जेलों में योग की अहमियत

किशोर कुमार

आठवें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के लिए उल्टी गिनती शुरू है। इस बार का थीम है – योगा फॉर ह्यूमैनिटी। इस थीम के मद्देनजर जेलों के कैदियों पर भी फोकस है। योगोत्सव की तैयारियों के लिहाज से कैदियों को योगाभ्यास कराया जा रहा है। वैसे, कैदियों के लिए योग की अनिवार्यता पर लंबे समय से बहस होती रही है। कैदियों के लिए योगाभ्यास क्यों जरूरी है? क्या इससे जीवन के प्रति उनके नजरिए में कोई बदलाव हो पाता है?  क्या उनके पुनर्वास में योग की कोई भूमिका होती है?… इस तरह के सवाल किए जाते रहे हैं। इस लेख में इन्हीं संदर्भों में बात होनी है। पर पहले एक रोचक प्रसंग।

ओशो को अमेरिकी सरकार ने ओक्लाहोमा जेल में बंद कर दिया था। ओशो जब तक जेल में रहे, कैदियों को ध्यान का अभ्यास कराते रहे। कैदियों को उनका सत्संग इतना भाया कि वे बदले-बदले से दिखने लगे थे। जेलर भी खासा प्रभावित था। ओशो जब जेल से रिहा हुए तो जेलर ने अपनी भावनाएं कुछ ऐसे व्यक्त की – आपका जेल रहना मेरे जीवन का अनूठा अनुभव रहा। कैदियों की दशा बदल गई है। दूसरी तरफ मैंने आप जैसे किसी कैदी को जेल आते-जाते इतना प्रसन्न नहीं देखा था। आखिर इसका राज क्या है? ओशो ने  कहा कि उनका यही तो जुर्म है कि वे लोगो को प्रसन्न रहने का राज बतला रहे थे। सरकार को बात इसलिए नहीं भायी कि उस राज के समझते ही सरकारों की सारी ताकतें तुम्हारे ऊपर से समाप्त हो जाती हैं। यहां तक कि आग फिर तुम्हें जलाती नहीं और तलवार फिर तुम्हें काटती नहीं। इसलिए जो लोग तलवार और आग के बल पर तुम्हारी छाती पर सवार हैं, वे नहीं चाहते कि जानो कि तुम कौन हो। ओक्लाहोमा जेल के तत्कालीन जेलर की आत्मकथा में इन बातों का उल्लेख है।

खैर, अब परिस्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर भारत ही नहीं दुनिया के अनेक देशों में योग का डंका बज रहा है। जेल भी इससे अछूते नहीं हैं। देश में सबसे पहले दिल्ली के तिहाड़ जेल के सभी कैदियों के लिए योगाभ्यास को अनिवार्य बनाया गया था। यह पहल खूंखार कैदियों को खुदकुशी से रोकने के लिए की गई थी। अब इस जेल के सभी कैदियों के योग को अनिवार्य बनाया जा चुका है। इसका असर हुआ कि देश के प्राय: सभी जेलों में कैदियों को प्राथमिकता के आधार पर योगाभ्यास कराया जाने लगा है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि कैदी प्रशिक्षण पाकर खुद ही बेहतरीन योग प्रशिक्षक बन गए। सरकार सजा पूरी कर चुके ऐसे कैदियों को आयुष केंद्रों में बतौर योग प्रशिक्षक बहाल करे तो उनके पुनर्वास में बड़ी मदद मिल सकती है।    

योग के प्रभावों के लेकर लखनऊ स्थित जिला कारागार का मामला ताजा-ताजा है। वहां प्रयाग आरोग्यम केन्द्र के संस्थापक प्रशांत शुक्ल कैदियों को लगातार तीन दिनों तक न केवल उदाहरणों के जरिए योग विधियों की अहमियत बताते रहे, बल्कि उन्होंने उन विधियों का अभ्यास करवा कर कैदियों पर गहरा प्रभाव डाला। आसन, प्राणायाम और योगनिद्रा से कैदियों के अशांत मन को सांत्वना मिली। अब वे योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाने को उत्सुक हैं। श्री शुक्ल कहते हैं कि योगाभ्यास का असर हुआ कि कैदियों के आचार-विचार बदल गए थे। उनकी आक्रमकता पहले जैसी नहीं रही। पूर्व में जिन कैदियों ने योग में रूचि नहीं दिखाई थी, वे भी योगनिद्रा के प्रभावों से चमत्कृत होकर बार-बार योगनिद्रा करना चाहते थे।

आखिर योगनिद्रा क्या है? जागृत और स्वप्न के बीच जो स्थिति होती है, उसे ही योगनिद्रा कहते है। जब हम सोने जाते हैं तो चेतना इन दोनों स्तरों पर काम कर रही होती है। हम न नींद में होते हैं और जगे होते हैं। यानी मस्तिष्क को अलग करके अंतर्मुखी हो जाते हैं। पर एक सीमा तक बाह्य चेतना भी बनी रहती है। इसकी वजह यह है कि हम योगनिद्रा के अभ्यास के दौरान अनुदेशक से मिलने वाले निर्देशों को सुनते हुए मानसिक रूप से उनका अनुसरण भी करते रहते हैं। ऐसा नहीं करने से सजगता अचेतन में चली जाती है और मन निष्क्रिय हो जाता है। फिर गहरी निद्रा घेर लेती है, जिसे हम सामान्य निद्रा कहते हैं।

कैदियों पर योग के प्रभावों को लेकर दुनिया भर में कई स्तरों पर अध्ययन किए गए। पता चला कि कैदियों के शरीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूपांतरण में योग की बड़ी भूमिका होती है। कैदियों में अनिद्रा एक आम समस्या है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अनिद्रा पर योगनिद्रा के प्रभावों पर हाल ही शोध किया गया। वैसे, वर्षों पूर्व जापान में भी योगनिद्रा के वृहत्तर परिणामों पर शोध किया गया था। उसके जरिए जानकारी इकट्ठी की गई कि साधारण निद्रा और योगनिद्रा की अवस्था में मस्तिष्क की तरंगें किस तरह काम करती हैं। इस अध्ययन की अगुआई डॉ हिरोशी मोटोयामा ने की थी। उन्होंने देखा कि गहरी निद्रा की स्थिति में डेल्टा तरंगें उत्पन्न होती हैं और ध्यान की अवस्था में अल्फा तरंगें निकालती हैं। यही नहीं, योगाभ्यास के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। यानी योगाभ्यासी की चेतना अंतर्मुखता औऱ बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। चेतना जब बहिर्मुख होती है तो मन उत्तेजित हो जाता है औऱ अंतर्मुख होते ही सभी उत्तेजनाओं से मुक्ति मिल जाती है। इस तरह साबित हुआ कि योगनिद्रा के दौरान बीटा औऱ थीटा की अदला-बदली होने की वजह से ही मन काबू में आ जाता है, शिथिल हो जाता है।

स्वीडेन के यूनिवर्सिटी वेस्ट के स्वास्थ्य विभाग ने स्वीडिश कैदी सुधार सर्विसेज के साथ मिलकर 152 कैदियों पर योग के प्रभावों को लेकर कोई दस सप्ताह तक अध्ययन किया। इस दौरान कुछ आसनों के साथ मुख्यत: योगनिद्रा का अभ्यास कराने के बाद हिंसक कैदी भी सामान्य व्यवहार करने लगे थे। यूनिवर्सिटी वेस्ट के अध्ययनकर्त्ता केरेक्स ने अपने शोध पत्र में लिखा है कि मन को स्वस्थ्य बनाने की यह विधि चमत्कारिक है। अध्ययन के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि योगाभ्यास से कैदियों के सामान्यत: फिर से आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने की संभावना कम हो जाती है। इस अध्ययन का पूरा वृतांत ब्रिटेन के अखबार “द गार्डियन” में प्रकाशित हुआ है।

इन उदाहरणों से जेलों में योग की अहमियत का पता चलता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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