श्री अरविंद : आध्यात्मिक आंदोलन के ध्वजवाहक

किशोर कुमार

अपना देश आज एक तरफ आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो दूसरी ओर 150वीं जयंती पर आध्यात्मिक नेता, योगी और युगावतार महर्षि अरविंद को भी राष्ट्र याद कर रहा है, उन्हें नमन कर रहा है। स्वाधीनता आंदोलन में श्री अरविंद की भूमिका का उल्लेख इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में है। इस बात को रास बिहार बोस और सुभाष चंद्र बोस के वकतव्यों से समझा जा सकता है। रास बिहारी बोस ने टोक्यो से अपने रेडियो प्रसारण में उन क्रांतिवीरों को नमन किया था, जिनकी प्रेरक पुकार भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में उत्प्रेरक की भूमिका निभाई थी। उन्होंने ऐसे क्रांतिवीरों में श्री अरविंद का नाम प्रमुखता से लिया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी आजादी के इस निडर समर्थक के बड़े प्रशंसक थे।

पर इस लेख में उस महान स्वतंत्र्य वीर के आध्यात्मिक पक्ष की चर्चा। युवापीढ़ी को जानना चाहिए कि इस महान स्वतंत्र्य वीर का जीवन-दर्शन क्यों बदला और उसकी भारतीय जनमानस की चेतना के विकास में कितनी बड़ी भूमिका रही। पर पहले एक उनसे जुड़ा एक रोचक प्रसंग। श्री अरविंद से किसी ने पूछ लिया कि आप भारत की स्‍वतंत्रता के संघर्ष में अग्रणी सेनानी थे, लड़ रहे थे। फिर अचानक आप पलायनवादी कैसे हो गए कि सब छोड़कर आप पुदुचेरी में आँखें बंद करके बैठ गए? क्‍या आप सोचते है कि करने को कुछ नहीं बचा, या करने योग्‍य कुछ नहीं है? श्री अरविंद ने इसका जबाव कुछ यूं दिया था, “मैं पहले जो कर रहा था वह अपर्याप्त था। अब जो कर रहा हूं वह पर्याप्त है। जब मैं करने में लगा था तब मुझे पता नहीं था कि कर्म तो बहुत ऊपर-ऊपर है। उससे दूसरों को नहीं बदला जा सकता। दूसरों को बदलना हो तो स्वयं के भीतर प्रवेश कर जाना जरूरी है। स्वयं को जाने बिना कोई भी आंदोलन, कोई भी अभियान अधूरा है।“

यह बात थोड़ा ठीक से समझ लेने की है। वरना लगेगा कि श्री अरविंद वाकई पलायन कर गए थे। फिर तो यह समझना भी मुश्किल होगा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरू क्यों कहा था। दरअसल, प्रसिद्ध अलीपुर बम केस श्री अरविंद के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ था। उस केस में उन्हें एक साल के लिए अलीपुर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया था। तब उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता की शिक्षाओं का गहन अध्ययन किया था। उन्हें उसी दौरान भगवद् अनुभूतियां प्राप्त हुई थीं। यही टर्निंग प्वाइंट रहा। आत्म-दर्शन ज्यादा ही स्पष्ट हो गया। उनका जीवन बदल गया। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है कि हमारी आध्यात्मिकता ही हमारा जीवन-रक्त है। यदि यह साफ बहता रहे, यदि यह शुद्ध एवं सशक्त बना रहे तो सब कुछ ठीक है। सामाजिक, राजनीतिक, चाहे जिस किसी तरह की ऐहिक त्रुटियां हो, यदि खून शुद्ध है तो सब सुधर जाएंगे।  

श्री अरविंद ने पुडुचेरी में आश्रम बनाकर अपनी साधना के साथ प्रकारांर से इसी एजेंडे पर काम किया। वे पुडुचेरी गए तो थे अंग्रेजों के उत्पीड़न से बचने के लिए। पर आध्यात्मिक अनुभूतियां ऐसी हुईं कि योग औऱ अध्यात्म के जरिए आध्यात्मिक राष्ट्रवाद के लिए जुट गए थे। उनका दर्शन योग व आधुनिक विज्ञान का समन्वय हो गया। फलत: मानवता के कल्याण के लक्ष्य पर आधारित समन्वित योग की गंगा-जमुनी बहने लगी। मानवीय चेतना शक्ति के विकास में इसकी गुरूत्तर भूमिका बन गई। वे मस्तिष्क को ‘छठी ज्ञानेन्द्रिय’ मानते थे और कहते थे कि शिक्षा की सार्थकता तभी है जब हम इसका सदुपयोग करना जान लेंगे। इसका परिणाम होगा कि जीवन की समस्याओं एवं चुनौतियों का साहसपूर्वक सामना करने की शक्ति आएगी।

वैदिक युग से कहा जाता रहा है कि मानव जीवन का उद्देश्य सत् चित्त एवं आनन्द की प्राप्ति है। इन बातों के आलोक में श्री अरविंद की आध्यात्मिक अनुभूतियां इतनी बलवती हुईं कि वे सहज ही इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सत् चित्त एवं आनन्द के महान लक्ष्य को गीता में प्रतिपादित कर्मयोग एवं ध्यानयोग द्वारा प्राप्त किया सकता है। उन्होंने अपने ग्रंथ “गीता प्रबंध” में इस बात को विस्तार देते हुए लिखा – गीता नीतिशास्त्र या आचारशास्त्र ग्रंथ नहीं है। यह आध्यात्मिक जीवन का ग्रंथ है। वास्तव में यह ग्रंथ मूलत: योगशास्त्र है। यह जिस योग का उपदेश करता है, उसकी व्यावहारिक पद्धति का व्याख्यान भी इसी में है। इसमें जो तात्विक विचार आए हैं, वे इसके योग की व्यावहारिक व्याख्या करने के लिए ही लिए गए हैं। इसमें ज्ञान और भक्ति के भवन को कर्म की नींब पर खड़ा किया गया है और कर्म को भी जो कर्म की परिसमाप्ति है, उस ज्ञान में ऊपर उठाकर रखा गया है। कर्म का पोषण उस भक्ति द्वारा किया गया है जो कर्म की प्राण है और जहां से कर्म उद्भूत होते हैं।

यह सुखद है कि 150वीं जन्म शताब्दी वर्ष में श्री अरविंद की शिक्षाओं से जन मानस को प्रेरित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर अनेक कार्यक्रम चलाए गए। भारत सरकार की पहल पर 12 से 15 अगस्त तक देश भर की 75 जेलों में आध्यात्मिक कार्यक्रम चलाए जा रहे है। ताकि श्री अरबिंद के दर्शन को अपनाकर कैदियों के जीवन में बदलाव लाया जा सके। इसके लिए केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से श्री अरविंद के जुड़ाव को ध्यान में रखते हुए देश भर में 75 जेलों की पहचान की थी। बीते चार दिनों से इन जेलों में कैदियों के बीच श्री अरबिंदो के दर्शन का व्याख्यान के साथ ही उन्हें योग और ध्यान के अभ्यास कराए जा रहे हैं। रामकृष्ण मिशन, पतंजलि, आर्ट ऑफ लिविंग, ईशा फाउंडेशन और सत्संग फाउंडेशन 23 राज्यों में योग, ध्यान और जेल के कैदियों को श्री अरविंद की शिक्षाओं को प्रदान करने में जुटे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही कहा था देश भर की जेलों को महर्षि अरबिंदो के जीवन पर कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए ताकि कैदियों को एक नई यात्रा शुरू करने में सक्षम बनाया जा सके।

हम सब ऐसे देश में जन्में और पले-बढ़े हैं, जहां ज्ञान मानव जाति के आरंभ से ही भरा हुआ रखा है। पर वैदिककाल जैसी ग्रहणशीलता और धारदार मेधा के बावजूद हमारा उच्चकोटि का ज्ञान तामसिक भार से दबा हुआ है। आइए, आज हम सब संकल्प लें कि संसार को आध्यात्मिकता, राष्ट्र को राजनीति चेतना और समाज को समन्वय की संस्कृति का ज्ञान देने वाले श्री अरविंद के जीवन से प्रेरणा लेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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