स्वामी शिवानंद सरस्वती के शिष्य और दशनामी संन्यास परंपरा में दीक्षित परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने बीसवीं सदी में दुनिया के सौ से ज्यादा देशों में योग विद्या की ऐसी गंगा-जमुनी बहाई कि आज लोग उसमें डुबकी लगाकर आनंदमय जीवन जी रहे हैं। सन् 1923 में अविभाजित उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा में जन्मे परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने बिहार में मुंगेर की धरती से पूरी दुनिया में योग की अविरल धारा बहाने का जो महाभियान शुरू किया था, वह उनके समाधि लेने के बाद भी जारी है। स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने सन् 1956 में अंतरराष्ट्रीय योग मित्र मंडल, एवं सन् 1963 में बिहार योग विद्यालय की स्थापना की। इसके बाद बीस वर्षों तक योग के अग्रणी प्रवक्ता के रूप में विश्व भ्रमण करते रहे। उनका उद्देश्य सभी जातियों, मतों, धर्मों और राष्ट्रीयता के लोगों के बीच प्राचीन यौगिक अभ्यासों को लोकप्रिय बनाना था। उन्होंने 1984 में ग्राम्य विकास की भावना से दातव्य संस्था शिवानंद मठ और योग पर वैज्ञानिक शोध की दृष्टि से योग शोध संस्थान की स्थापना की। सन् 1988 में परमहंस संन्यासी का जीवन अपना लिया और इसके एक साल बाद ही देवघर जिले के रिखिया गांव में श्रीपंचदशनाम परमहंस अलखबाड़ा की स्थापना कर वहां बीस वर्षों तक विश्वव्यापी दृष्टिकोण से गहन साधना की। 5 सितंबर 2009 की मध्यरात्रि को वे महासमाधि ले लीन हो गए।