चेतना के विकास में बड़े काम का है गायत्री मंत्र

किशोर कुमार

भारतीय लोकतंत्र के ऩए मंदिर यानी नए संसद भवन एक तरफ वैदिक मंत्रोच्चार से गूंजायमान था। उसी समय पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्वामी रामदेव बतला रहे थे कि यदि शरीर का आज्ञा-चक्र सक्रिय हो जाए तो उसका क्या प्रभाव होता है। उन्होंने दो बच्चों को प्रस्तुत किया, जिनकी आंखों पर पट्टियां थी और वे पुस्तकें पढ़ ले रहे थे। छपी हुई तस्वीरों के रंग तक बता दे रहे थे। मिड ब्रेन एक्टिवेशन के युग में यह कोई चौंकने-चौंकाने वाली बात न थी। पर मिड ब्रेन एक्टिवेशन जैसी वैज्ञानिक उपलब्धियों की सीमाएं हैं। अभी वह इस स्थिति में नहीं पहुंचा है कि हजारों मील दूर बैठे किसी संजय से महाभारत जैसे युद्ध की कमेंट्री करवा दे। पर योग-शक्ति से सक्रिय मस्तिष्क की कोई सीमा नहीं होती। इसके उदाहरण भरे पड़े हैं।

इसी युग में अमेरिकी नागरिक टेड सिरियो ने अमेरिका में बैठे-बैठे भारत के आगरा शहर में उस समय क्या घटित हो रहा था, उसका आंखों देखा हाल ऐसे बतला दिया था, मानो वह आगरा के किसी ऊंचे टीले से सबकुछ देख रहा हो। यही नहीं, उसने अपनी आंखों में कुछ तस्वीरें बसा ली थी। परीक्षण के बाद उस तस्वीर को बिल्कुल सही पाया गया था। इसे तंत्र विज्ञान की भाषा में आज्ञा-चक्र का सक्रिय होना माना गया था। वैदिक युग में इसे त्रिनेत्र का खुल जाना कहा गया। बीसवीं सदी के महान संत परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहते थे कि मानसिक अनुभूमियां पदार्थ पर आधारित नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि सामने जब कोई चित्र न हो तथा आसपास संगीत न बज रहा हो, फिर भी हम उन्हें देख-सुन सकते हैं। यह मनुष्य के व्यक्तित्व की विशेषता है। मानसिक अनुभव के क्षेत्र का विस्तार करके यह शक्ति प्राप्त की जा सकती है। ऐतिहासिक तथ्यों और हाल की कुछ घटनाओं से इस बात की पुष्टि होती है। अब तो विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार रहा है। उसकी भाषा में यह कुछ और नहीं, बल्कि पीयूष ग्रंथि या पीनियल ग्लैंड का सक्रिय होना है।    

आखिर आज्ञा-चक्र या पीनियल ग्लैंड को किस तरह स्वस्थ्य और सक्रिय रखा जा सकता है? उपाय अनेक हैं। पर गायत्री मंत्र किसी भी यौगिक उपाय से बढ़कर है। कुछ वैज्ञानिक अनुसंधानों से इस मंत्र की अहमित को समझिए। मंत्र विज्ञान पर अनुसंधान करने वालों में अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. हॉवर्ड स्टिंगरिल का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। वे अपनी प्रयोगशाला में मंत्रों की शक्ति का वर्षों परीक्षण के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि गायत्री मंत्र बेहद शक्तिशाली है। इसके जप से प्रति सेकंड 110,000 ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो सर्वाधिक हैं। हैम्बर्ग विश्वविद्यालय ने मानव के शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक विकास में गायत्री मंत्र की भूमिका पर कई साल पहले शोध शुरू किया था। पायलट प्रोजेक्ट के तहत रेडियो पारामारिबो, सूरीनाम, दक्षिण अमेरिका, जर्मन व हालैंड से प्रतिदिन शाम 7 बजे से 15 मिनट के लिए गायत्री मंत्र का प्रसारण किया गया। कुछ लोगों का समूह बनाकर उन्हें नियमित रूप से रेडियो पर गायत्री मंत्र सुनने और उससे अपने को तादात्म्य बनाने को कहा गया था। छह महीनों बाद पाया गया कि जप के समय कंपन वातावरण में फैलता है। वही कंपन सकारात्मक परमाणुओं को आकर्षित करके मंत्र से तादात्म्य बनाने वाले व्यक्ति के पास लौटता है और उसे उस सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।

वैदिककालीन ऋषि तो सदियों से गायत्री शक्ति की महत्ता को स्वीकारते रहे हैं। तभी वैदिक ग्रंथों की श्रृंखला में गायत्री गीता, गायत्री उपनिषद, गायत्री संहिता, गायत्री तंत्रम, गायत्री रामायण, गायत्री सहस्रनाम, गायत्री चालीसा और गायत्री हृदयम जैसे न जाने कितने ही ग्रंथ उपलब्ध हैं। कहा जाता है कि गायत्री के 24 अक्षरों की व्याख्या के लिए ही चार वेद हैं। इसलिए गायत्री को वेदमाता कहा गया है। शास्त्रों में उल्लेख है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा को अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शक्तियां चाहिए थी। तब ब्रहमांडीय शक्ति की आकाशवाणी के जरिए उन्हें गायत्री मंत्र की दीक्षा मिली थी। वह मंत्र था – ऊं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। इस मंत्र का उल्लेख यजुर्वेद में मिलता है। हममें से अनेक लोग बिना अर्थ जाने भी गायत्री मंत्र का पाठ कर लेते हैं। पर जब कोई उपलब्धि नहीं मिलती तो मंत्र की शक्ति पर ही अविश्वास करने लग जाते हैं। तुलसीदास जी ने हनुमान जी को ज्ञान और गुणों का सागर कहा है। पौराणिक कथा है कि हनुमान जी को गायत्री मंत्र की दीक्षा मिली थी। उनके उपनयन संस्कार में भी यही मंत्र प्रयुक्त हुआ था। वे इस मंत्र की शक्ति से प्रखर व तेजयुक्त होते गए थे।

बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं कि ऊं नाद है तो गायत्री प्राण है। गायत्री की उत्पत्ति ऊं से हुई है। कह सकते हैं कि ऊं मंत्र का विकसित स्वरूप ही गायत्री है। वैज्ञानिक अनुसंधान हुआ तो इस बात की पुष्टि हुई कि गायत्री मंत्र के साथ प्राणायाम साधना अत्यंत प्रभावकारी होती है। गायत्री मंत्र का सम्बन्ध आज्ञा चक्र से होने के कारण इसका उच्चारण करने से ऐसे स्पंदन उत्पन्न होते हैं, जो आज्ञा चक्र को जागृत करते हैं। भारत की प्रचीन परंपरा रही है कि बच्चे जब आठ साल के होते थे तो उनका उपनयन संस्कार कराया जाता था। इसके तहत चार वर्षों यानी बारह साल की उम्र तक के लिए मुख्य रूप से सूर्य नमस्कार, नाडी शोधन प्राणायाम और गायत्री मंत्र का अभ्यास करवाया जाता था। दरअसल, मस्तिष्क के केंद्र में स्थित पीनियल ग्रंथि बच्चों की चेतना के विस्तार के लिहाज से बेहद जरूरी है। अनुसंधानों के मुताबिक बच्चों के आठ-नौ साल के होते ही पीनियल ग्रंथि कमजोर होने लगती है। इसके साथ ही पिट्यूटरी ग्रंथि या पीयूष ग्रंथि और संपूर्ण अंत:स्रावी प्रणालियां अनियंत्रित होती जाती हैं। नतीजतन, असमय यौवनारंभ हो जाता है, जबकि बच्चों की मानसिक अवस्था इसके लिए उपयुक्त नहीं होती है। इसके अलावा में कई असंतुलन आते हैं। इसलिए उपनयन संस्कार के लिए आठ साल की उम्र का आदर्श माना जाता था।

संतों और आधुनिक युग के वैज्ञानिकों के अनुभवों से स्पष्ट है कि यदि हम संकल्प लें कि गायत्री मंत्र की साधना को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाएंगे तो इससे जीवन में बड़ा और सकारात्मक बदलाव देखने को मिल सकता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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