कैवल्यधाम योग संस्थान के 100 साल

किशोर कुमार //

गौरवशाली अतीत वाले योग व वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान कैवल्यधाम में अभी से जश्न का माहौल है। यह संस्थान अपनी स्थापना के एक सौ साल पूरे करने जा रहा है। महाराष्ट्र के लोनावाला में सन् 1924 में कोई 180 एकड़ में स्थापित कैवल्यधाम के शताब्दी समारोह को यादगार बनाने के लिए बड़े पैमान पर तैयारियां की जा रही हैं। गौरवशाली इतिहास वाले इस योग व वैज्ञानिक अनुसंधान के शताब्दी समारोह के लिए विशेष लोगो जारी किया जा चुका है। दूरदर्शन ने हाल ही इस संस्थान के एक सौ साल के इतिहास को समेटता हुआ एक वृत्तचित्र तैयार किया है, जिसे रिलीज किया जा चुका है।  

शताब्दी समारोह के दौरान 365 दिन यानी साल भर वैश्विक स्तर पर 150 शहरों में 650 से अधिक कार्यक्रमों के आयोजन किए जाने हैं। देश में आयोजित भारत योग माला कार्यक्रम के लिए स्थलों का चयन इस तरह किया जाना है ताकि भारत का मानचित्र बन जाए। ‘योग म्यूजियम ऑन व्हील्स’ सभी कार्यक्रम स्थलों को कवर करते हुए कोई बारह हजार किमी की यात्रा तय करेगा। इससे कैवल्यधाम के एक सौ वर्षों की योग परंपरा की झांकी मिलेगी। शताब्दी समारोह के दौरान लोग देखेंगे कि बीसवीं सदी के प्रारंभ में योग विधियों पर शोध करके यौगिक चिकित्सा का अलख जगाने वाले स्वामी कुवलयानंद की ज्ञान-गंगा का प्रवाह किस किस मजबूती से जारी है।

स्वामी कुवल्यानंद ने जब योग-मार्ग पर यात्रा शुरू की थी तो योग जब साधु-संतों तक ही सीमित था और गृहस्थों के बीच उसको लेकर नाना प्रकार की भ्रांतियां थीं। पर जब उन्होंने आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर साबित कर दिया कि यह विश्वसनीय विज्ञान है तो देश-विदेश के लोग बरबस ही उस ओर आकृष्ट हुए। एक तरफ महात्मा गांधी ने उनकी योग विद्या का लाभ लिया तो दूसरी तरफ मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू और पंडित मदनमोहन मालवीय से लेकर देश-विदेश की कई हस्तियां स्वामी कुवलयानंद के कैवल्यधाम आश्रम पहुंच गईं थीं।

स्वामी कुवल्यानंद आधुनिक युग के संभवत: पहले वैज्ञानिक योगी थे, जिन्होंने मानव शरीर पर यौगिक प्रभावों को जानने के लिए एक्स-रे, ईसीजी और उस समय रोग परीक्षणों के लिए उपलब्ध अन्य मशीनों के जरिए अपने ही शरीर पर अनेक परीक्षण किए। उन्होंने इन प्रयोगों के लिए खुद की प्रयोगशाला बनाई। प्रयोग सफल होने लगे तो अपनी संस्था कैवल्यधाम के लिए अधिकारपूर्वक सूत्र-वाक्य लिखा – “कैवल्यधाम, जहां योग परंपरा और विज्ञान का मिलन होता है।“ वाकई, उन्होंने 20वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में योग की परंपरा औऱ विज्ञान का ऐसा अद्भुत मिलन कराया कि एक मकान से शुरू उनकी यौगिक अनुसंधान को समर्पित संस्था कैवल्यधाम वट-वृक्ष की तरह अपने देश की सरहद के बाहर भी फैलती गई। कैवल्यधाम परिवार यौगिक व आध्यात्मिक गतिविधियों का ऐसा केंद्र है, जिसमें एक साथ योग विज्ञान सें संबंधित कई शाखाएं व प्रशाखाएं समाहित हैं।

स्वामी कुवलयानंद ने सबसे पहले उड्डियान, नौलि, सर्वांगासन आदि योग विधियों का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव जानने के लिए शोध किया था। थॉयराइड ग्रंथियों पर योग के प्रभाव संबंधी अध्ययन उस काल के लिहाज से अनूठा था। इन अध्ययनों के नतीजे उनकी त्रैमासिक पत्रिका के पहले अंक में प्रकाशित किए गए थे। रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर काम करने वाले प्रथम वैज्ञानिक डॉ॰ जगदीश चन्द्र बसु ने स्वामी कुवलयानंद के यौगिक अनुसंधानों को देखकर कहा था, “मुझे यह कहने में कोई संदेह नहीं कि आप सही रास्ते पर हैं।“ मौजूदा समय में इस अनुसंधान केंद्र को भारत सरकार के वैज्ञानिक संगठनों से लेकर विश्व विद्यालायों तक से संबद्धता प्राप्त है। मौजूदा समय में केंद्रीय आयुष मंत्रालय का सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन योगा एंड नेचुरोपैथी कैवल्यधाम संस्थान से मिलकर यौगिक अनुसंधान पर काम कर रहा है। इनके अलावा भी अनेक सरकारी गैर सरकारी एजेंसियों के साथ यौगिक अनुसंधान की परियोजनाएं इस परिसर में चलती रहती हैं।

योग अनुसंधान के साथ ही साहित्य के क्षेत्र में कैवल्यधाम में अनेक अनूठे कार्य किए गए। अप्रतीम व्यक्तित्व के धनी रहे योगमार्ग के उन्नायक महायोगी गोरखनाथ द्वारा विरचित ग्रंथों में एक सौ श्लोकों वाला गोरक्षशतकम् हठयोग का महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। गोरक्षनाथ ने गोरक्षशतकम् के लिए जितने भी श्लोक लिखे, हस्तलिखित थे और विखरे पड़े थे। कई बार तो प्रमाणित करना भी मुश्किल होता था कि उनके नाम से प्रचलित श्लोक वाकई प्रमाणिक हैं भी या नहीं। स्वामी कुवल्यानंद ने अपने सहयोगियों की मदद से एक सौ श्लोक संग्रहित किया और उनकी भाषा व दर्शन के आधार पर माना कि वे गोरक्षनाथ द्वारा विरचित ही होने चाहिए। हैरान करने वाली बात यह रही कि चुने गए सौ श्लोक ही सौ श्लोकों वाली गोरक्षशतक के हस्तलेख में भी पाए गए थे। इस एकमात्र हस्तलेख को ‘इंडिया ऑफिस लायब्ररी’, लन्दन से हासिल किया गया था।

कैवल्यधाम परंपरा के अग्रणी योगी ओमप्रकाश तिवारी ने भी स्वामी कुवल्यानंद की परंपरा को बनाए रखा है। उदाहरण के तौर पर, हठयोग मंजरी हठयोग के अभ्यासों का सांगोपांग वर्णन करने वाला महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। इसे ब्रह्मज्ञान विद्यार्थी ने लिखा था। पर कसरती स्टाइल के योग के जमाने में यह अनूठा ग्रंथ बाजार से गायब हो गया। कैवल्यधाम ने इसके पुर्नप्रकाशन का बीड़ा उठाया और यह ग्रंथ फिर से योग साधकों के लिए सुलभ हो गया। कैवल्यधाम ने वसिष्ठसंहिता के योगकांड पर भी काफी काम किया है। ताकि वह संपूर्णता में पाठकों को सुलभ हो सके। दरअसल, स्वामी कुवल्यानंद इस विचार के थे कि योग से सम्बन्धित कोई भी जानकारी प्राप्त हो तो उसे आम लोगों तक पहुंचाना अपना कर्तव्य समझना चाहिए।

अंत में एक मजेदार प्रसंग। पंडित जवाहरलाल नेहरू कैवल्यधाम आश्रम गए तो उन्हें पता चला कि स्वामी कुवलयानंद के पास विदेशी विश्वविद्यालयों से साथ जुड़कर काम करने के लिए कई प्रस्ताव आ चुके हैं। पंडित नेहरू बेहद चिंतित हो गए। उन्हें लगा कि स्वामी कुवलयानंद कहीं विदेश न चले जाएं। लिहाजा, उन्होंने स्वामी कुवलयानंद को पूर्ण सहयोग का भरोसा दिलाया और आश्रम छोड़ने से पहले आगंतुक रजिस्टर में लिख दिया कि यदि स्वामी कुवलयानंद भारत छोड़ देंगे तो यह मेरे लिए दुखदायी होगा। पर आजादी के दीवाने कुवलयानंद विदेशी संस्थानों के मोहपाश में कहां फंसने वाले थे। वे जीवन पर्यंत भारत भूमि पर रहकर ही योग को समृद्ध करते रहे। योग विज्ञान के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों के कारण उनका नाम अमर हो गया और उनका कैवल्यधाम मानव जाति के लिए वरदान साबित हो रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

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