सूर्योपासना कर ली, अब बारी सूर्य नमस्कार की

किशोर कुमार

आस्था का महापर्व छठ संपन्न हो गया। इस पर्व की शुरूआत कहां से हुई, कैसे हुई, इस पर बहुत लिखा-कहा जा चुका है। अब बात होनी चाहिए सूर्योपासना के यौगिक आयाम की, जो जीवन को सुखमय बनाने के लिए अमृत समान है। आप समझ गए होंगे। मैं बात करने जा रहा हूं सूर्य नमस्कार योग की, जिसे सूर्योपासना का ही विकसित रूप माना जाता है। भारतीय वांग्मय से हमें ज्ञात हो चुका है कि वैदिक काल से की जा रही सूर्योपासना ही छठ पूजा औऱ आधुनिक हठयोग की शक्तिशाली योगविधि सूर्य नमस्कार का आधार बनी थी। पर इतना जान भर लेना पर्याप्त नहीं है, बल्कि इस पुरानी योग पद्धति के विज्ञान को समझना भी महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर योगियों ने साबित किया कि सूर्य नमस्कार के अभ्यास से मानव प्रकृति का सौर पक्ष जागृत होता है। इससे चेतना के विकास के लिए जीवनदायिनी ऊर्जा मिल जाती है।

मैंने इस पूरे मामले को समझने के लिए देश-विदेश में सूर्य नमस्कार पर हुए वैज्ञानिक अध्ययनों और बीसवीं सदी के महान संत परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की दुनिया भर में स्वीकार्य पुस्तक “सूर्य नमस्कार” को आधार बनाया है। पहले जानते हैं कि अपने अध्ययनों के बाद वैज्ञानिक सूर्य नमस्कर योग को लेकर किस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। कोरोना महामारी के बाद खासतौर से भारत के युवा हृदयाघात के शिकार हो रहे हैं। कई युवा जान गंवा चुके हैं। अमेरिका के सैन जोश स्टेट यूनिवर्सिटी में भारतीय मूल के वैज्ञानिक भावेश सुंरेंद्र मोदी का शोध भी युवाओं पर ही आधारित है। उन्होंने छह एशियाई युवाओं पर शोध किया। यह जानने के लिए कि सूर्य नमस्कार हृदय रोगियों के लिए कितना कारगर है। वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से कोर्डियोरेस्पिरेटरी फिटनेस को ठीक रखा जा सकता है।

अपने देश में भी सूर्य नमस्कार को लेकर अध्ययन किए जाते रहते हैं। चेन्नई स्थित सत्यभाषा इंस्टीच्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नालॉजी के एल प्रसन्ना वेंकटेश ने अपने एक सहयोगी के साथ शोध किया तो पाया कि सूर्य नमस्कार अंतःस्रावी तंत्र (इंडोक्राइन सिस्टम) को व्यवस्थित रखता है। वरना, जीवन संकट में पड़ जाता है। यही वजह है कि सूर्य नमस्कार के अभ्यासियों को न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक पीड़ाओं से भी मुक्ति मिल जाती है। वैसे, टी. कृष्णमाचार्य, स्वामी शिवानंद, स्वामी कुवल्यानंद, परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती, कृष्णमाचार सुंदरराज अयंगर आदि नामचीन योगियों ने तो साठ के दशक में ही अपने अनुभवों के आधार पर कहा था कि सूर्य नमस्कार शारीरिक अवयवों में नवजीवन का संचार करता है। साथ ही वर्तमान जीवन पद्धति की मांगों व तनावों के बीच हमें क्रियाशील जीवन व्यतीत करने में सहायता प्रदान करता है।

परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने इस योग के प्रभावों को थोड़ा विस्तार से समझा। वे कहते थे कि सूर्य नमस्कार मुँहासा, फोड़े-फुंसियां, रक्ताल्पता, कम भूख लगना, दुर्बलता, स्थूलता, कम विकास होना, स्फीत शिरा, गठिया, सिरदर्द, दमा तथा फेफड़े की अन्य विकृतियाँ, पाचन संस्थ की व्याधियाँ, अपच, कब्ज, गुर्दे संबंधी व्याधियाँ, यकृत की क्रियाशील में कमी, निम्न रक्तचाप, मिर्गी, मधुमेह, त्वचा की बीमारियाँ (एक्जिा सोरायसिस, सफेद दाग), सामान्य सर्दी-जुकाम का बचाव, अन्तःस्रावी ग्रंथियों में असंतुलन, मासिक धर्म तथा रोगनिवृत्ति संबंधी समस्याएं, मानसिक व्यधियां (जैसे, चिंता, अवसाद, विक्षिप्त, मनोविकृति) इत्यादि बीमारियों से निजात दिलाता है।

हम जानते हैं कि शरीर के ऊर्जा संस्थानों में असंतुलन होना योग के दृष्टिकोण से अस्वस्थ होने का मुख्य कारण होता है। कोई व्यक्ति कितना ही बुद्धिमान् या व्यवस्थाप्रिय हो, यदि उसके ऊर्जा संस्थान सामान्य ढंग से क्रियाशील नहीं हैं तो उसे व्याधिग्रस्त होना ही है। सूर्य नमस्कार योग में इतनी शक्ति है कि उससे शारीरिक व मानसिक ऊर्जाओं में पुनर्संतुलन स्थापित हो जाता है। कोरोना महामारी और वायुमंडल में फैले प्रदूषण के कारण फेफड़े की बीमारी आम हो गई है। हर आयु वर्ग के लोग इस बीमारी से दो चार हो रहे हैं। चिकित्सा विज्ञानियों का मत है कि फेफड़ों की रचना खण्डों या उपखण्डों से हुई है। सामान्य श्वसन में शायद ही कोई सभी उपखण्डों का उपयोग करता हो । सामान्यतया फेफड़ों के केवल निम्न भाग ही उपयोग में आते हैं। ऊपरी हिस्से या तो कार्य करना बन्द कर देते हैं या उनमें उपयोग में लाई हुई वायु, कार्बन डाइ-ऑक्साइड तथा विषैली गैस जमा होती रहती हैं। ऐसा विशेषकर शहरवासियों तथा धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के फेफड़ों में पाया जाता है। ये विषैले पदार्थ फेफड़ों में वर्षों तक पड़े रह जाते हैं, जिससे श्वसन तथा अन्य शारीरिक संस्थानों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

इसी वैज्ञानिक तथ्यों को आधार बनाते हुए स्वामी सत्यानंद सरस्वती बतलाते रहे हैं कि श्वसन संस्थान के लिए यह योग कारगर है। दरअसल, सूर्य नमस्कार में प्रत्येक गति के साथ लयबद्ध गहन श्वसन प्रक्रिया स्वतः होती रहती है। इससे फेफड़ों में भरी हुई दूषित वायु पूर्णतः बाहर निकल जाती है और उनमें ताजी, स्वच्छ तथा ऑक्सीजन-युक्त वायु भर जाती है। विशेषकर ऐसा हस्तउत्तानासन की स्थिति में होता हैं, इसमें वक्ष भित्ति फैल जाती है। पादहस्तासन करते समय जब किंचित् बलपूर्वक श्वास छोड़ी जाती है, (ऐसा खुले मुँह से भी किया जा सकता है), तब यह श्वास शुद्धिकरण की शक्तिशाली विधि बन जाती है। सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने से फेफड़ों की सभी कोशिकाएँ फैलती हैं, उद्दीप्त होती हैं और स्वच्छ हो जाती हैं। रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। इस कारण शरीर, मस्तिष्क के ऊत्तकों एवं कोशिकाओं की क्षमता तथा ऑक्सीजनीकरण में वृद्धि होती है। सुस्ती से शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है। श्वसन-व्याधियाँ दूर होती हैं तथा वायु मार्ग का अवांछित श्लेष्मा भी समाप्त होता है। यह अभ्यास क्षय की तरह के ऐसे रोगों से बचाव करता है, जो फेफड़ों के कम उपयोग में लाए गये तथा निश्चल भागों में उत्पन्न होते हैं।

स्पष्ट है कि सूर्य नमस्कार ही एक ऐसी योगविधि है, जिसके अभ्यास में समय कम और लाभ कई मिल जाते हैं। इसके अभ्यास से न केवल मानसिक बल प्राप्त होता है, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है, शक्ति भी मिलती है। एक सूर्य नमस्कार से इतने साऱे लाभ मिलने के कारण ही शैक्षणिक संस्थानों का भी सूर्य नमस्कार पर ज्यादा जोर रहता है। अच्छी बात यह है कि छात्रों को भी यह खूब भाता है। यह तथ्य भी विज्ञानसम्मत है कि यदि किसी प्रकार की बाधा न हो तो सूर्य मंत्रों के साथ सूर्य नमस्कार करने से उसका असर द्विगुणित हो जाता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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