नववर्ष का संकल्प औऱ प्रार्थना की शक्ति

किशोर कुमार //     

नववर्ष में कैसा हो संकल्प, कैसी हो प्रार्थना कि न केवल जीवन अर्थपूर्ण बन जाए, बल्कि वह विश्व के लिए राष्ट्र का संदेश बन जाए? स्वामी विवेकानंद ने कहा था – “प्रत्येक राष्ट्र का विश्व के लिए एक संदेश होता है, एक प्रेरणा होती है। जब तक वह संदेश आक्रांत नहीं होता, तब तक राष्ट्र जीवित रहता है। कभी रोम साम्राज्यलिप्सा का शिकार था। थोड़ा आघात हुआ तो छिन्न-भिन्न हो गया। यूनान की प्रेरणा बुद्धि थी। उस पर ज्योहिं आघात हुआ, उसकी इतिश्री हो गई। पर भारत का संदेश बहिर्यात्रा नहीं, अंतर्यात्रा रहा है। उसकी समृद्धि का आधार आध्यात्मिक संपदा है। यह संपदा जब तक हमारे पास है, राष्ट्र का गौरव बना रहेगा।“    

तो संकल्प और प्रार्थना के मामले में स्पष्टता जरूरी होती है।  प्रार्थना का मतलब इतना भर नहीं कि देवी-देवताओं की प्रतिमा के पास बैठ कर याचना करते रहें कि सब ठीक हो जाए। यद्यपि इसका भी अपना महत्व है। पर प्रार्थना की पूर्णता इस बात में है कि वह हमें आंतरिक संबल प्रदान करके निष्काम कर्म की ओर प्रवृत्त करे। साथ ही हमारे विचारो व इच्छाओं को सकारात्मक बनाकर निराशा और नकारात्मक भावों को नष्ट करे। जाहिर है कि यह यौगिक प्रार्थना की बात हो गई, जो व्यवहार रूप में की जाने वाली प्रार्थना से भिन्न है।  आईए, महान संतों के संदेशों के जरिए इस बात को समझते हैं।

बात परमहंस योगानंद जी से शुरू करते हैं। आज से कोई 78 साल पहले आज के ही दिन यानी 2 जवनवरी 1919 को परमहंस योगानंद कैलिफोर्निया के सेल्फ-रियलाइजेशन फेलोशिप मंदिर में थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को बतलाया था कि नववर्ष की प्रार्थना कैसी हो? इसके बाद उन्होंने सामूहिक प्रार्थना की – हे परमपिता। नववर्ष में लिए गए सभी अच्छे संकल्पों को पूरा करने के लिए हमें शक्ति दें। अपने कार्यों द्वारा हम सदा आपको प्रसन्न करें। हमारी आत्माएं सहर्ष तत्पर हैं। नववर्ष में हमारी सभी उचित इच्छाओं को पूरा करने में हमारी सहायता करें। हम तर्क करेंगे, हम इच्छा करेंगे और कर्म करेंगे, परन्तु प्रत्येक उचित कार्य करने के लिए हमारे विवेक-बुद्धि का, इच्छा-शक्ति का और कर्मों का आप मार्ग-दर्शन करें। ताकि हम प्रत्येक कार्य को उचित ढंग से करें, जिसे हमें करना चाहिए।

ऋषिकेश में दिव्य जीवन संघ के संस्थापक और बीसवीं सदी महान संत स्वामी शिवानंद सरस्वती कहते थे कि नववर्ष का संकल्प होना चाहिए कि हम आज और अभी से योग और अध्यात्म का सहारा लेकर अपने जीवन का रूपांतरण करेंगे। गीता-दर्शन संसार में सभी के लिए उपयुक्त है। इसलिए गीता की शिक्षाओं को जीने का प्रयास करेंगे। रात्रि में सोने से पहले अपने दिन भर की वाणी, विचारों और कर्मों का पुनरावलोकन करके पता लगाएंगे कि आज मैंने किस दुर्गुण पर विजय प्राप्त की। आदि आदि। ऐसी प्रार्थनाओं से सभी प्रतिकूल परिस्थितियों से ऊपर उठने का साहस मिलता है। निराशा का भाव खत्म होता है और अच्छे कर्म करने की दृष्टि मिलती है। यह स्मरण रहना चाहिए कि तीनों लोक की धन-संपत्ति व्यर्थ है, यदि हम आध्यात्मिक संपदा के लिए प्रयत्नशील नहीं हैं।

परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते थे कि नववर्ष आत्म-विश्लेषण, आत्म-विकास और आत्म-समपर्ण का दिन है। इसलिए शांति से बैठो, विचारो और नए संकल्प लो। यदि महान कार्य करना चाहते हो तो लघुतम से प्रयास करो। यदि महान बनाना चाहते हो तो अति विनम्र और छोटे बनो। यदि सिद्ध बनना चाहते हो तो सूक्ष्मतिसूक्ष्म अवगुण से उन्मूलन का अभियान प्रारंभ करो। यदि तुम कुछ बनना चाहते हो तो “मैं कुछ नहीं हू” बनो। जीवन में सुख-दुख लगा हुआ है। इसलिए चिंता बनी रहती है और यह एक ऐसी चीज है जो मनुष्य को आजीवन खो-खोर कर जलाती है। इससे मुक्ति का कलियुग में एक ही सरल उपाय है कि चित्त को एकाग्र करो। इसके लिए नाम और जप सदैव याद रखो।

श्रीमद्भगवतगीता में प्रार्थना की शक्ति बतलाई गई है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि सुख-दु:ख की उत्पत्ति इंद्रियों के कारण होती है। यानी जीवन में सुख-दु:ख का चक्र चलता रहेगा। इसलिए हमें समभाव से इन परिस्थियों का सामना करना चाहिए। इसके साथ ही कहते हैं कि जो अनन्यनिष्ठ लोग मेरा चिंतन कर मुझे भजते हैं, उन नित्य योगयुक्त पुरूषों का योग-क्षेम किया करता हूं। यहां योगयुक्त पुरूष से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है, जो निष्काम बुद्धि से कर्म करता है। प्रार्थना की शक्ति को लेकर सभी संतों ने एक जैसी बातें कही है। और उन सबका सार यह है कि गुरूत्वाकर्षण की शक्ति जितना सत्य है, उतना ही सत्य है प्रार्थना की शक्ति भी। मीराबाई के किस्से हम जानते है कि कांटो की सेज फूल की सेज में बदल गई थी और सांप फूल की माला में तब्दील हो गया था। द्रौपदी ने संकट में भगवान को पुकारा तो वे उपस्थित हो गए थे।

आधुनिक युग में दृढ़ विश्वास और प्रार्थना की शक्ति का एक प्रसंग गौर करने लायक है। बात सन् 1919 की है, जब जापान में इंफ्लुएंजा कहर बरपा रहा था। महर्षि अरविन्द की शिष्या व सहचरी और फ्रांसीसी मूल की भारतीय आध्यात्मिक गुरु श्रीमां उस दौरान वही थीं। बड़ी संख्या में हो रही मौतों के कारण परिस्थितियों का ऐसा निर्माण हुआ कि योगमार्ग पर चलने वाली श्रीमां भी उससे अप्रभावित नहीं रह सकीं और बीमार हो गईं। पर उन्होंने कोई दवा न ली। योगी थीं और उन्हें पता था कि मन पर से नकारात्मक शक्तियों का प्रभुत्व जैसे ही समाप्त होगा, वे ठीक हो जाएंगी। इसलिए चित्त को एकाग्र करके ईश्वर से प्रार्थना करती रहीं। इसका असर देखिए कि सकारात्मक विचार खिंचा चला आया। तीसरे दिन कोई महिला उनसे मिलने आई और कहा कि इंफ्लुएंजा अब खत्म हो रही है। बीते तीन दिनों से कोई नहीं मरा। इस बात में सच्चाई नहीं थी। पर श्रीमां पर इस बात का असर जादू जैसा हुआ और वह ठीक हो गई थी।

हमने भी पूर्व में देखा कि जब संक्रमण उफान पर था तो प्रार्थना का ही विकल्प बच गया था और गृहस्थ जीवन जी रहे आम लोगों की प्रार्थना भी फलीभूत हुई थी। ऐसे में योगयुक्त प्रार्थना की शक्ति का सहज अंदाज लगाया जा सकता है। योगयुक्त प्रार्थना की तैयारी के तौर पर मंत्र साधना, प्राणायाम और योगनिद्रा बड़े काम के हैं। नववर्ष आनंदमय रहे, इसके लिए जरूरी है कि हम इन यौगिक क्रियाओं की शक्ति को याद रखें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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