महर्षि योगी के यौगिक शांतिदूत!

किशोर कुमार

बीसवीं सदी के महान योगी, भावातीत ध्यान योग और वैदिक शिक्षा के प्रणेता महर्षि महेश योगी की 12 जनवरी को 106वीं जयंती है। उनकी जयंती दुनिया भर में फैले महर्षि संस्थानों के साथ ही उनके अनुयायी ज्ञान युग दिवस के रूप में मनाते हैं। इस बार उस महान योगी की जयंती ऐसे वक्त पर मनाई जानी है, जब उनका भावातीत ध्यान योग अमेरिकी अखबारों की सुर्खियां बंटोर रहा है। दरअसल, भावातीत ध्यान और भावातीत ध्यान – सिद्धि सूत्र पर कोई सत्रह वर्षों के गहन व व्यापक फलक पर किए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों और अध्ययनों के उत्साहजनक नतीजे सामने आए हैं। उसके मुताबिक, सामूहिक चेतना का विकास करके राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति की स्थापना की जा सकती है। अमेरिका स्थित महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के मुख्यत: तीन वैज्ञानिकों की अगुआई में विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों के सहयोग अध्ययन व अनुसंधान किए गए थे।        

हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब महर्षि योगी की यौगिक विधियां विज्ञान की कसौटी पर खरी उतरी हैं। भावातीत ध्यान, सिद्धि कार्यक्रम और यौगिक उड़ान जैसी योग विधियों पर 32 देशों के 235 विश्वविद्यालयों  तथा स्वतंत्र शोध संस्थानों में अलग-अलग समय में सात सौ से अधिक वैज्ञानिक शोध व अनुसंधान करके पाया जा चुका है कि इनके अभ्यास से व्यक्ति की चेतना में प्राकृतिक नियमों की सत्ता अपनी पूर्णता में जागती है। तब वह वही काम करता है, जो धर्मानुकूल है।

वैसे, वैज्ञानिक अध्ययनों और अपनी साधना के अनुभवों के आधार पर महर्षि महेश योगी ने तो सात दशक पहले ही कह दिया था कि किसी भी देश में सामूहिक चेतना का विकास करके शांति स्थापित की जा सकती है। यही काम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी संभव है। वे कहते थे कि जिस देश में वहां की जनसंख्या एक एक प्रतिशत वर्गमूल के बराबर भावातीत ध्यान के अभ्यासी यौगिक उड़ान का सामूहिक रूप से अभ्यास करते हैं, वहां की सामूहिक चेतना में सतोगुण बढ़ता है। बीमारियों, दुर्घटनाओं और हिंसक वारदातों में कमी आती है। साथ ही अर्थव्यवस्था में मजबूती और राजनीति में शुचिता होती है। यदि इन यौगिक अभ्यासों के साथ वैदिक अनुष्ठान भी हो तो सोने पे सुहागा।

ऋग्वेद की उद्घोषणा है कि ज्ञान चेतना में निहित है और योग विज्ञान कहता है कि चेतना बहुआयामी है। यानी हमारा ज्ञान का स्तर हमारी चेतना की गुणवत्ता पर निर्भर है। हम किसी चीज को किस रूप में देखते हैं, यह हमारी चेतना की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। तुलसीदास ने भी कहा है – जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। लिहाजा चेतना ही जीवन की प्रमुख प्रेरक शक्ति है। योगी कहते हैं कि चेतना कों संभाल लेने से बाकी सब कुछ संभल जाएगा। पर चेतना व्यवस्थित हो कैसे? योगियों से लेकर वैज्ञानिकों तक का मत प्रकारांतर से एक जैसा रहा है कि योग ही है चेतना का विज्ञान।  

भारतीय योगी सदियों से चेतना को व्यवस्थित करने के लिए अपने अनुभवों के आधार पर योग-सूत्रों को परिभाषित करके बतलाते रहे हैं। पर बीसवीं सदी के योगियों में महर्षि योगी की यौगिक विधियां चेतना को व्यवस्थित करने के लिहाज से समाज को दिया गया बड़ा उपहार है। ये विधियां दुनिया भर के वैज्ञानिकों को चमत्कृत करती रहती है। तभी उन यौगिक विधियों खासतौर से भावातीत ध्यान योग पर दुनिया के अनेक देशों में अध्ययन और अनुसंधान जारी रहता है। उसी का नतीजा है ताजा शोध प्रबंध। वर्ल्ड जर्नल ऑफ साइंस में प्रकाशित यह शोध पत्र भावातीत ध्यान, सिद्धि सूत्र और यौगिक उड़ान पर पूर्व में हुए अनुसंधानों से ज्यादा व्यापक है अर्थपूर्ण है। शोधकर्त्ताओं में एक डॉ डेविड ऑरमे जॉनसन का दावा है कि इन यौगिक विधियों का बड़े समूह में अभ्यास कराया गया तो राष्ट्रीय स्तर पर तनाव घट गया। पर समूह को छोटा किया जाने लगा तो उसी अनुपात में तनाव बढ़ता गया। इससे साफ हो गया कि यौगिक समूह प्रभाव पैदा कर रहा था।  

महर्षि महेश योगी ने साठ के दशक में पश्चिमी देशों में जिस “भावातीत ध्यान” का डंका बजाया था, उसका आधार मुख्यत: प्रत्याहार ही था। उसके साथ मंत्र योग का समन्वय करके उसे शक्तिशाली बनाया गया था। विभिन्न कारणों से अवसाद में डूबे पश्चिमी दुनिया के युवाओं को भावातीत ध्यान से इतने फायदे मिले कि वह अवसाद से उबारने की यौगिक दवा बन गई थी। इससे चिकित्सा विज्ञानी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके थे। नतीजा हुआ कि दुनिया भर में भावातीत ध्यान के विभिन्न रोगों में प्रभावों पर शोध किए जाने लगे थे। शोधों के सकारात्मक नतीजों का ही असर है कि कोरोना महामारी के कारण अवसादग्रस्त लोगों को योगनिद्रा की तरह ही भावातीत ध्यान भी खूब भा रहा है।

महर्षि महेश योगी वैसे तो भावातीत ध्यान की खूबियां लोगों के मन-मिजाज को ध्यान में रखकर अलग-अलग तरह से गिनाते थे। पर एक बात सभी से कहते थे – “स्वर्ग का साम्राज्य तुम्हारे अंदर है। भावातीत ध्यान के जरिए उसे हासिल करो। फिर सब कुछ प्राप्त हो जाएगा।“ महर्षि महेश योगी को जानने वालों को याद ही है कि भावातीत ध्यान को लेकर इंग्लैंड के प्रसिद्ध रॉक बैंड ’द बीटल्स’ के कलाकारों की दीवानगी किस कदर बढ़ गई थी। तभी वे साठ के दशक में ध्यान सीखने महर्षि महेश योगी के ऋषिकेश स्थित आश्रम पहुंच गए थे। आज भी भारत सहित दुनिया के 126 देशों में इस ध्यान साधना की मजबूत उपस्थिति बनी हुई है। अब तो वैज्ञानिक इसे क्वांटम मैकेनिक्स औऱ थर्मोडाइनोमिक्स से जोड़कर देखने लगे हैं।

भावातीत ध्यान योग की उत्पत्ति की कहानी रोचक है। आजकल भूधंसाव को लेकर उत्तराखंड का जोशीमठ चर्चा में है। महर्षि योगी कभी वहीं के ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य रहे स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के शिष्य थे। अपने गुरूदेव के महाप्रयाण के बाद उत्तरकाशी की गुफा में गहन ध्यान साधना में थे तो कुछ अनुभूतियां प्राप्त हुईं। उसे उन्होंने भावातीत ध्यान यानी ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन (टीएम) कहा। पर यह योग विधि पहली बार आम जनता को उपलब्ध हुई केरल में। वहीं प्रसिद्ध वैरिस्टर एएन मेनन और उनकी पत्नी ने महर्षि जी से दीक्षा ली और योग विधियां सीखी थी। खैर, अब समय आ गया है कि अपने देश में महर्षि जी की यौगिक विधियों को व्यापक रूप से अभ्यास में लाने के लिए हर स्तर पर प्रयास होना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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