शशांकासन का चमत्कार तो देखिए

किशोर कुमार

इस बार बात प्रमुख आसनों में एक शशांकासन की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में इसी शशांकासन की महत्ता बतलाते हुए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मानाने का प्रस्ताव मजबूती से रखा था और जिसे स्वीकार किया गया था। आपके मन में सवाल हो सकता है कि इतने दिनों बाद इस आसन की चर्चा की प्रासंगिकता क्या है? यह लेख पढ़ेंगे तो समझेंगे कि शशांकासन की चर्चा बिन शादी की शहनाई जैसी नहीं है।

इस आसन का सीधा संबंध जुड़ा हुआ है आज की ज्वलंत समस्या से। वह समस्या है क्रोध, तनाव और उसकी वजह से होने वाली नाना प्रकार की बीमारियां, मुख्यत: मायोकार्डियल इस्कीमिया। एक प्रकार का हृदयरोग। खास बात यह है कि यह रोग पुरूषों की तुलना में महिलाओं को कुछ ज्यादा ही हो रहा है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के जर्नल में इस संबंध में किए गए शोध को विस्तार से प्रकाशित किया गया है। कोविड-19 संक्रमण के शिकार लोगों को तो फेफड़ों के बाद सर्वाधिक हृदय का आघात पहुंचा। पर देश-विदेश में हुए अध्ययनों से पता चलता है कि तनाव और गुस्सा अन्य बीमारियों के साथ ही मायोकार्डियल इस्कीमिया का बड़ा कारण बन गया है। हद तो यह है कि कम उम्र के लड़के और लड़कियां भी इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं। इसकी वजहें कई हो सकती हैं।

आईए, इस समस्या को योग और अध्यात्म के दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करते हैं। गौतम बुद्ध कहते थे कि वैसे लोग अद्भुत होते हैं, जो दूसरों की भूल पर क्रोध करते हैं। जब भक्तों ने सवाल किया कि ऐसे क्रोधी अद्भुत किस तरह हुए तो गौतम बुद्ध ने कहा, अदभुत इसलिए कि भूल दूसरा करता है, दंड वह अपने को देता है। ओशो इस बात को विस्तार देते हुए कहते हैं कि क्रोध का मनोविज्ञान है कि क्रोधी व्यक्ति की पूरी उर्जा कुछ पाने जा रही थी और किसी ने उर्जा को रोक दिया। वह जो चाहता था, नहीं पा सका। जीवन में एक बात याद रखना चाहिए कि किसी भी वस्तु की चाहत इतनी तीव्र न होने पाए कि यह जीवन-मरण का प्रश्न बन जाए। थोड़े हल्के-फुल्के, खेलपूर्ण बनना जरूरी है। मैं नहीं कहता कि कोई इच्छा न करे – क्योंकि यह भीतर एक दमन बनेगा। मैं कह रहा हूं, इच्छा खेलपूर्ण हो। यदि इच्छा पूरी हो गई, तो अच्छा है। यदि पूरी नहीं हुई कि विचार उठना चाहिए कि शायद यह सही समय नहीं था; हम इसे अगली बार देखेंगे।

श्रीमद्भगवतगीता में क्रोध, लोभ, मोह आदि पर व्यापक चर्चा है। तीसरे अध्याय में कहा गया है कि जैसे अग्नि धुएं से, दर्पण धूल से और गर्भ झिल्ली से ढका होता है। वैसे ही ज्ञान कामना से ढका होता है। चिन्मय मिशन के संस्थापक स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने इस बात की व्याख्या करते हुए कहते थे कि कामना बुद्धि को आच्छादित करती है। जब कामना लोभ, स्वार्थपरता, सुखोपभोग आदि की लालसा भयंकर रूपों में प्रकट होती है तो यह तामसिक कामना ज्ञान को ढ़ंक लेती है। पर जब कामना किसी महान या शुभ वासना से उत्पन्न होती है तो यह सात्विक इच्छा बनती है। यद्यपि यह भी ज्ञान को आच्छादित करती है। पर यह अग्नि को ढंकने वाले धुएं के सदृश्य होती है। ऐसे में वायु का एक झोंका भी धुएं को हटाने और अग्नि को अपनी देदीप्यमान महिमा में प्रकट कर देने के लिए पर्याप्त होता है।

योगशास्त्र कहता है कि इंद्रियों को वश में करो, समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी। इसके लिए श्रीमद्भगवतगीता से लेकर पतंजलि योगसूत्र तक में अनेक विधियां बतलाई गई हैं। जैसा कि पहले कहा गया है कि कामना विवेक को आच्छादित करती है और उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न अंधकार से इंद्रियां, मन और बुद्धि भ्रमित होकर आत्म-घातक कार्य करने लगते हैं। इसलिए श्रीकृष्ण की सलाह है कि इंद्रियों को प्रारंभ में ही वश में करके इस पापी और ज्ञान व विज्ञान के नाशक काम (कामना) को मार डाल। कैसे? इस कैसे का जबाव भी श्रीकृष्ण देते हैं। वे कहते हैं – योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है, वह शास्त्र-ज्ञानियों से बढ़कर है और योगी कर्मियों से भी श्रेष्ठ है। इसलिए हे अर्जुन, ध्यान योगी बनो। स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती कहते थे कि दुर्बलताओं को शक्ति में, मूर्खता को बुद्धिमत्ता में और असफलताओं को सफलता में बदलने का यही सूत्र है।

पर अतिव्यस्त और समस्याओं में उलझे आज के आदमी के लिए ध्यान को प्राप्त होना कठिन हो जाता है। फिर जिसने ककहरा न जानता हो, वह सीधे स्नातकोत्तर की शिक्षा कैसे ग्रहण कर पाएगा? अष्टांग योग में ध्यान तो सातवें स्थान पर है। उसके पहले योग की अनेक विधियां है। आमतौर पर उनसे गुजरते हुए ही सही मायने में ध्यान को प्राप्त हुआ जा सकता है। ऐसे में आदमी क्या करे? बिहार योग के जनक परहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती का सुझाव है कि शशांकासन करना चाहिए। यह आसन इस मामले में इतना असरदार है कि महर्षि दुर्वासा की तरह क्रोधी व्यक्ति का क्रोध भी तीन-चार महीनों के अभ्यास से शांत हो जाएगा, रूपांतरण हो जाएगा। हां, लेकिन जिन्हें अति उच्च रक्तचाप, स्लिप डिस्क या चक्कर आते हों, उनके लिए यह आसन वर्जित है।

दरअसल, शरीर पर ग्रंथियों का बहुत असर होता है। यह आसन एड्रीनल ग्रंथि के कार्य को नियमित कर देता है। दरअसल, इस ग्रंथि की अनियमितता ही उत्तेजना, क्रोध और भय का कारण बनी होती है। जैसे चंद्रमा शांत और शीतल होती है, यह आसन भी मानव शरीर को शांत बना देता है। शशांक का अर्थ भी चद्रमा ही होता है। शांति की तलाश में पूरी दुनिया के लोग न जाने क्या-क्या जतन करते रहते हैं। वैसे में शशांकासन का इतना प्रभावी होना ही वह कारण रहा होगा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी चर्चा करते हुए एक बार फिर योग की महत्ता से दुनिया को परिचित कराया था।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)     

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