भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जैसे शिष्य को नमन!

पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम अपने छात्र जीवन में किन्हीं कारणों से अवसादग्रस्त हो गए थे। उन्होंने दशनामी संन्यास परंपरा के अगुआ स्वामी शिवानंद सरस्वती के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। लिहाजा वे उनके पास गए और अपनी समस्याओं का बयान किया। स्वामी जी ने उन्हें जो उपदेश दिया, इससे वे बेहद प्रभावित हुए और उनका जीवन-दर्शन ही बदल गया। स्वामी जी ने तभी कहा था कि उन्हें भारत की अगुआई करनी है। तब यह बात डॉ. कलाम की कल्पना से परे थी। पर कालांतर में ऐसा ही हुआ।

पूरी दुनिया में एक प्रखर शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम बिहार के मुंगेर स्थित विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के गुरूओं के लिए आजन्म शिष्य ही रहे। वे राष्ट्रपति रहते अपने गुरू स्वामी शिवानंद सरस्वती के शिष्य परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित बिहार योग विद्यालय में दो बार गए। पर राष्ट्रपति के रूप में नहीं, शिष्य के रूप में। यही वजह थी कि राष्ट्रपति का सारा प्रोटोकॉल बिहार योग विद्यालय परिसर के बाहर तक ही सीमित रहता था।

मजेदार वाकया हुआ। डॉ. कलाम ने राष्ट्रपति बनने के कुछ समय बाद ही बिहार योग विद्यालय में जाने की इच्छा व्यक्त की। इस बात से योग विद्यालय के व्यस्थापकों को अवगत कराया गया तो एक समस्या खड़ी हुई कि आश्रम के भीतर प्रोटोकॉल का पालन कैसे होगा। कहते हैं कि राष्ट्रपति भवन को जब इस स्थिति से अवगत कराया गया तो वहां से जबाव मिला कि राष्ट्रपति जी आश्रम के भीतर शिष्य के नाते जाना चाहेंगे। लिहाजा कैंपस में कोई प्रोटोकॉल नहीं होगा। ऐसा हुआ भी। डॉ. कलाम मुंगेर आश्रम में गए तो उन्होंने परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के सत्संग में बाकी शिष्यों के साथ ही बैठना पसंद किया।

दरअसल बिहार योग विद्यालय के प्रति उनके विशेष अनुराग के पीछे एक घटना है। महासमाधिलीन परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के गुरू स्वामी शिवानंद सरस्वती ऋषिकेश में अपने आश्रम में रहते थे। वे दशनामी संन्यास परंपरा के अग्रदूत थे। उन्होंने योग को एक ऐसी जीवनोपयोगी विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया था जिसे हर व्यक्ति सरलता से अपने जीवन में अपना सकता था। उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने एक बार कहा था – स्वामी शिवानंद जी न तो कभी पाश्चात्य देशों में गए और न ही पाच्य देशों में, लेकिन आज वे सर्वत्र छाए हुए हैं।

उसी ऋषिकेश आश्रम में एक ऐसी घटना हुई कि पूर्व राष्ट्रपति और हरदिल अजीज डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन-दर्शन ही बदल गया। हुआ यह कि डॉ.कलाम एक बार अपने छात्र जीवन में किन्हीं कारणों से अवसादग्रस्त हो गए थे। उन्होंने दशनामी संन्यास परंपरा के अगुआ स्वामी शिवानंद सरस्वती के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। लिहाजा वे उनके पास गए और अपनी समस्याओं का बयान किया। स्वामी जी ने उन्हें जो उपदेश दिया, इससे वे बेहद प्रभावित हुए और उनका जीवन-दर्शन ही बदल गया। स्वामी जी ने तभी कहा था कि उन्हें भारत की अगुआई करनी है। तब यह बात डॉ. कलाम की कल्पना से परे थी। पर कालांतर में ऐसा ही हुआ।

डॉ. कलाम जब राष्ट्रपति बने तो उन्होंने अपना यह संस्मरण सुनाया और अपनी पुस्तक “अग्नि की उड़ान” में इसकी चर्चा भी की। उन्होंने बिहार योग विद्यालय के कारण मुंगेर को देश का योग नगरी कहा था। उनका बिहार योग विद्यालय से अंत-अंत तक जुड़ाव अपने गुरू के प्रति श्रद्धा और अनुराग का ही प्रतिफल था। ऐसे शिष्य को नमन!

: News & Archives