन का हिस्सा इस तरह बनी थी कि उन्होंने अपनी कालजयी पुस्तक “दासबोध” में इसकी महिमा का बखान करने के लिए एक अध्याय ही लिख दिया था। हालांकि उनकी पुस्तक में कहीं भी आसनों के समूह को सूर्य नमस्कार नहीं कहा गया है। पर मैसूर और औंध प्रदेश में लगभग एक ही काल-खंड में जिस तरह सूर्य नमस्कार लोकप्रिय होने लगा था, उससे ऐसा लगता है कि समर्थ रामदास ने ही आसनों के समूह के लिए सूर्य नमस्कार शब्द दिया होगा।

विख्यात योगी की कहानी, सद्गुरू जग्गी वासुदेव की जुबानी

कर्नाटक के योग शिक्षक थे – राघवेंद्र राव। वे रोज 1008 बार सूर्य नमस्कार करते थे। जब नब्बे साल के हुए तो 108 बार सूर्य नमस्कार करने लगे थे। यह कटौती अपनी आध्यात्मिक साधना के कारण कर दी थी। वे बेहतरीन आयुर्वेदिक चिकित्सक भी थे। नब्ज छू कर बता देते थे कि अगले 10-15 वर्षों में किस तरह की बीमारी हो सकती है। उनका आश्रम था, जहां प्रत्येक सोमवार की सुबह से शाम तक मरीज देखते थे। इसके लिए रविवार की शाम को ही आश्रम पहुंच जाते थे। उनकी एक और खास बात थी। गंभीर से गंभीर मरीज को चुटकुला सुनाकर खूब हंसाते थे। इससे मरीजों से भरे आश्रम में उत्सव जैसा माहौल बन जाता था।
उनके समर्पण की एक दास्तां यादगार रह गई। वे एक बार अपने दो साथियों के साथ आश्रम से 75 किमी की दूरी पर फंस गए। दरअसल, ट्रेन रद्द हो गई थी। आश्रम हर हाल में पहुंचना था। रात्रि में ट्रेन के अलावा दूसरा कोई साधन न था। लिहाजा उन्होंने 83 साल की उम्र में फैसला किया कि रेलवे टैक पर दौड़ते हुए आश्रम पहुंचेंगे। ताकि सुबह-सुबह मरीजों का इलाज कर सकें। ऐसा ही हुआ। वे चार बजे सुबह आश्रम पहुंच गए और समय से मरीजों को देखने के लिए उपलब्ध हो गए। उनके दो साथी अगले दिन ट्रेन से आश्रम पहुंचे तो राघवेंद्र राव की दास्तां सुनाई। वे 106 वर्षों तक जीवित रहे और प्राण त्यागने के दिन तक योग सिखाते रहे।

योग साहित्य के ज्यादातर जानकार बताते है कि देश की आजादी से पहले औंध (मौजूदा पुणे के आसपास का इलाका) के राजा भवानराव श्रीनिवासराव पंत प्रतिनिधि की वजह से सूर्य नमस्कार देश-विदेश में लोकप्रिय हुआ था। पर इस बात के भी सबूत हैं कि भवानराव श्रीनिवासराव के प्रचार से कोई दो दशक पहले प्रख्यात योगी टी कृष्णामाचार्य की वजह से तत्कालीन मैसूर प्रांत के लोग सूर्य नमस्कार से परिचित हो चुके थे। भवानराव श्रीनिवासराव ने 1920 के आसपास सूर्य नमस्कार का प्रचार शुरू किया था, जबकि टी कृष्णामाचार्य की पुस्तक व्यायाम प्रदीपिका का प्रकाशन 1896 में हो चुका था, जिसमें सूर्य नमस्कार के आसनों की विस्तार से चर्चा है।   बीकेएस अयंगर और के पट्टाभि जोइस टी कृष्णामाचार्य के ही शिष्य थे। इन बातों का उल्लेख नॉर्मन ई सोजमन की पुस्तक “द योग ट्रेडिशन ऑफ मैसूर पैलेस” में है। कैनेडियन नागरिक सोजमन संस्कृत व वैदिक शास्त्रों के अध्ययन तथा योग के प्रशिक्षण के लिए कोई 14 वर्षों तक भारत में रहे। उसके मुताबिक मैसूर के राजा कृष्णराज वाडियार हिमालय के योगी राममोहन ब्रह्मचारी के शिष्य कृष्णामाचार्य से बेहद प्रभावित थे।

प्रसिद्ध गांधीवादी लेखक और राजनयिक अप्पा साहेब पंत पूर्व औंध प्रदेश के राजा भवानराव श्रीनिवासराव के ही पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता पर एक पुस्तक लिखी थी – ऐन अनयूजुअल राजा। उसमें सूर्य नमस्कार के प्रचार के बारे में विस्तार से चर्चा है। इसमें मुताबिक, औंध से सटे मिराज राज्य, जो अब महाराष्ट्र का हिस्सा है, के राजा की सलाह पर भवानराव श्रीनिवासराव नियमित रूप से सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने लगे थे। उन्हें प्रारंभिक दिनों से ही खेलकूद के प्रति गहरी अभिरूचि तो थी ही, जर्मन बॉडी बिल्डर और शोमैन यूजेन सैंडो से भी खासे प्रभावित थे। जब उन्हें इसके लाभ दिखने लगे तो दीवानगी बढ़ गई। नतीजतन, उन्होंने न केवल देश से बाहर भी सूर्य नमस्कार का प्रचार किया, बल्कि अखबारों में लेख लिखे और मराठी में एक पुस्तक भी लिख डाली, जिसका बाद में अंग्रेजी में अनुवाद हुआ था। उसका नाम है – “द टेन प्वाइंट वे टू हेल्थ।“ इसे 1923 में इंग्लैंड के एक प्रकाशक ने प्रकाशित किया था।

हरियाणा के संदीप आर्य सबसे ज्यादा समय तक सूर्य नमस्कार करने का वर्ल्ड रिकार्ड बना चुके हैं। उन्होंने बीते साल लखनऊ में आयोजित वर्ल्ड योगा चैंपियनशिप में 36 घंटे 21 मिनट तक सूर्य नमस्कार करके अपना ही रिकार्ड तोड दिया था। इसके पहले 17 घंटे 30 मिनट तक सूर्य नमस्कार का वर्ल्ड रिकार्ड उन्हीं के नाम था। वे अपनी इन उपलब्धियों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से सम्मानित हो चुके हैं।  

हम सब जानते हैं कि सूर्य नमस्कार में मुख्यत: सात मुद्राएं होती हैं। पांच मुद्राओं की पुनरावृत्ति होती है। इस तरह बारह मुद्राएं हो गईं। आध्यात्मिक गुरू और ईशा फाउंडेशन के प्रमुख सद्गुरू जग्गी वासुदेव के कहते हैं कि ऐसा होना महज संयोग नहीं है। सूर्य का चक्र लगभग सवा बारह साल का होता है। इस बात को ध्यान में रखकर ही बारह आसनों की श्रृंखला बनाई गई। ताकि हमारे शरीर के चक्रों का सौर चक्र से तालमेल हो सके। बिहार योग विद्यालय के निवृत्त परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने आधुनिक युग की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए जिस तरह योग विधियों को मिलाकर यौगिक कैप्सूल तैयार किया। समझा जाता है सूर्य नमस्कार भी कुछ ऐसे ही विचारों की देन है। इन्हें योगियों का अमृत मंथन कहना समीचीन होगा। सच तो यह है कि बेहद असरदार योग विधि मानव जाति के लिए अमृत से कम नहीं है।

बीते सप्ताह उपनयन संस्कार के वक्त बच्चों को दी जाने वाली योग शिक्षाओं की चर्चा की गई थी। उनमें सूर्य नमस्कार प्रमुख था। विभिन्न अनुसंधानों के नतीजों से साबित हो चुका है कि योग की यह प्रभावशाली विधि अंत:स्रावी ग्रंथियों पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। उनमें शरीर की सबसे महत्वपूर्ण पीयूषिका ग्रंथि शामिल है। सूर्य नमस्कार इस ग्रंथि के क्रिया-कलापों का नियमन करने वाले हॉइपोथैलेमस को उद्दीप्त करता है। इस कॉलम में पीनियल ग्रंथि की बार-बार चर्चा हुई है। सूर्य नमस्कार से उसके क्षय होने की प्रक्रिया भी मंद पड़ती है। मासिक धर्म संबंधी अनियमितताओं और उससे उत्पन्न तनावों से मुक्ति दिलाने में यह योगासन बेहद प्रभावकारी है। रीढ़ के रोगों से बचाव के लिए यह सबसे उत्तम विधि मानी जाती है।

कई व्याधियों में सूर्य नमस्कार बेहद प्रभावी है। वे हैं – अंत:स्रावी ग्रंथियों में असंतुलन, मासिक धर्म व रोग निवृत्ति संबंधी समस्याएं, दमा व फेफड़े की विकृतियां, पाचन संस्थान की व्याधियां, निम्न रक्तचाप, मिर्गी व मधुमेह, मानसिक व्याधियां, गठिया, गुर्दे संबंधी व्याधियां, यकृत की क्रियाशीलता में कमी, सामान्य सर्दी-जुकाम से बचाव आदि। मतलब यह कि शरीर के ऊर्जा संस्थानों में संतुलन लाने के लिए यह लाभदायक है। यदि किसी का ऊर्जा संस्थान असंतुलित है तो व्याधियों से मुक्त रह पाना नामुमकिन है।  

पंचमढ़ी का सूर्य नमस्कार पार्क

स्वास्थ्य खासतौर से कैलोरी को लेकर सतर्क लोग आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक तथा आध्यात्मिक गुरू श्रीश्री रविशंकर के एक शोध के नतीजों से सूर्य नमस्कार के महत्व को आसानी से समझा जा सकता है। शोध के मुताबिक, 30 मिनट में भारोत्तोलन से 199 कैलोरी, टेनिस से 232 कैलोरी, बास्केटबाल से 265 कैलोरी, बीच वॉलीबाल से 265 कैलोरी, फुटबॉल से 298 कैलोरी, 24 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से साइकिल चलाने से 331 कैलोरी, पर्वतारोहण से 364 कैलोरी, दौड़ने से 414 कैलोरी (यदि रफ्तार 12 किमी प्रति घंटा हो) और सूर्य नमस्कार से 417 कैलोरी का उपयोग होता है। सूर्य नमस्कार के 12 सेट 12 से 15 मिनट में 288 शक्तिशाली योग आसनो के समान है।

सूर्य नमस्कार के मामले में एक खास बात यह है कि धार्मिक आधार पर विवाद होने के बावजूद थोड़े संशोधनों के साथ इसकी स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। शारीरिक औऱ मानसिक संकटों से जूझते लोगों के जीवन में इसका सकारात्मक प्रभाव होता है तो उन्हें यह स्वीकार करने में तनिक भी कठिनाई नहीं होती कि योग विज्ञान है और इसका किसी मजहब ले लेना-देना नहीं है। यही वजह है कि इस्लामिक देशों में भी सूर्य नमस्कार योग को लेकर पहले जैसा आग्रह नहीं रहा। पाकिस्तान के प्रमुख योग गुरू शमशाद हैदर खुद ही हजारों लोगो को एक साथ सूर्य नमस्कार का अभ्यास कराते हैं। केवल “ऊँ” की जगह “अल्लाह हू” बोलते हैं। वे मानते हैं कि योग का कोई धर्म नहीं होता।

यह सच है कि मानव जिन पांच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है, उनका भला क्या धर्म हो सकता है। मानव शरीर को स्वस्थ्य रखने के उपायों का भी कोई धर्म नहीं हो सकता। सूर्य नमस्कार शरीर की आंतरिक रहस्यपूर्ण प्रणालियों पर नियंत्रण प्राप्त करने और उनके बीच सामंजस्य लाने का एक सशक्त साधन है। यौगिक अमृत है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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