नवरात्रि और मंत्रयोग

किशोर कुमार

चैत्र नवरात्रि का पावन पर्व इस महीने 22 मार्च से शुरू हो रहा है और 30 मार्च को रामनवमी के साथ ही समापन होगा। यह संभवत: पहला मौका है जब चैत्र नवरात्रि को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने ऐलान कर दिया है कि नवरात्रों के दौरान राज्य में जिला स्तर से लेकर प्रखंड स्तर तक एक-एक मंदिर में दुर्गासप्तशती का पाठ कराया जाएगा और रामनवमी के दिन रामायण पाठ होगा। इस कार्य के लिए प्रत्येक जिला के लिए एक-एक लाख रूपए का आवंटन किया गया है। राज्य सरकार का कहना है कि यह सांस्कृतिक आयोजन है और इस पर किसी को क्यों आपत्ति होनी चाहिए। दूसरे धर्मों के आयोजनों पर भी तो सरकार के पैसे खर्च होते हैं। खैर, यह विवाद अपनी जगह। इस लेख में तो केवल मंत्रों की वैज्ञानिकता और उसके लाभों की चर्चा होनी है।       

हम सब जानते हैं कि दुर्गासप्तशती मार्कण्डेय पुराण की सबसे बड़ी देन है। इसमें कुल सात सौ श्लोकों में भगवती दुर्गा के चरित का वर्णन किया गया है। वैसे तो सामान्य जनों के लिए दुर्गासप्तशती पूजा-पाठ का एक ग्रंथ है। पर मंत्र विज्ञान के आलोक में व्याख्या हो तो पता चलता है कि यह शक्ति की आराधना का अद्भुत ग्रंथ है। शास्त्रों में शक्ति की महिमा जगह-जगह मिलती है। श्रुति और स्मृति आधारित ग्रंथों में भिन्नता दिखती है। पर अर्थ नहीं बदलता। ऋग्वेद के अनेक मंत्रों में इस शक्ति से संबंधित स्तवन मिलते हैं। उनमें इस शक्ति को समग्र सृष्टि की मूल परिचालिका बतलाकर विश्व जननी के रूप में स्तुति की गई है। इस शक्ति के द्वारा अनेक मौकों पर देवताओं को त्राण मिला और तभी से देवी सर्वविद्या के रूप में पूजित होती आ रही हैं।

इसी तरह शास्त्रों में राम नाम की शक्ति का उल्लेख भी जगह-जगह है। कुछ प्रचलित कथाएं भी हैं। जैसे, कबीरदास ने अपने पुत्र कमाल को तुलसीदास के पास भेजा। तुलसीदास ने कमाल के सामने ही तुलसी के एक पत्ते पर राम नाम लिखा और उस पत्ती का रस पांच सौ कुष्ठ रोगियों पर छिड़क दिया। कमाल के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि सारे कुष्ठ रोगी ठीक हो गए थे। फिर कबीरदास ने कमाल को सूरदास के पास भेजा। सूरदास ने कमाल को नदी में बहती एक लाश को उठा लाने को कहा। कमाल आज्ञा का पलन किया और लाश ले आया। सूरदास ने उस लाश के एक कान में राम कहा और लाश में प्राणों का समावेश हो गया था। पांडवों का लाक्षागृह जलकर राख हो गया। पर पांडव जले नहीं। इसलिए कि उन्हें रामनाम में अटूट श्रद्धा थी। राक्षसों ने हनुमान की पूंछ में आग लगा दी थी। किन्तु वे जले नहीं। इसलिए का राम में अदभुत विश्वास था।

सच है कि मंत्रयोग का अपना स्वतंत्र विज्ञान है। शब्द तत्व की ऋषियों ने ब्रह्म की संज्ञा दी है। शब्द से सूक्ष्म जगत में जो हलचल मचती है, उसी का उपयोग मंत्र विज्ञान में किया गया है। ऋषियों ने इसी विद्या पर सबसे अधिक खोजें की थीं। तभी यह विद्या इतनी लोकप्रिय हो पाई थी कि जीवन के हर क्षेत्र में इसका उपयोग किया जाता था। जल की वर्षा करने वाले वरूणशास्त्र, भयंकर अग्नि उगलने वाले आग्नेयास्त्र, संज्ञा शून्य बनाने वाले सम्मोहनशास्त्र, लकवे की तरह जकड़ने वाले नागपाश, इंजन, भाप, पेट्रोल कि बिना आकाश, भूमि और जल में चलने वाले रथ, सुरसा की तरह शरीर का बड़ा आकार करना, हनुमान की तरह मच्छर के समान अति लघु रूप धारण करना, समुद्र लांघना, पर्वत उठाना, नल की तरह पानी पर तैरने वाले पत्थरों का पुल बनाना आदि अनेकों अद्भुत कार्य इसी मंत्र शक्ति की साधना से किए जाते थे।

वेदों के मुताबिक नाद सृष्टि का पहला व्यक्त रूप है। अ, ऊ और म इन तीन ध्वनियों के योग से ऊं शब्द की उत्पत्ति हुई। ऋषियों और योगियों का अनुभव है कि इस मंत्र के जप से बहिर्मुखी चेतना को अंतर्मुखी बनाकर चेतना के मूल स्रोत तक पहुंचा जा सकता है। आधुनिक विज्ञान भी इस बात को स्वीकार रहा है। आजकल दुनिया भर में आशांत मन को सांत्वना प्रदान करने के लिए ध्यान योग पर बहुत जोर है। पर चित्त-वृत्तियों का निरोध किए बिना ध्यान कैसे घटित हो? अष्टांग योग में इस स्तर पर पहुंचने के लिए क्रमिक योग साधनाओं का सुझाव दिया जाता है। पर मंत्रयोग से राह थोड़ी छोटी हो सकती है। कहा गया है – मननात् त्रायते इति मंत्र: यानी मंत्र वह है, जो मन को मुक्त कर देता है। स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं कि जिस प्रकार प्रत्येक विचार से एक रूप जुड़ा होता है, उसी प्रकार प्रत्येक रूप से एक नाद, स्पंदन या ध्वनि जुड़ी होती है। उसे ही मंत्र कहते हैं। हम जिस संसार को जानते हैं, उसका सभी स्तरों पर निर्माण मंत्रों या ध्वनि-स्पंदनों द्वारा हुआ है।

आधुनिक युग में कोई भी व्यक्ति अपनी प्राचीन मान्यताओं को केवल विश्वास के आधार पर मानने को तैयार नहीं है। इसलिए मंत्रों पर वैज्ञानिक अनुसंधान समय की मांग है। दुनिया भर में इस दिशा में कार्य किए जा रहे हैं और सबके परिणाम शास्त्रों के अनुरूप ही हैं। स्पेन की राजधानी मैड्रिड में कुछ साल पहले मंत्र के प्रभावों को लेकर बड़ा शोध हुआ था। एक हॉल में एक हजार लोगों को बैठाया और महामृत्युंजय मंत्र का जप करने का निर्देश दिया। दूसरी ओर दूसरी तरफ वैज्ञानिकों को निर्देश दिया कि वे पांच सौ क्वांटम मशीनों से मंत्रों की फ्रिक्वेंसी को मानिटर करें। मंत्रोच्चारण के प्रभाव से मशीनों में कंपन शुरू हो गया। वैज्ञानिकों की आंखें खुली रह गईं जब उन्होंने देखा कि मंत्र की शक्ति से फ्रिक्वेंसी का विशाल फील्ड तैयार हो चुका है।

अपने देश में अगले तीस सालों में अल्जाइमर्स के रोगियों की संख्या में तीन गुणा इजाफा होने की आशंका है। तमाम वैज्ञानिक खोजों के बावजूद कारगर इलाज संभव नहीं हो सका है। मंत्रयोग की शक्ति नई राह दिखा रही है। ऐसे में वैज्ञानिक तथ्यों को धर्म की चाशनी में लपेट कर राजनीति करना उचित नहीं। इसका खामियाजा हम पहले ही भुगत चुके हैं। सदियों पुराने ज्ञान को मिट्टी में मिला चुके हैं। सरकार यदि मंत्रयोग की शक्ति से जनता को अवगत कराने के मामले में वाकई गंभीर है तो उसे इस काम के लिए योग संस्थानों की मदद करनी चाहिए, जो मंत्रयोग की शक्ति को सही तरह से परिभाषित करने में सक्षम हैं। ऐसी संस्थाएं यदि मंत्रयोग की शक्ति से जनता को अवगत कराएंगी तो उसकी सार्थकता होगी। किसी को कोई संदेह भी न रहेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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