चौंकिए मत, यह योगनिद्रा का कमाल है!

किशोर कुमार //

महर्षि पतंजलि ने जिस अष्टांग योग से दुनिया का परिचय कराया था, जिसका पांचवां अंग है प्रत्याहार। प्रत्याहार यानी इंद्रियों पर संयम। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने इसी प्रत्याहार से आज की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक शक्तिशाली विधि विकसित की थी, जिसे आज हम “योगनिद्रा” के रूप में जानते हैं। आज का विषय वही योगनिद्रा है और इसकी एक खास वजह भी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते 13-14 जुलाई को फ्रांस में थे। भारतीय मूल के लोग स्वाभाविक रूप से प्रधानमंत्री मोदी से मिलने खिंचे चले गए थे। उनमें एक उत्साही युवक ने प्रधानमंत्री से पूछ लिया – आप हर रोज बीस घंटे काम करते हैं, इसका राज क्या है? लोगों का अभिवादन स्वीकार करने के दौरान जाहिर है कि प्रधानमंत्री के पास इतना वक्त नहीं रहा होगा कि वे खड़े होकर उस यौगिक क्रिया के बारे में बतलाते, जिनकी बदौलत वे तीन-चार घंटे सो कर भी तरोताजा बने रहते हैं। इसलिए वे उस युवक का हाथ थपथपाते हुए आगे बढ़ गए थे। पर भारत के कुछ बुद्धिजीवियों को यह बात नागवार गुजरी। आखिर मोदी निरूत्तर क्यों हो गए? शायद तीन-चार घंटे ही नींद लेने वाली बात सही नहीं है।

कुछ साल पहले डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो उनकी पुत्री इवांका ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी से कुछ ऐसा ही सवाल किया था, जैसा कि फ्रांस में किया गया। उन्होंने ट्वीट करके पूछा था कि इतने ऊर्जावान होने का राज क्या है? प्रत्युत्तर में मोदी ने कहा था कि बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती द्वारा निर्देशित “योगनिद्रा” का नियमित अभ्यास करता हूं। तब इवांका ट्रंप ने कहा था कि वे भी इस योगविधि का अभ्यास करेंगी। इस संवाद को जानने-समझने के बाद  कहना होगा कि या तो विरोध करने के लिए बाल की खाल निकाली जा रही है या फिर योगनिद्रा की शक्ति पर ही संशय है।          

बीसवीं सदी के महान योगी श्रीअरविंद कहते थे – बुद्धि एक सहारा था, अब बुद्धि एक अवरोध है। यानी बुद्धि की भी सीमाएं हैं। तभी कई विज्ञानसम्मत बातें भी चमत्कार प्रतीत होने लगती हैं। ओशो रेल से जुड़े एक रोचक प्रसंग सुनाते थे – इंग्लैंड में जब पहली बार भाप इंजन से ट्रेन चलने वाली थी तो किसी को उस पर विश्वास नहीं हुआ। भला भाप से इतना वजनी इंजन कैसे चल सकती है और यदि चल गई तो रूकेगी कैसे? इसलिए पहली रेलयात्रा के लिए कोई राजी नहीं हुआ। अंत में मृत्युदंड की सजा पाए बारह कैदियों को पहली रेलयात्रा के लिए तैयार किया गया। कैदी भी यह सोचकर तैयार हो गए कि एक दिन तो मरना ही है। वास्तव में तो कोई खतरा था नहीं। पर अज्ञान के कारण रेलयात्रा खतरनाक प्रतीत होने लगी थी।

हालांकि योगनिद्रा कोई नई योगविद्या तो है नहीं। दुनिया भर की एक हजार से ज्यादा प्रयोगशालाओं में शोध किया जा चुका है। सच तो यह है कि योगनिद्रा प्रत्याहार की एक ऐसी विधि है, जिसके लाभों की फेहरिस्त लंबी हैं। एक लाभ तो यही है कि पांच-छह घंटे सोने जितना शारीरिक-मानसिक आराम नहीं मिलता, उससे ज्यादा आराम ढाई-तीन घंटों की योगनिद्रा में मिल जाता है। इसलिए कि योगनिद्रा के दौरान व्यक्ति की स्थिति जागृत और स्वप्न के बीच वाली होती है। योगनिद्रा के वृहत्तर परिणामों पर पहली बार वर्षों पहले जापान में शोध किया गया था। शोधकर्त्ता डॉ हिरोशी मोटोयामा ने देखा था कि योगनिद्रा के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। इससे योगाभ्यासी की चेतना अंतर्मुखता औऱ बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। इस वजह से ही मन काबू में आ जाता है, शिथिल हो जाता है।

योग रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक प्रत्याहार में इतनी शक्ति है कि इड़ा और पिंगला नाड़ियों को अवरूद्ध कर मस्तिष्क से उनका संबंध विच्छेद किया जा सकता है। इस क्रिया के पूर्ण होते ही प्राय: सुषुप्तावस्था में रहने वाली सुषुम्ना नाड़ी को जागृत करना आसान हो जाता है। योगनिद्रा के अभ्यास के दौरान सुषुम्ना या केंद्रीय नाड़ी मंडल क्रियाशील रहकर पूरे मस्तिष्क को जागृत कर देता है। इससे इड़ा और पिंगला नाड़ियों का काम ज्यादा बेहतर तरीके से होने लगता है। मस्तिष्क को अतिरिक्त ऊर्जा, प्राण और उत्तेजना प्राप्त होने लगती है। अनुभव भी विशिष्ट प्रकार के होते हैं। शोधों से पता चला है कि मनुष्य जब निद्रित रहता है, उस समय उसका मन बहुत ग्रहणशील रहता है। इसके अतिरिक्त उसकी श्रवण, दृष्टि और ज्ञान की शक्ति बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, क्योंकि स्थूल इन्द्रियों का बन्धन नहीं रहता। यह ज्ञान अर्जन के लिए आदर्श स्थिति होती है। साथ ही स्नायविक, मानसिक और भावनात्मक तनावों मुक्ति मिल जाती है, जो अनेक बीमारियों की वजह बनी होती हैं।

परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने आपबीती सुनाई थी कि योगनिद्रा जीवन को किस तरह रूपांतरित कर देती है। वर्षों पहले की बात है। स्वामी जी इंग्लैंड में थे और उनकी अवस्था ग्यारह वर्ष की थी। लंदन विश्वविद्यालय में बायोफीडबैक विषय पर शोध पूर्व संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। उसमें योग विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में विचार रखने के लिए बिहार योग विद्यालय को निमंत्रण था। स्वामी निरंजनानंद सरस्वती लंदन में थे ही तो चले गए अपने संस्थान का प्रतिनिधित्व करने। पहले तो अन्य वक्ताओं ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। पर वक्तव्य पूरा हुआ तो सभी दंग रह गए थे। इसलिए कि जिस विषय पर अभी शोध होना था, स्वामी जी उसके परिणामों की बात कर गए थे। चिकित्सा वैज्ञानिकों से रहा न गया। पूछ लिया – आपको इस विषय की इतनी गहन जानकारी कैसे हुई? पता चला कि स्वामी जी ने तो मंच से उतना ही कहा था, जितना उन्हें सपने में उनके गुरू स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने बतलाया था। यह चमत्कार कैसे हुआ? स्वामी निरंजन कहते हैं कि यह योगनिद्रा का परिणाम है। दरअसल, उन्होंने अपने गुरू से सारी शिक्षाएं योगनिद्रा में ही पाई थी।     

इन तथ्यों से समझा जा सकता है कि पूरे मनोयोग से और नियमित प्रत्याहार की शक्तिशाली साधना करने वाले किस तरह रूपांतरित हो जाते हैं। मौजूदा बड़े राजनेताओं में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी घोषित तौर से प्रत्याहार की साधना करते हैं। तभी वे दोनों चौबीस घंटो में बमुश्किल तीन-चार घंटे ही नींद लेकर भी ऊर्जावान व संयमित बने रहते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)     

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