कोरोना के पहले और बाद में सहारा प्राणायाम है

चुनौती कोविड-19 संक्रमण तक ही सीमित नहीं है। कोविड-19 के प्रकोप से बच निकले अनेक लोग लाइलाज पल्मोनरी फाइब्रोसिस के शिकार हो रहे है। माना जा रहा है कि वेगस तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करके उपचार किया जा सकता है। प्रारंभिक अध्ययनों से पता चलता है कि प्राणायाम वेगस तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करने में सक्षम है। स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान इटली सरकार के सहयोग से इस मामले में अनुसंधान कर रहा है।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी प्रकारांत से योग विज्ञानियों के इस दावे को पुष्ट करता दिख रहा है कि प्राणायाम की असीमित शक्तियां कोविड-19 संक्रमण के दुष्परिणामों से निबटने में भी बेहद लाभकारी साबित हो सकती हैं। इस धारणा का आधार श्वसन तंत्र के मामले में पूर्व में हुए यौगिक अनुसंधानों के परिणाम औऱ कोविड-19 से संक्रमित अनेक मरीजों के फीडबैक है। तभी दुनिया के अनेक देशों में एक तरफ स्वस्थ्य लोगों से लेकर संक्रमित लोगों तक को प्राणायाम करने की सलाह दी जा रही है। वहीं दूसरी ओर कोरोना संक्रमण के बाद उत्पन्न समस्याओं से निबटने में प्राणायाम की भूमिकाओं को लेकर वैज्ञानिक परीक्षण किए जा रहे हैं।

बिहार योग विद्यालय ने कोरोनाकाल में प्राणायाम की महत्त्ता को बताने के लिए अपने अनुसंधानों की विस्तृत व्याख्या करते हुए एप्प आधारित ऑडियो-वीडियो जारी किया था। देखते-देखते एक सौ देशों में बडी संख्या में लोगों ने उस वीडियों को देखा। उस वीडियो में प्राणायाम की उन आठ विधियों का जिक्र है, जो कोरोनाकाल के लिहाज से जरूरी हैं।

फोटो : स्वामी निरंजनानंद सरस्वती

कोविड-19 के दुष्प्रभाव जिन-जिन रूपों में सामने आ रहे हैं, उससे साफ है कि चुनौती कोविड-19 संक्रमण तक ही सीमित नहीं है। बड़ी चुनौती यह भी है कि कोविड-19 के संक्रमण से बच निकल लोगों के शरीर में उथल-पुथल हो चुके महत्वपूर्ण तंत्रिका-तंत्र और ग्रंथियों को किस तरह दुरूस्त किया जाए। इस उथल-पुथल की मुख्य परिणति पल्मोनरी फाइब्रोसिस के रूप में देखने को मिल रही है। फेफड़ों के उत्तक क्षतिग्रस्त होकर मोटे और कड़े हो जाने के कारण यह बीमारी हो रही हैं। माना जा रहा है कि वेगस तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करके पल्मोनरी फाइब्रोसिस के साथ ही कई बीमारियों का उपचार किया जा सकता है। इसलिए कि यह तंत्रिका मानव शरीर के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को विनियमित करने में मदद करता है, जिनमें हृदय गति, रक्तचाप, पसीना, पाचन और यहां तक कि बोलना भी शामिल है।

आर्ट ऑफ लिविंग की सुदर्शन क्रिया को श्वसन तंत्र को दुरूस्त रखने के लिए प्रभावी माना जाता है, जिसका सीधा सकारात्मक असर मस्तिष्क, हृदय और फेफड़ों पर होता है। इस संबंध में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली और निमहांस, बंगलुरू में अध्ययन किए गए थे।

श्रीश्री रविशंकर

कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के मामले में जिस तरह आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के हाथ बंधे हुए हैं और बेसब्री से विश्वसनीय वैक्सीन की प्रतीक्षा की जा रही है। लगभग वैसी ही स्थिति कोविड-19 के कुप्रभावों को लेकर भी है। इसलिए जिस तरह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए या संक्रमण के शुरूआती दौर में योगाभ्यासों विशेष तौर से नेति, कुंजल और कपालभाति जैसी शुद्धि क्रियाएं और प्राणायाम की अनेक विधियों के महत्व को दुनिया भर में स्वीकार किया गया है। लगभग वैसी ही स्थिति कोविड-19 संक्रमण के कुपरिणामों के मामले में भी है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान पल्मोनरी फाइब्रोसिस के विश्वसनीय इलाज के लिए वर्षों से प्रयासरत है। पर फिलहाल वैकल्पिक दवाओं का ही सहारा है।

बीते 30-40 सालों में हमने दुनियाभर के विभिन्न जर्नल्स में इस विषय में पांच से अधिक रिसर्च पेपर्स प्रकाशित किए हैंहम योग के माध्यम से एविडेंस बेस्ड डिलिवरी सिस्टम बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हमने इस दौरान कई रिसर्च डिजाइन किए हैं, जिन्हें वैश्विक मान्यता मिल रही है

डॉ एचआर नगेंद्र, संस्थापक, स्वामी विवेकानंद योग अनसुंधान संस्थान, बेंगलूरु

पल्मोनरी फाइब्रोसिस जैसे लक्षणों वाली बीमारियों में प्राणायाम के लाभ लंबे समय से देखे जाते रहे हैं। दुनिया भर के अनेक चिकित्सा और यौगिक संस्थानों में ऐसे मामलों में अध्ययन किए गए तो सकारात्मक नतीजे मिले थे। इसी आधार पर माना जा रहा है कि कोविड-19 के बाद के दुष्परिणामों से निबटने में भी प्राणायाम की भूमिका हो सकती है। माना जा रहा है कि प्राणायाम के अभ्यास से वेगस तंत्रिका तंत्र उत्तेजित होगा तो कई समस्याएं स्वत: दूर होंगी। इसी अनुमान के वैज्ञानिक परीक्षण के लिए बंगलुरू स्थित स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान ने इटली और बेल्जियम के संस्थानों से हाथ मिलाया है। बीते 15 अगस्त से कोई एक हजार लोगों पर अध्ययन किया जा रहा है।

जर्मनी में अनुसंधान के लिए मशहूर हीडलबर्ग यूनिवर्सिटी में भी पल्मोनरी फाइब्रोसिस के उपचार में प्राणायाम के प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है। इस साल मार्च में ही यह अध्ययन पूरा हो जाना था। पर अब संभवत: कोविड-19 से संक्रमित मरीजों के पल्मोनरी फाइब्रोसिस संबंधी मामलों में भी प्राणायाम का प्रभाव देखा जा रहा है। दूसरी तरफ अमेरिका के लंग हेल्थ इंस्टीच्यूट से लेकर अनेक चिकित्सा संस्थानों में अनुभव किया जा चुका है कि इस बीमारी में प्राणायाम की महती भूमिका होती है। इसलिए उन संस्थानों की ओर से खुलकर प्राणायाम की सिफारिश की जा रही है।

पल्मोनरी फायब्रोसिस फेफड़ों से संबंधित गंभीर रोग है. यह तब होता है जब फेफड़ों के उत्तक क्षतिग्रस्त होकर मोटे और कड़े हो जाते हैं. ये कड़े और मोटे उत्तक फेफड़ों के लिए कार्य करना मुश्किल बना देते हैं. जैसे-जैसे समस्या गंभीर होती जाती है, रोगी की सांसे उखड़ने लगती हैं और सांस लेना दूभर हो जाता है

आधुनिक युग के वैज्ञानिक संत तो कोविड-19 के दस्तक देने के समय से ही कहते रहे हैं कि फेफड़े को स्वस्थ्य रखकर ही कोरोना महामारी से लड़ा जा सकेगा और बाद के दुष्परिणामों से भी मुकाबला किया जा सकेगा। वे ऐसा अपने लंबे अनुभवों और योग शास्त्रों में उल्लिखित बातों को ध्यान में रखकर कहते रहे हैं। भारत के शीर्ष के दस योग संस्थानों ने प्राणायाम के प्रभावों को लेकर प्रकारांत से एक जैसी बातें की। बिहार योग विद्यालय, मुंगेर, कैवल्यधाम, लोनावाला, शिवानंद आश्रम, ऋषिकेश, द योगा इस्स्टीच्यूट, मुंबई, कृष्णमाचार्या योग मंदिरम, चेन्नई, पतंजलि योगपीठ आदि योग संस्थानों ने अपने पूर्व के वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर कोरोनाकाल के लिए भी प्राणायाम के महत्व पर बल दिया। इस मामले में भारत सरकार का आयुष मंत्रालय भी पीछे न रहा।

https://www.youtube.com/watch?v=AhNYD35k5vs

वैज्ञानिक तथ्यों के आलोक में यह जानना जरूरी है कि प्राणायाम का इतना महत्व क्यों है? योग रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक, सामान्य श्वास में ली गई पांच सौ मिली लीटर हवा में ऑक्सीजन का अनुपात 20.95 फीसदी, नाइट्रोजन का 79.01 फीसदी और कार्बन डायऑक्साइड का 4 फीसदी रहता है। पांच सौ मिली लीटर में डेड़ सौ मिली लीटर हवा श्वास नलिकाओं में रहती है। बाकी हवा वायु कोशों में पहुंचती है। उससे ऑक्सीजन रक्त में जाता है और रक्त से कार्बन डायऑक्साइड हवा में आता है। पर व्यवहार रूप श्वास के जरिए इतनी हवा अंदर जाती नहीं। महाराष्ट्र के लोनावाला स्थित कैवल्यधाम योग संस्थान में 204 स्वस्थ्य लोगों की श्वसन क्रिया का अध्ययन किया गया था। पाया गया कि उनमें से 174 लोगों की नासिकाओं में श्वास का असामान्य प्रवाह था। स्पष्ट है कि यौगिक श्वसन के अभाव में फेफड़े के काम करने की क्षमता बेहद कम होती है। यदि किसी बीमारी की वजह से फेफड़ा क्षतिग्रस्त हो गया तो मुश्किलें बढ़ जाती हैं। समस्याएं यहीं से शुरू हो जाती हैं।

वेगस तंत्रिका, तंत्रिका तंतुओं का एक गुच्छा है, जो मस्तिष्क से उदर तक निकलती है। यह मस्तिष्क, पेट, हृदय, यकृत, अग्न्याशय, गुर्दा, प्लीहा, फेफड़े और सभी अनैच्छिक शारीरिक प्रक्रियाओं के संचलन को नियंत्रित करती है। जब वेगस तंत्रिका अपनी क्षमता का सबसे उत्तम प्रदर्शन करने में सक्षम नहीं होती है, तो शरीर और दिमाग कई तरह के रोगों के लिए अतिसंवेदनशील हो जाते हैं

बीते चार दशकों में प्राणायाम के प्रभावों पर दुनिया भर में काफी अध्ययन किए गए। टेक्सास य़ूनिवर्सिटी न्यूरो वैज्ञानिक डॉ स्टीफन एलिएट ने अपने शोध से निष्कर्ष निकाला कि श्वास की गति का हृदय गति से सीधा संबंध है। उन्होंने इलेक्ट्रोमायोग्राफी की सहायता से प्रमाणित किया कि यौगिक श्वसन से हृदय को स्वस्थ रखा जा सकता है। योग रिसर्च फाउंडेशन के अध्ययनों के मुताबिक नाड़ी शोधन प्राणायाम से तनाव कम होता है। रक्तचाप सामान्य रहता है और फेफड़ों की शकित व क्षमता बढ़ती है। अमेरिका के बैचलर यूनिवर्सिटी के अनुसंधान के नतीजे भी कुछ ऐसे ही थे।

महाराष्ट्र के लोनावाला स्थित कैवल्यधाम योग संस्थान में 204 स्वस्थ्य लोगों की श्वसन क्रिया का अध्ययन किया गया था। पाया गया कि उनमें से 174 लोगों की नासिकाओं में श्वास का असामान्य प्रवाह था। स्पष्ट है कि यौगिक श्वसन के अभाव में फेफड़े के काम करने की क्षमता बेहद कम होती है। यदि किसी बीमारी की वजह से फेफड़ा क्षतिग्रस्त हो गया तो मुश्किलें बढ़ जाती हैं।

फाइल फोटो

श्वेताश्वर उपनिषद् कहा गया है कि ज शरीर योग की प्रक्रियाओं से गुजरता है, वह वृद्धावस्था, रोग और मृत्यु से मुक्त हो जाता है। इस तरह हम देखते हैं कि प्राणायाम स्वास्थ्य जीवन के लिए बहुमूल्य निधि है और यौगिक विधियों द्वारा ऐसी अवस्था पाई जा सकती है। इसलिए योग को अपने जीवन का अनिवार्य अंग और नियमित आदत बनाना समय की मांग है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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