“योगनिद्रा” का कमाल तो देखिए!

किशोर कुमार

मैंने बीते सप्ताह इस कॉलम में लिखा था कि योगनिद्रा अनिद्रा से निजात पाने की अचूक दवा है। इस दावे के समर्थन में देश-विदेश में हुए शोधों के परिणामों और योग रिसर्च फाउंडेशन की पुस्तक योगनिद्रा को आधार बनाया था। लेख के प्रकाशन के बाद आशातीत प्रतिक्रियाएं हुई हैं। अब तक सैकड़ों पाठकों ने मैसेंजर के जरिए योगनिद्रा को लेकर कई सवाल किए हैं। प्रत्याहार को शोध कर तैयार की गई इस योगनिद्रा विधि के जनक ब्रह्मलीन परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के प्रवचनों और योग रिसर्च फाउंडेशन के दस्तावेजों को आधार बनाकर उन सारे सवालों के जबाव देने का प्रयास कर रहा हूं। इससे पता चलेगा कि योगनिद्रा की नियमित साधना हो तो अनिद्रा तो क्या कैंसर सहित अनेक घातक बीमारियों से उबरने में भी मदद मिल सकती है। साथ ही आपराधिक मनोवृत्ति का भी शमन हो सकता है।  

सबसे पहले सामान्य निद्रा और योगनिद्रा में अंतर समझिए। योगनिद्रा शब्द से प्राय: समझ लिया जाता है कि यह गहरी निद्रा में सोने का अभ्यास है, जबकि ऐसा नहीं है। इस अभ्यास के दौरान बार-बार यह संकल्प लेने का निर्देश दिया जाता है कि नींद में सोना नहीं है। दरअसल, जागृत और स्वप्न के बीच जो स्थिति होती है, उसे ही योगनिद्रा कहते है। जब हम सोने जाते हैं तो चेतना इन दोनों स्तरों पर काम कर रही होती है। हम न नींद में होते हैं और जगे होते हैं। यानी मस्तिष्क को अलग करके अंतर्मुखी हो जाते हैं। पर एक सीमा तक बाह्य चेतना भी बनी रहती है। वजह यह है कि हम अभ्यास के दौरान अनुदेशक से मिलने वाले निर्देशों को सुनते हुए मानसिक रूप से उनका अनुसरण भी करते रहते हैं। ऐसा नहीं करने से सजगता अचेतन में चली जाती है और मन निष्क्रिय हो जाता है। फिर गहरी निद्रा घेर लेती है, जिसे हम सामान्य निद्रा कहते हैं।

अब जानिए कि योगनिद्रा के दौरान मस्तिष्क किस तरह काम करता है? अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने तो अनिद्रा पर योगनिद्रा के प्रभावों पर शोध किया है। पर योगनिद्रा के वृहत्तर परिणामों पर जापान में वर्षों पहले शोध हुआ था। उसके जरिए जानकारी इकट्ठी की गई कि साधारण निद्रा और योगनिद्रा की अवस्था में मस्तिष्क की तरंगें किस तरह काम करती हैं। इस अध्ययन की अगुआई डॉ हिरोशी मोटोयामा ने की थी। उन्होंने देखा कि गहरी निद्रा की स्थिति में डेल्टा तरंगें उत्पन्न होती हैं और ध्यान की अवस्था में अल्फा तरंगें निकालती हैं। यही नहीं, योगाभ्यास के दौरान बीटा और थीटा तरंगे परस्पर बदलती रहती हैं। यानी योगाभ्यासी की चेतना अंतर्मुखता औऱ बहिर्मुखता के बीच ऊपर-नीचे होती रहती है। चेतना जब बहिर्मुख होती है तो मन उत्तेजित हो जाता है औऱ अंतर्मुख होते ही सभी उत्तेजनाओं से मुक्ति मिल जाती है। इस तरह साबित हुआ कि योगनिद्रा के दौरान बीटा औऱ थीटा की अदला-बदली होने की वजह से ही मन काबू में आ जाता है, शिथिल हो जाता है।

कई पाठकों ने सवाल किया कि योगनिद्रा के अभ्यास की उपयुक्त विधि क्या है? दरअसल, योगनिद्रा का अभ्यास सदैव शवासन (लेटकर) में किया जाना चाहिए है। लगभग आधा घंटा के इस अभ्यास को प्रारंभ में योग्य प्रशिक्षक के निर्देशन में करना बेहद लाभदायक होता है। योगाभ्यास का निर्देशन यूट्यूब पर भी उपलब्ध है। बिना बाह्य सहायता लिए योगनिद्रा का अभ्यास तभी किया जाना चाहिए जब पूरी विधि पूरी तरह याद हो और योगाभ्यास के दौरान याद करने में दिमाग लगाने की नौबत न आनी हो। पर व्यवहार रूप में देखा जाता है कि ज्यादातर योगाभ्यासियों के लिए योगनिद्रा विधि पूरी तरह याद रखना संभव नहीं हो पाता है और वे अभ्यास के दौरान जैसे ही भूलते हैं या याद करने के लिए दिमाग पर जोर देते हैं, दिमाग में अनावश्यक तनाव व उत्तेजना होती है। इससे योगनिद्रा का अभ्यास फायदे की जगह नुकसानदेह साबित होने लगता है।

हम अपने दैनिक जीवन में शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रुप से थक जाते हैं। इससे स्नायविक, मानसिक और भावनात्मक तनाव बढ़ते हैं। इनसे शरीर में नाड़ी मंडल, श्वसन मंडल और पाचन मंडल प्रभावित होते हैं। योगनिद्रा के दैनिक अभ्यास से ये तनाव शिथिल हो जाते हैं या फिर समूल नष्ट हो जाते हैं। विज्ञान की स्थापित मान्यता है कि अस्सी फीसदी बीमारियां मानसिक तनावों के कारण होती हैं और तनावों के नियंत्रण में योगनिद्रा का चमत्कारिक प्रभाव अनेक स्तरों पर परखा जा चुका है। मानसिक शिथलीकरण के मामले में इसकी महत्ता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि आध्यात्मिक साधक भी विभिन्न विधियों से योगनिद्रा का अभ्यास अनिवार्य रूप से करते हैं।

योगनिद्रा ज्ञान अर्जन में किस तरह मददगार है, यह जानना बड़ा दिलचस्प होगा। शरीर में तीन महत्वपूर्ण धाराएं हैं। वे हैं – अनुकंपी, परानुकंपी और केंद्रीय नाड़ी मंडल। योग की भाषा में इन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना कहते हैं। तंत्र की भाषा में प्राणशक्ति, मानसिक शक्ति औऱ आध्यात्मिक शक्ति कहते हैं। यह स्थापित सत्य है कि इड़ा और पिंगला आवश्यक संवेदनाएं निरंतर मस्तिष्क में भेजती रहती हैं। तभी मस्तिष्क वस्तु, ध्वनि, विचार आदि को जानने में समर्थ होता है।

योग रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक प्रत्याहार में इतनी शक्ति है कि इड़ा और पिंगला नाड़ियों को अवरूद्ध कर मस्तिष्क से उनका संबंध विच्छेद किया जा सकता है। इस क्रिया के पूर्ण होते ही प्राय: सुषुप्तावस्था में रहने वाली सुषुम्ना नाड़ी को जागृत करना आसान हो जाता है। योगनिद्रा के अभ्यास के दौरान सुषुम्ना या केंद्रीय नाड़ी मंडल क्रियाशील रहकर पूरे मस्तिष्क को जागृत कर देता है। इससे इड़ा और पिंगला नाड़ियों का काम ज्यादा बेहतर तरीके से होने लगता है। मस्तिष्क को अतिरिक्त ऊर्जा, प्राण और उत्तेजना प्राप्त होने लगती है। अनुभव भी विशिष्ट प्रकार के होते हैं। यह ज्ञान अर्जन के लिए आदर्श स्थिति होती है।

यह जानना बेहद जरूरी है कि योगनिद्रा का अभ्यास किन लोगों को हरगिज नहीं करना चाहिए। साथ ही किन लोगों के लिए यह योगाभ्यास कोरामिन की तरह है। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती कहा करते थे कि मिर्गी या अवसाद के पुराने मरीजों को योगनिद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए। इस तरह हम कह सकते हैं कि योगनिद्रा मानव कल्याण के लिए अनुपम उपहार है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

: News & Archives