चिकित्सा जगत की नजर में सूर्य नमस्कार

किशोर कुमार

परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा विकसित योगनिद्रा और महर्षि महेश योगी द्वारा विकसित ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन यानी भवातीत ध्यान के बाद सूर्य नमस्कार ही एक ऐसी योग पद्धति है, जिसके चिकित्सकीय प्रभावों पर दुनिया भर में सर्वाधिक वैज्ञानिक शोध किए गए हैं। योगियों को तो पहले से ज्ञान था कि सूर्य नमस्कार मानव तन-मन के लिए अमृत समान है। सौ दुखों की एक दवा है। पर कोराना महामारी के बाद चिकित्सा विज्ञानियों ने भी इसके महत्व को शिद्दत से स्वीकार किया। नतीजा है कि चिकित्सा विज्ञानियों के साथ ही दवा बनाने वाली कंपनियां भी अपने सामुदायिक विकास मद के धन का उपयोग योग विशेष तौर से सूर्य नमस्कार के चिकित्सकीय प्रभावों को जानने के लिए कर रही हैं।

यह सुखद है कि वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर दुनिया भर में योग की स्वीकार्यता बढ़ाने में चिकित्सा विज्ञानी महती भूमिका निभा रहे है। उनके सद्प्रयासों का ही परिणाम है कि सबको बात समझ में आने लगी है कि यह विद्या केवल और केवल व्यक्ति के आध्यात्मिक उत्थान के लिए ही नहीं है, बल्कि इसका अपना विज्ञान है और यह तन-मन को स्वस्थ्य रखने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है। योगविद्या के स्थापित संस्थानों में तो तन-मन पर योग के चिकित्सकीय प्रभावों को जानने के लिए प्रयोगशाला हैं ही, चिकित्सा शिक्षा संस्थानों में भी योग की अहमियत को समझते हुए प्रयोगशालाएं बनाई जा चुकी हैं। दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान में इसके लिए अलग विभाग ही है। भारत, अमेरिका और जर्मनी से लेकर दुनिया भर के अनेक चिकित्सा शोधशालाओं में सूर्य नमस्कार सहित योग की विभिन्न विधियों और उसके विभिन्न आयामों पर लगातार शोध कार्य किए जा रहे हैं।  

हाल ही सतत चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में सर्वाधिक लोकप्रिय बेव मैगजिन सीएमई इंडिया ने अग्रणी हेल्थकेयर कंपनी यूएसवी इंडिया के साथ मिलकर ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया था। इसमें कलकत्ता के प्रसिद्ध चिकित्सक़ डॉ शंबो एस समजदार ने मुंबई स्थित लीलावती अस्पताल के एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ शशांक आर जोशी की प्रेरणा से गहन वैज्ञानिक शोध के नजीतों को सप्रमाण प्रस्तुत करके साबित किया कि टाइप 2 मधुमेह की रोकथाम में सूर्यनमस्कार योग किस तरह प्रभावी है। लगातार किए जा रहे वैज्ञानिक शोधों का नतीजा यह है कि मधुमेह और हृदय रोग के अलावा अनेक छोटी-बड़ी बीमारियों जैसे मुँहासे, फोड़े-फुंसियाँ, रक्ताल्पता, गठिया, सिरदर्द, दमा तथा फेफड़े की अन्य विकृतियाँ, पाचन संस्थान की व्याधियाँ जैसे अपच व कब्ज, गुर्दे संबंधी व्याधियाँ, यकृत की क्रियाशीलता में कमी, निम्न रक्तचाप, मिर्गी, त्वचा की बीमारियाँ (एक्जिमा, सोरायसिस, सफेद दाग), सामान्य सर्दी-जुकाम से बचाव, अन्तःस्रावी ग्रंथियों में असंतुलन, मासिक धर्म, मानसिक व्याधियाँ (जैसे-चिंता, अवसाद, विक्षिप्त, मनोविकृति) आदि बीमारियों से ग्रस्त मरीजों पर भी सूर्य नमस्कार के व्यापक प्रभावों का पता चल चुका है।  

ऐसे में समझा जा सकता है कि भारत सरकार स्कूलों में सूर्यनमस्कार को इतना अहमियत क्यों दे रही है। दरअसल, सूर्यनमस्कार ही एक ऐसी योगविधि है, जिसके अभ्यास में समय कम और लाभ कई मिल जाते हैं। योगियों का तो अनुभव है कि शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही चित्त को एकाग्र करने में भी बड़ी मदद मिलती है। आसन की बारह मुद्राओं वाले इस योगाभ्यास से शरीर की मांसपेशियां सबल होती हैं। रक्त-संचालन दुरूस्त रहता है। स्नायु-बल प्राप्त होता है और ग्रंथियां पुष्ट होती हैं। सूर्य की किरणों से कीटाणुओं का नाश होता है। एक सूर्य नमस्कार से इतने साऱे लाभ मिलने के कारण ही शैक्षणिक संस्थानों का भी सूर्य नमस्कार पर ज्यादा जोर रहता है। छात्रों को भी यह खूब भाता है।

बीते साल ही आदित्य एल1 मिसाइल के प्रक्षेपण के बाद सूर्यनमस्कार व्यापक रूप से चर्चा हुई थी। आदित्य एल1 की खबर मीडिया में कुछ इस तरह थी – भारत चला सूर्यनमस्कार करने। अनेक योग व शिक्षण संस्थानो में सूर्यनमस्कार के लिए बड़े-बड़े आयोजन किए गए थे। सूर्य की महिमा का बखान करते हुए युवाओं से सूर्यनमस्कार अभ्यास को जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनाने की अपील की गई थी। जी20 शिखर सम्मेलन के बहाने भी हमने ने दुनिया को दिखाया कि भारत को विश्व गुरू क्यों कहा जाता था? यह भी कि हममें वे कौन से तत्व बीज रूप में मौजूद हैं कि हम फिर से विश्व-गुरू की पदवी पर अधिरूढ़ हो सकते हैं। विद्युत अभियंता से योगाचार्य बने प्रयाग आरोग्य केंद्र के संस्थापक प्रशांत शुक्ल कहते हैं कि सूर्य नमस्कार अभ्यास व्यायाम भर नहीं है, बल्कि प्राणायाम, मुद्रा और मंत्रों के समिश्रण के कारण इसका पारंपरिक स्वरूप बना रहे तो यह यौगिक अमृत बन जाता है। आर्ष ग्रंथ इस बात के गवाह हैं कि हमारी चेतना इतनी विकसित और परिष्कृत थी कि हम खुद प्रकाशित तो थे ही, अपने प्रकाश से दुनिया को राह दिखाते रहे। भौतिक समृद्धि भी कुछ कम न थी। तभी तुर्कियों, यूनानियों और मुगलों के आक्रमणों और हजार वर्षों की लूट के बावजूद हमारा अस्तित्व बना रह गया।

सूर्यनमस्कार को लेकर बाजार में अनेक बेहतरीन पुस्तकें उपलब्ध हैं। सूर्यनमस्कार के अभ्यासियों को इनमें से कोई भी पुस्तक का अध्ययन जरूर करना चाहिए। इससे योगाभ्यास के दौरान ज्यादा स्पष्टता रहती है और पर्याप्त लाभ मिल पाता है। सूर्य नमस्कार पर स्वामी सत्यानंद सरस्वती की पुस्तक का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उसमें उन्होंने सूर्य नमस्कार के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पक्षों के बारे में विस्तार से बतलाया हुआ है। उनके मुताबिक, सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से होने वाले लाभ सामान्य शारीरिक व्यायामों की तुलना में बहुत अधिक हैं। साथ-ही-साथ इससे खेल से मिलने वाले आनन्द तथा शारीरिक मनोरंजन की मात्रा में भी वृद्धि होती है। इसका कारण है कि इससे शरीर की ऊर्जा पर सीधा शक्तिप्रदायक प्रभाव पड़ता है। यह सौर ऊर्जा मणिपुर चक्र में केन्द्रित रहती है तथा पिंगला नाड़ी से प्रवाहित होती है। जब यौगिक साधना के साथ सम्मिलित करते हुए अथवा प्राणायाम के साथ सूर्य नमस्कार का अभ्यास किया जाता है, तब शारीरिक तथा मानसिक दोनों स्तरों पर ऊर्जा संतुलित होती है।

हाल के दिनों में जो लोग धार्मिक आधार पर या किसी अन्य कारणों से इस योगाभ्यास को लेकर फिर से विवाद खड़े करने लगे हैं, उन्हें वैज्ञानिक शोधों से मिले नतीजों के आधार पर समझना होगा कि सूर्य नमस्कार कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यौगिक अमृत है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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