इस मर्ज की दवा है योग

भारत में मधुमेह पर पहली बार वैज्ञानिक शोध करने वाले परमहंस सत्यानंद सरस्वती कहते थे, “योग और औषधि के तालमेल से हम एक नए और बेहतर विश्व का निर्माण कर सकते हैं, जिसमें हमारी शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और अधिमानसिक आवश्यकताओं पर पूरा ध्यान दिया जा सकेगा। योग और अन्य चिकित्सा-पद्धतियां एक दूसरे की पूरक हैं। वे परस्पर विरोधी नहीं हैं। यदि दवाओं के साथ योग का समन्वय किया जाए तो यह मधुमेह के निदान में एक शक्तिशाली क्रिया होगी।”

किशोर कुमार

एक तरफ कोरोना की मार तो दूसरी तरफ कहर बरपाता मधुमेह। योग की जन्मभूमि में यह हाल है, जबकि वैज्ञानिक शोधों से भी पता चल चुका है कि मधुमेह से बचाव में योग की बड़ी भूमिका है। सफलता की कहानियां भरी पड़ी हैं कि किस तरह समन्वित योग यानी षट्कर्म, आसन, प्राणायाम और सजगता के नियमित अभ्यासों से दो महीनों के भीतर प्राकृतिक रूप से शरीर में इंसुलिन बनने लगा और इंसुलिन के इंजेक्शन से मुक्ति मिल गई। बावजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 7.7 करोड़ लोग इस बीमारी के शिकार हैं। इतना ही नहीं, वैश्विक पैमाने पर हर छठा भारतीय व्यक्ति इस रोग की गिरफ्त में हैं। यह चिंताजनक है।

पूरे देश में आजकल बहस चल रही है कि बीमरियों के इलाज में कौन-सी पैथी बेहतर या कारगर। पर विशेषज्ञ जानते हैं कि हर पैथी, हर उपचारात्मक विधियों की सीमाएं हैं। यह बात योग के साथ भी लागू है। हम जानते हैं कि योग विशुद्ध रूप से रोग-निवारण की पद्धति नहीं है। तभी मधुमेह के यौगिक उपचार के दौरान भी आधुनिक चिकित्सा पद्धति की दवाओं की जरूरत बनी रहती है। पर यह भी सत्य है कि अनेक मामलों में यौगिक क्रियाएं आधुनिक चिकित्सा प्रणाली की सीमाओं को लांघ जाती है। बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस सत्यानंद सरस्वती ने तो साठ के दशक में ही कहा था – “योग और औषधि के तालमेल से हम एक नए और बेहतर विश्व का निर्माण कर सकते हैं, जिसमें हमारी शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और अधिमानसिक आवश्यकताओं पर पूरा ध्यान दिया जा सकेगा।“  वे बार-बार कहते थे कि योग और अन्य चिकित्सा-पद्धतियां एक दूसरे की पूरक हैं। वे परस्पर विरोधी नहीं हैं।

तभी उन्होंने सत्तर के दशक में उड़ीसा में संबलपुर के बुर्ला स्थित मेडिकल कालेज के साथ मिलकर मधुमेह से बचाव के लिए यौगिक अनुसंधान किया था। इसके नतीजे ऐसे रहे कि चिकित्सा विज्ञान भी चौंका। साबित हुआ कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति की सहायता लेकर चालीस दिनों के यौगिक अभ्यास से इंसुलिन लेने वाले मधुमेह रोगियों को पहले इंसुलिन से और बाद में मधुमेह से ही मुक्ति मिल सकती है। बिहार योग की इस पद्धति से बड़ी संख्या में मधुमेह रोगी स्वस्थ्य होने लगे तो भारत के विभिन्न योग संस्थानों से लेकर विदेशों में भी इस पद्धति को मधुमेह रोगियों पर आजमाया गया। विवेकानंद योग केंद्र के प्रमुख एचआर नगेंद्र ने अपने कन्याकुमारी स्थित केंद्र में सबसे पहले 15 मधुमेह रोगियों पर यौगिक प्रभावों को देखा और पाया कि इंसुनिल पर निर्भर मरीज ठीक हो गए थे। झारखँड के बोकारो इस्पात संयंत्र में एके श्रीवास्तव नाम के एक वास्तुविद हुआ करते थे। उनका मधुमेह इतना गंभीर था कि एक दिन में 40-50 यूनिट इंसुलिन लेना पड़ता था। यौगिक उपायों से दवाओं पर निर्भरता कम होती गई और कुछ महीनों बाद से ब्लड शुगर सामान्य हो गया था।

योग पब्लिकेशन ट्रस्ट ने इन अध्ययनों के आधार पर सन् 1977 में एक पुस्तक प्रकाशित की थी – “यौगिक मैनेजमेंट ऑफ आस्थमा एंड डायबेट्स।” उसमें बताया गया कि मधुमेह के मरीजों को प्रारंभिक एक महीना हर सप्ताह तक कौन-सी यौगिक क्रियाएं करनी हैं और दवाओं व भोजन का प्रबंधन किस प्रकार करना है? इसके बाद बिना दवा लिए रक्त शर्करा यानी ब्लड शुगर सामान्य हो जाने के बाद किन योग विधियों को अपने जीवन का हिस्सा बना लेना है। शुद्धिकरण की क्रियाओं में शंखप्रक्षालन तथा कुंजल व नेति; आसनों में पश्चिमोत्तानासन, अर्द्ध मत्स्येंद्रासन, भुंजगासन, धनुरासन, सर्वांगासन और हलासन; प्राणायामो में नाड़ी शोधन, भ्रामरी और भस्त्रिका और ध्यान के अभ्यासों में योगनिद्रा व अजपाजप करने की सलाह दी गई है। पर साप्ताहिक अभ्यास में पवनमुक्तासन (सत्यानंद योग पद्धति) पर बल दिया गया है। ऐसा इसलिए कि कभी योगाभ्यास नहीं करने वाले मरीजों को योग करने योग्य तैयार किया जा सके। वैसे यह आसन वातरोग, गठिया, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग के मरीजों को काफी फायदा पहुंचाता है।                                                    

मधुमेह की रोकथाम में शंखप्रक्षालन और कुंजल क्रियाओं की बड़ी भूमिका होती है। आमतौर पर अंतड़ियों में कचरा और मल भरा रहता है उसके भीतरी दीवारों पर इकट्ठा होता जाता है। यह सूखता जाता है और अति कठोर होता जाता है। यह खून को विषाक्त बनाता है। इन यौगिक क्रियाओं से अन्न पथ की पूर्ण सफाई हो जाती है और अधिक ग्लुकोज का उपभोग न किया जाए तो ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। कुंजल क्रिया से अधिक मात्रा में खाए हुए भोजन और शरीर में सड़े भोजन से बचाव होता है। मधुमेह में तंत्रिका तंत्र को क्षति होती है। डायबिटिक पेरिफेरल न्यूरोपैथी इसी वजह से होती है। आसन का प्रभाव यह है कि तंत्रिका आवेगों और ग्रंथि क्षेत्रों में रक्त के समुचित वितरण हो जाता है। इससे मधुमेह से संबंधित अवयवों की क्रियाएं समायोजित होती हैं। प्राणायाम से शरीर के उन भागों में ऊर्जा पहुंचने लगती है, जहां इसकी कमी की वजह से रोग में इजाफा हो रहा होता है। मस्तिष्क से ले कर पैक्रियाज तक को फायदा पहुंचता है।  

अंतर्राष्ट्रीय योग शिक्षा और अनुसंधान केन्द्र, पुदुचेरी के अध्यक्ष योगाचार्य डॉ. आनंद बालयोगी भवनानी के मुताबिक इन्स और विन्सेन्ट की एक व्यापक समीक्षा में योग से कई जोखिम सूचकों में लाभदायक बदलाव पाए गए। जैसे ग्लूकोस सहिष्णुता, इंसुलिन संवेदनशीलता, लिपिड प्रोफाइल, एन्थ्रोपोमेट्रिक विशेषताओं, रक्तचाप, ऑक्सीडेटिव तनाव,  कोग्यूलेशन प्रोफाइल, सिम्पेथेटिक एक्टिवेशन और पलमोनरी फंक्शन में इसे काफी फायदेमंद पाया गया। योगाभ्‍यास से मधुमेह के रखरखाव और उसकी रोकथाम में सहायता होती है तथा उच्‍च रक्‍तचाप और डिसलिपिडेमिया जैसी परिस्थितियों से बचाव होता है। लंबे समय तक योगाभ्‍यास करने से इन्‍सुलिन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है और शरीर के वजन या कमर के घेरे तथा इन्‍सुलिन संवेदनशीलता के बीच का नकारात्‍मक संबंध घट जाता है। 

गौर करने लायक बात यह है कि मधुमेह केवल जीवन-शैली से जुड़ी बीमारी नहीं रही, बल्कि प्रदूषण इस बीमारी को महामारी में तब्दील करने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के साथ ही प्रदूषित भोज्य पदार्थ इसकी जड़ में हैं। विश्वव्यापी शोधों से यह बात साबित हो चुकी है। पश्चिम के अनेक देश इस दिशा ठोस काम कर रहे हैं। पर भारत में इस दिशा में काम होना बाकी है। रिसर्च सोसाइटी फॉर डायबिटीज इन इंडिया ने इस दिशा में पहल की है। इस संगठन के झारखंड चैप्टर के अध्यक्ष डॉ एनके सिंह ने अध्ययनों के बाद विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है, जिसे सरकार को सौंपा जा चुका है। जाहिर है कि मधुमेह से बचना है तो योगमय जीवन तो अपना ही होगा। साथ ही रसायनयुक्त भेज्य पदार्थों से भी बचना होगा।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अभी मधुमेह का रामबाण इलाज नहीं ढ़ूंढ़ पाया है। इसुलिन ही सहारा है। पर योगमय जीवन हो तो इंसुलिन पर से निर्भरता समाप्त भी हो जा सकती है। हमने देखा कि कोरोना संक्रमण के कारण मधुमेह के मरीजों पर किस तरह कहर बरपा। यह सिलासिला आज भी जारी है। यदि हमारे जीवन में योग के लिए थोड़ी भी जगह होती तो मधुमेह रोगियों के लिए कोरोना महामारी इतनी बड़ी चुनौती न बनी होती।  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)    

: News & Archives